21-May-2018 09:04 AM
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मप्र में जल संरक्षण के तमाम दावों और करोड़ों रूपए खर्च करने दावों की पोल केंद्रीय भू-जल संरक्षण की रिपोर्ट में खुल गई है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में कुल 57 प्रतिशत भूजल का दोहन हो चुका है। वर्तमान में 43 प्रतिशत भूजल बचा है, लेकिन जिस तरह से प्रदेश में भूजल का दोहन किया जा रहा है, इससे प्रदेश में वर्ष 2040 तक भू-जल की स्थिति खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगी। भारत के जल-संसाधन मंत्रालय की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश के 13 राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान के 300 जिलों में पीने लायक पानी की कमी है। इनमें मध्यप्रदेश के 43 जिले शामिल हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकलन रिपोर्ट के अनुसार देश के 6,584 ब्लॉक में सर्वे करने पर पता चला कि इनमें से 1,034 ब्लॉक में भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन हो चुका है। जिसमें प्रदेश के 30 ब्लाक भी शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में पांच प्रतिशत अधिक पानी का दोहन किया जा चुका है। इन ब्लाकों में 85 से 99 प्रतिशत तक भू-जल का इस्तेमाल किया जा रहा है। अधिकारी का कहना है कि बरसात कम हुई और भूजल का दोहन ज्यादा हो रहा है, पानी का रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। इससे इन ब्लाकों की हालत बेहद नाजुक बनी हुई है। इसके साथ ही कुओं का जल स्तर भी नीचे जा रहा है।
प्रदेश के अधिकांश जिलों में भूजल स्तर की पहली लेयर जो 35 मीटर की होती है उसका पानी अब खत्म हो चुका है। वर्तमान में 70 मीटर वाली दूसरी लेयर का पानी हैंडपंपों और नलकूपों के माध्यम से मिल रहा है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार मध्यप्रदेश के 1031 विशेषित कुओं में से 555 (48 प्रतिशत कुओं में भूजल का स्तर गिरा है। चौकाने वाली रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2.13 मीटर प्रति वर्ष की दर से सूबे के कुओं में भूजल के स्तर में गिरावट हो रही है। केन, सोन, ताप्ती, चंबल, शिवना, बेनगंगा, नर्मदा सहित अन्य नदियों के किनारे के गांवों के लोग आत्मघाती कदम उठाए हुए हैं। अधिकांश नदियों का बेड (जल बहाव की सतह) कई स्थानों पर सामान्य से तीन मीटर तक नीचे चली गई है, जिससे नदियों की गहराई तेजी से बढ़ी है। इससे कई जगह पर नदियां कुंआ तो कई जगह उथली हो गई हैं। यह आने वाले संकट का संकेत है। मप्र में माफिया और प्रशासन की मिलीभगत से केन, सोन, ताप्ती, चंबल, शिवना, बेनगंगा, नर्मदा सहित अन्य नदियों को मशीनों से इस कदर खोदा जा रहा है कि नदियों का पारिस्थितकीय संतुलन ही बिगड़ गया है। प्रदेश की बड़ी नदियों की सहायक नदियां तो पूरी तरह सूख गई हैं या फिर नाला बनकर रह गई हैं। मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार, लगातार दोहन के कारण प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में दिनों दिन भूजल स्तर गिर रहा है। इस साल अभी तक कुछ जिलों में जलस्तर 50 से 70 मीटर तक नीचे खिसक चुका है। भूजल स्तर इसी तेजी से गिरता रहा तो गर्मी के जून माह में लोगों को गंभीर पेयजल संकट से जूझना पड़ सकता है। जिन जिलों में तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है उनमें रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, डिंडौरी, जबलपुर, कटनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, नरसिंहपुर, मंडला, सागर, पन्ना, टीकमगढ, छतरपुर, रायसेन, विदिशा, दमोह, सिहोर, ग्वालियर, गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, भिंड, मुरैना, श्योपुर, इंदौर, धार, मंदसौर, उज्जैन, शाजापुर, देवास, रतलाम, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी, झाबुआ और अलीराजपुर जिले हैं। ये जिले इस बार सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
60 फीसदी पानी के स्रोत सूखे
जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं कि पानी के संकट और सरकारों के उपेक्षित रवैये के चलते इस इलाके पर हर तरफ से चोट हो रही है। सिंह ने पिछले दिनों जमीनी स्तर पर हालात का जायजा लेने के बाद तैयार की गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बुंदेलखंड में तो 60 फीसदी से ज्यादा जल स्त्रोत पूरी तरह सूख चुके हैं, फसलों की पैदावार मुश्किल हो गई है। रोजगार के अवसर नहीं हैं, 50 फीसदी से ज्यादा लोग पलायन कर गए हैं। गांव में अब सिर्फ बुजुर्ग और बच्चे ही ज्यादा बचे हैं। इस रिपोर्ट के जारी किए जाने के बाद शिवराज सरकार की ओर से दावा किया गया कि बुंदेलखंड की स्थिति पर नजर रखी जा रही है। साथ ही जो ब्योरा जारी किया गया उसके मुताबिक, इस इलाके के लगभग 88 फीसदी हैंडपंप ठीक होना बताया गया। जब सिंह से पूछा गया कि सरकार तो आपकी रिपोर्ट के उलट बात कह रही है, तो उनका जवाब था कि जब आंख का पानी सूख जाए तो उसे धरती का पानी कहां समझ में आएगा। सिंह ने कहा कि सरकारों के साथ दिक्कत यही है कि अफसर जो रिपोर्ट भेज देते हैं उसे ही जारी कर देती है। वह हकीकत जानने की कोशिश नहीं करती। इस मामले में भी यही हुआ है, सरकार ने बुंदेलखंड की हकीकत पर पर्दा डालने में तनिक भी देरी नहीं की। सरकार अगर वाकई में गंभीर होती तो रिपोर्ट का अध्ययन करती और वास्तविकता जानती। सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा कि बुंदेलखंड के रेलवे स्टेशनों पर जाकर देखा जा सकता है कि कितनी बड़ी तादाद में लोग पलायन कर रहे हैं। सवाल उठता है कि अगर यहां पानी और रोजगार होता तो वे घर क्यों छोड़ते? सरकार बताए कि उसने किसी अफसर को इन स्टेशनों पर भेजना उचित समझा क्या? राजेंद्र सिंह ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों को सलाह दी है कि वह वास्तविकता को खुली आंखों से देखें। समय रहते उसने जल संरक्षण का अभियान चलाया तो आने वाले वक्त में यहां के लोगों के जीवन को खुशहाल बनाया जा सकेगा, अगर पुरानी राजनीतिक बयानबाजी और जुमलेबाजी चलती रही तो लोगों की जिंदगी और बदतर हो जाएगी।
- विशाल गर्ग