21-May-2018 08:47 AM
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मप्र में भाजपा यानी शिवराज सिंह चौहान। यह नारा पिछले 13 साल से भोपाल से लेकर दिल्ली तक लगता रहा है। लेकिन अब अचानक भाजपा आलाकमान का संगठन से मोह हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार चेहरा नहीं संगठन के बलबूते मैदान में उतरेगी। अमित शाह ने नए फॉर्मूले से भाजपा कार्यकर्ता असमंजश में हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर आलाकमान का उन पर इतना दुलार क्यों? दरअसल, संगठन और संघ की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि सरकार की साख गिरी है। जनता सरकार के काम से संतुष्ट नहीं है। ऐसे में पार्टी को लगातार चौथी बार कार्यकर्ता ही सत्ता दिला सकते हैं। इसलिए भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में शाह ने जीत का मंत्र देते हुए कहा कि मप्र में 65 लाख कार्यकर्ताओं का डाटा है। ये 5 दिन भी जनता तक पहुंच जाए तो कोई नहीं हरा सकता। सत्ता में आने के बाद लगातार रसमलाई खाने वालों को खांटी कार्यकर्ता फिर याद आने लगे हैैं। वजह है उसकी ख्वाहिशें और ख्वाब दोनों बहुत छोटे होते हैैं। पांच साल की सरकार में साढ़े चार साल उसकी उपेक्षा और अनादर कीजिए, चुनाव के छह महीने पहले उसकी वीरगाथा गाईये, थोड़ी मीठी-मीठी बातें करिए, उसके छोटे-मोटे काम तत्काल करने के आदेश दीजिए (भले ही काम हो न हों), इसके बाद कहिए, पहले गलतियां हो गई थीं, चुनाव जीत जाएं फिर सब ठीक कर देंगे। देव दुर्लभ कार्यकर्ता हैं, थोड़ी राजी नाराजगी के बाद पिघल ही जाएंगे। अब ऐसा ही हो रहा आया है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी टीम के साथ मध्यप्रदेश समेत जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैैं वहां खम्ब ठोंक कर जीतने की योजना पर काम कर रहे हैैं। इसलिए उन्होंने सीधे-सादे कार्यकर्ताओं से जो कहा उसका लब्बोलुआब यह है कि आपके एक-एक पल पर हमारा अधिकार है। लेकिन चुनाव साल में याद आ रहे जिताने वाले कार्यकर्ता सोच रहे हैं कि हम मलाई में सपरिवार डुबकी लगाने वाले नेताओं को क्यों जिताएं? इसके संकेत उसने चार विधानसभा उप चुनाव अटेर, चित्रकूट, मुंगावली और कोलारस में भाजपा की हार के साथ दे दिए हैैं। इसके बाद भी कोई न समझे तो उन्हें क्या कहेंगे?
मध्यप्रदेश के संदर्भ में उन्होंने कहा हम यहां लगातार चुनाव जीत रहे हैैं, जबकि हकीकत यह है कि विधानसभा के चार उप चुनाव लगातार भाजपा हार गई क्योंकि ऐसा संभव नहीं है कि प्रदेश में भाजपा के चार उपचुनाव और एक लोकसभा रतलाम में हारने की जानकारी अमित शाह को न हो। हम विस्तार में नहीं जा रहे हैैं लेकिन नगरीय चुनाव में भी भाजपा ने बिखरी कांग्रेस के खिलाफ पूरी ताकत लगाई तो मतदान का प्रतिशत दोनों को बराबर याने 45-45 फीसदी मिला था। यह सब देवदुर्लभ कार्यकर्ता से चुनाव जिताने की याचना आदेश के रूप में की जा रही थी। एक और बात जोडऩा चाहते हैैं। शाह के भोपाल प्रवास के ठीक पहले बतौर तोहफा सिवनी विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक दिलीप मुनमुन राय को भाजपा में शामिल किया गया। यहां जोड़तोड़ करने वाले को शाबासी भले ही मिल जाए लेकिन सिवनी का वो कार्यकर्ता जिसने 2013 में मुनमुन राय के खिलाफ चुनाव लड़ा हो वह पार्टी और नेताओं को दुआएं तो नहीं दे रहा होगा क्योंकि मुनमुन राय की आमद के साथ सिवनी में उसका और उसके पीछे विधानसभा चुनाव का टिकट लेने की कतार में खड़े कार्यकर्ताओं का भविष्य चौपट हो गया। यही वजह है कि पिछले साल अगस्त में जिन अमित शाह ने 230 सीट वाली राज्य की विधानसभा में अबकी बार 200 पार का नारा दिया था वह उसे दोहराने का साहस नहीं कर पाए। इतना तो उन्हें समझ में आ गया कि हवाई नारों और कार्यकर्ता की उपेक्षा कर लक्ष्य हासिल करना नामुमकिन भले न हो लेकिन मुश्किल जरूर है।
अब कमलनाथ की होगी घेराबंदी
लंबे समय से भाजपा सिंधिया को टारगेट बना रही थी, क्योंकि लगता था कि कांग्रेस हाईकमान उन पर सारा दारोमदार छोडऩे वाला है, पर कांग्रेस आलाकमान ने तो कमल के मुकाबले कमलनाथ को चुना। अब भाजपा ने नाथ को नया टारगेट बनाने की स्कीम पर काम शुरू कर दिया है। इसका श्रीगणेश पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने किया है। डेढ़ साल से कांग्रेस में फेरबदल की चर्चाएं गर्म थीं। दो उपचुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद लग रहा था कि सिंधिया को हाईकमान प्रदेश का नेतृत्व सौंप सकता है, पर नर्मदा किनारे से दिग्विजय सिंह हाईकमान के लगातार संपर्क में थे और उन्होंने कमलनाथ को कुछ समय के लिए केंद्र की राजनीति छोडक़र प्रदेश का नेतृत्व करने के लिए तो मनाया ही, हाईकमान को भी राजी किया कि सिंधिया के मुकाबले कमलनाथ पर दांव खेलें। भाजपा को जब तक लग रहा था कि सिंधिया प्रदेश की कमान संभालने आ सकते हैं, तब तक प्रभात झा से लेकर पवैया तक उनके पीछे लगे थे। विजयवर्गीय भी इसमें अपने सुर मिलाते थे, पर अब जब सिंधिया के बजाय जिम्मा नाथ पर आया है तो झा पार्टी की स्कीम के अनुसार उनके पीछे लग लिए हैं। अपने पहले बयान में झा ने एकाएक हटाए गए प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को जहां भाजपा में आने का न्योता दिया, वहीं राहुल गांधी व कमलनाथ के मंदिर जाने पर भी चुटकी लेते हुए कहा कि शायद अब इन्हें अक्ल आ गई है। कमलनाथ को ठेकेदार बताते हुए कहा कि एआईसीसी ने प्रदेश नाथ को ठेके पर दे दिया।
- भोपाल से अजय धीर