21-May-2018 08:52 AM
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भारत और नेपाल न सिर्फ पड़ोसी हैं, बल्कि इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, भाषा, बोली समेत अनेक तार आपस में जुड़ते हैं। हजारों वर्षों के इस पावन रिश्ते को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल में नई ऊंचाई प्रदान की है। 11 मई, 2018 को जब वे दो दिवसीय नेपाल दौरे पर पहुंचे तो दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम मिला। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के साथ मिलकर उन्होंने माता सीता के जन्म स्थान जनकपुर से भगवान श्री राम की जन्म भूमि अयोध्या तक की सीधी बस सेवा की शुरुआत की, तो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक रिश्तों में एक नया अध्याय जुड़ गया।
पीएम मोदी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने माता जानकी के जन्म स्थान जनकपुर का दौरा किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने यहीं से रामायण सर्किट की भी घोषणा की है, जिसमें भगवान राम से जुड़ी जगहों को चिन्हित किया गया है। भारत सरकार ने इसके लिए 223.94 करोड़ का बजट पास किया है, जिसमें भारत के 15 शहर समेत श्रीलंका और नेपाल के शहर भी शामिल होंगे। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत, नेपाल के विकास का ही अहम साझीदार नहीं बना है, बल्कि दोनों देशों के बीच विश्वास का नाता भी नये दौर में पहुंच गया है। या यूं कह सकते हैं कि इस कालखंड में भारत-नेपाल रिश्ते अपने स्वर्णिम युग में हैं।
1989 में राजीव गांधी के नेपाल दौरे के समय जब गैर हिंदू होने के कारण सोनिया गांधी को पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया, तो राजीव गांधी ने इसे अपने अनादर के तौर पर लिया। उन्हें लगा कि तत्कालीन राजा बीरेंद्र ने उन्हें अपने तरीके से नीचा दिखाया है। हालांकि पुरी और तिरुपति की तरह ही यहां भी गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है, लेकिन राजीव गांधी अड़ गए और वे पशुपतिनाथ मंदिर से बिना पूजा किए ही लौट गए थे। राजीव गांधी की इस यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंध बेहद बिगड़ गए। भारत ने नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी कर दी, इससे नेपाल पर बहुत बुरा असर पड़ा। वहां भारत विरोधी भावनाएं भडक़ने लगीं और वह भारत को दुश्मन मानने लगा। इस घटना के बाद से ही नेपाल धीरे-धीरे चीन की ओर जाने लगा।
जुलाई 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब नेपाल का दौरा किया तो वे 17 वर्षों के बाद नेपाल जाने वाले पहले पीएम बने। दरअसल 1989 के बाद कांग्रेस की कुनीति के कारण दोनों देशों के संबंधों में जो खटास आई थी, उसे खत्म करने के लिए 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नेपाल दौरा किया था। लेकिन यूपीए सरकार के 10 वर्षों के दौरान रिश्ते और बिगड़ते चले गए, परन्तु अपने चार वर्षों के कार्यकाल में ही प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी नेपाल यात्रा साबित करती है कि भारत, नेपाल को कितना अहम मानता है। जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी ने नेबहुड फस्र्ट नीति में भी नेपाल को पहले पायदान पर रखा है।
अप्रैल के पहले हफ्ते में जब नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली जब भारत दौरे पर आए थे तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘नेपाल के विकास में भारत के योगदान का लंबा इतिहास रहा है और मैंने प्रधानमंत्री ओली को आश्वस्त किया है कि यह भविष्य में भी यह योगदान जारी रहेगा।’ भारत ने अपने इस वादे को निभाया है दिल्ली और काठमांडू को नई रेल लाईन से जुडऩे जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब सार्क सेटेलाइट की घोषणा की थी तो उनका मकसद अपने पड़ोसी देशों को तकनीक के जरिये आपस में जोडऩा था। इस पहल में भी भारत ने नेपाल को प्रमुखता दी और मुफ्त में संचार सुविधा देने का ऐलान किया। अब भारत-नेपाल के साथ मिलकर आइ-वे, रेलवे के साथ वाटरवे का भी विकास करना चाहता है। अप्रैल, 2018 में जब नेपाल के पीएम ने भारत का दौरा किया तो इसकी कार्ययोजना भी प्रस्तुत की गई थी। 27 अप्रैल, 2015 को नेपाल की धरती में हलचल हुई और आठ हजार से ज्यादा जानें एक साथ काल के गाल में समा गईं। जान के साथ अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ सो अलग। हलचल नेपाल में हुई लेकिन दर्द भारत को हुआ। ये कुछ उदाहरण है जो यह दर्शाते हैं कि नेपाल के प्रति भारत कितना सजग और सर्तक है।
चीन की पनबिजली परियोजना को नेपाल की ना
नेपाल सरकार ने चीन द्वारा बुढी गण्डकी नदी पर पनबिजली परियोजना के निर्माण को साफ ना कह दिया है। यह प्रॉजेक्ट साल 2016 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के कार्यकाल के दौरान चीन की एक कंपनी को दिया गया था। हालांकि, इस फैसले से नई दिल्ली की चिंता का निपटारा हो गया। नेपाल की पिछली सरकार ने चीन से इस प्रॉजेक्ट को अपनी बेल्ट ऐंड रोड पहल के तहत शुरू करने को भी कहा था। भारत को यह चिंता थी कि अगर चीन यह प्रॉजेक्ट शुरू कर देता है तो नेपाल में उसका निवेश भारत से भी ज्यादा हो जाएगा। प्रचंड सरकार ने बिना टेंडर निकाले ही, यह कॉन्ट्रैक्ट चीन की जेझूबा ग्रुप कंपनी को दे दिया था। नेपाल के ऊर्जा मंत्री बर्षा मान पुन ने घोषणा करके यह जानकारी दी कि सरकार अब बुढी गण्डकी पनबिजली परियोजना के निर्माण के लिए दुनिया भर की कंपनियों को आमंत्रित करेगी। इस प्रोजेक्ट से करीब 1200 मेगावॉट बिजली उत्पादित होने की संभावना है। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 2.73 अरब डॉलर है।
-अक्स ब्यूरो