21-May-2018 09:09 AM
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चुनावी साल में मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा जारी किए गए नए टैरिफ प्लान में बिजली दरें नहीं बढ़ी हैं। केवल घरेलू उपभोक्ताओं के लिए फिक्स चार्ज का फार्मूला बदला है। मौजूदा 100 रुपए प्रति 75 यूनिट पर लगने की बजाय अब प्रति 15 यूनिट पर फिक्स चार्ज लगेगा। यह फिक्स चार्ज शहरों में 20 और गांवों में 17 रुपए होगा। पहले प्रति 75 यूनिट के बाद एक भी यूनिट बढऩे पर सीधे 100 रुपए चार्ज लगता था। अब 15-15 यूनिट के हिसाब से फिक्स चार्ज लगेगा। बिजली की नई दरें 11 मई से प्रभावी हो गई है।
प्रदेश में वर्ष-2003 में पहली बार बिजली दरें नियामक आयोग ने घोषित की थी। तब से अब तक हर बार चुनावी साल में उपभोक्ताओं को बिजली दर में राहत मिलती है। इससे पहले वर्ष-2008 और 2013 में भी उपभोक्ताओं को राहत मिली थी। 2013 में महज शून्य दशमलव 77 फीसदी दर बढ़ी थी, जबकि 2008 में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी। इस बार फिर नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव है।
सूत्रों के अनुसार इस देरी की बड़ी वजह चुनावी साल में टैरिफ दर न बढ़ाने को लेकर सरकार का दबाव बताया जाता है। सीएम असंगठित मजदूरों को पहले ही 200 रुपए फ्लैट दर पर बिजली देने की बात कह चुके हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में विपक्ष बिजली दरों को बड़ा मुद्दा बना रहा है। विपक्ष विशेषकर कांग्रेस बार-बार कह रही है कि जब प्रदेश में इतनी बड़ी मात्रा में बिजली उत्पादन हो रहा है कि दूसरे राज्यों को बिजली बेची जा रही है तो प्रदेश की जनता को इसका फायदा क्यों नहीं मिल रहा? कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने भी दूसरे प्रदेशों को सस्ती बिजली देने और प्रदेश की जनता को महंगी दरों पर बिजली दिए जाने की बात कही जिससे सरकार और दबाव में आ
गई है।
2014 में जब विधानसभा चुनाव होने वाले थे, तब भी आयोग ने वृद्धि नहीं की थी। प्रदेश की तीनों बिजली वितरण कंपनी की ओर पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने 3.60 फीसदी वृद्धि किए जाने का प्रस्ताव दिया था। आयोग ने व्यावसायिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए राहत भी दी है। उनकी मासिक औसत खपत बढऩे पर कुछ पैसों का इनसेंटिव भी दिया जाएगा। अभी बिजली की घरेलू दर न्यूनतम 4 रुपए से अधिकतम 11 रुपए प्रति यूनिट है। आयोग ने खपत के अलग-अलग स्लैब बना रखे हैं। 0 से 50 यूनिट तक 4 रुपए, 51 से 100 यूनिट तक साढ़े चार और 100 से 300 यूनिट के स्लैब में सवा पांच रुपए प्रति यूनिट तक के स्लैब बने हुए हैं।
घरेलू उपभोक्ता को आवास निर्माण के लिए अस्थायी कनेक्शन के फिक्स चार्ज में कमी की गई है। शहरों में 390 से 300 व गांवों में 350 से 250 रुपए किया। प्री-पेड मीटरिंग को बढ़ावा देने 5 पैसे प्रति यूनिट ऊर्जा प्रभार में छूट मिलेगी। अभी 20 पैसे प्रति यूनिट छूट है जो अब 25 पैसे होगी। मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, डेयरी, रेशम उद्योग, पशु प्रजनन केंद्र आदि में एचपी-लोड प्रति कनेक्शन 100 एचपी से बढ़ाकर 150 एचपी किया। ओपन एक्सेस से कंपनी बदलकर बिजली लेने वाले उपभोक्ताओं के लिए बढ़ी खपत पर प्रति यूनिट एक रुपए की छूट होगी। इस तरह सरकार ने बिजली उपभोक्ताओं को कई तरह की राहत देकर इस चुनाव वर्ष में उनके घावों पर मरहम लगाया है।
ताकि मुद्दा न बने बिजली
सरकार ने बिजली की दरों में इसलिए वृद्धि नहीं किया है कि वह चुनावी मुद्दा न बन जाए। उधर आम आदमी पार्टी के प्रदेश सचिव दुष्यंत दांगी ने बताया कि मध्य प्रदेश में आप बिजली विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाएगी। दांगी ने बताया कि मौजूदा वक्त में मध्य प्रदेश को 17,500 मेगावाट बिजली उपलब्ध है। जबकि प्रदेश में बिजली की अधिकतम मांग 11,000 मेगावाट है। लेकिन फिर भी प्रदेश में न सिर्फ बिजली संकट है बल्कि बिजली के दाम भी आए दिन बढ़ा दिए जाते हैं। आप नेताओं ने बिजली विभाग के आंकड़े दिखाते हुए खुलासा किया कि वर्ष 2016-17 के दौरान बीना पावर सप्लाई लिमिटेड ने 14.2 करोड़ यूनिट बिजली के लिए 11 महीनों में 478.26 करोड़ रुपये का भुगतान किया। जिसके हिसाब से प्रति यूनिट बिजली की औसत दर 33.68 रुपये होती है। इसी तरह झाबुआ पावर लिमिटेड से 2.54 करोड़ यूनिट बिजली खरीदी गई, जिसके एवज में 214.20 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। यहां प्रति यूनिट बिजली की कीमत 84.33 रुपये थी। यानी दोनों कंपनियों के दामों में भारी अंतर था। इनके अलावा मध्य प्रदेश पावर लिमिटेड और जयप्रकाश पावर वेंचर्स लिमिटेड कंपनी से भी अलग-अलग दरों पर बिजली खरीदी गई। इन आंकड़ों के आधार पर आप का कहना है कि आखिर शिवराज सरकार अलग-अलग निजी कंपनियों से बिजली खरीद ही क्यों रही है?
-सिद्धार्थ पांडे