21-May-2018 08:46 AM
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पिछले चौदह साल से अधिक समय से सत्ता से दूर रही कांग्रेस को अहसास हो गया है कि मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी का यह आखरी मौका है। अगर इस बार वे एक होकर चुनाव नहीं लड़े तो फिर सत्ता उनके लिए ख्वाब बनकर रह जाएगी। इसीलिए न चाहते हुए भी सभी दिग्गज चुनावी अभियान में जुट गए हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व को ऊपरी मन से ही सही सभी ने स्वीकार कर लिया है। उधर कमलनाथ ने अपनी हुंकार रैली के जरिए अपनी ताकत और उनके प्रति कांग्रेस नेताओं का समर्थन दिखाने की कोशिश की है और सबको साथ लेकर चलने की उनकी चेष्टा के तहत जल्द ही वे अपनी सेना के साथ मैदान में पूरे इलेक्शन तक का रोडमेप लेकर उतरेंगे।
दशकों पहले इंदिरा गांधी के जमाने से केंद्र की राजनीति कर रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ अब सूबे का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। वे सबको साथ लेकर कांग्रेस की यहां सरकार बनाना चाहते हैं, जो कांग्रेस तीन चुनावों से लगातार सत्ता के बाहर रही है, उसके लिए चुनाव जीवन और मरण का सवाल है, क्योंकि यदि इस बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो फिर उसे कोई सत्ता में ला नहीं पाएगा। इसलिए कांग्रेस आलाकमान मध्यप्रदेश के मसले पर बहुत गंभीर है और केंद्र के नेता कमलनाथ को बहुत जिम्मेदारी के साथ मध्यप्रदेश में कमल को मुरझाने और पंजे को हरा-भरा बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
कमलनाथ पद संभालने के बाद से ही लगातार सक्रिय हैं। यही नहीं उन्होंने अभी तक सभी गुटों को साधने की भरपूर कवायद भी की है। इसीलिए पुराने चावल सीपी शेखर प्रदेश कांग्रेस में संगठनात्मक कामों के उपाध्यक्ष बना दिए गए। दिग्गी समर्थक गोविंद गोयल को फिर कोष का जिम्मा सौंपा गया तो बेहतर मीडिया प्रबंधन के लिए नरेंद्र सलूजा मीडिया समन्वयक के रूप में पुरस्कार पा गए। माणक अग्रवाल की लंबे समय बाद वापसी भी नाथ ने कराई है। कुल जमा पुराने लोगों का नए लोगों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश हो रही है। यदि कमलनाथ ने मई से नवम्बर के इन 7 महीनों में अपनी सारी व्यस्तताएं छोडक़र खुद को इस प्रदेश पर केंद्रित कर रखा और जैसा कि उनका प्लान है, उसके अनुरूप वे प्रदेशभर में सबके साथ घूमे तो निश्चित तौर पर कांग्रेस और उसका वर्कर चार्ज हो जाएगा।
कमलनाथ ने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संकेत दे दिए है कि हमारा एकमात्र लक्ष्य कांग्रेस को जिताना और सरकार बनाना है। इस बार तेरे-मेरे की कोई कहानी नहीं होगी। जिसके साथ जनता का समर्थन होगा और जो सर्वे में भारी होगा, टिकट उसी को मिलेगा। कोई पट्ठेबाजी, गुटबाजी नहीं होगी। उन्होंने कहा है कि केवल हमें चुनाव जीतना है। जो चुनाव जीत सकता है, जनता में जिसकी साफ छवि है टिकट उसी को मिलेगा। कोई दिल्ली-भोपाल नहीं चलेगा, कोई तेरा-मेरा, पट्ठेबाजी, गुटबाजी नहीं होगी। उन्होंने यह भी साफ कह दिया कि अब तक शहर और जिला इकाइयां किसी भी मामले में प्रदेश इकाई का मुंह देखती रहती थीं कि वहां से निर्देश आए, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। हर शहर और जिले के अपने मुद्दे होते हैं। इसलिए मुद्दा मिला, वैसे ही बिना निर्देश के आंदोलन करने लग जाएं। चुनाव तक सब अपने आपको गतिमान रखें। हर कीमत में हमें प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाना है।
उधर चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी महाकाल की नगरी से चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। वे प्रदेश के दर्जनभर से अधिक जिलों में सभाएं कर सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में जुट गए हैं। अपनी हर सभा में सिंधिया यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेेस भाजपा को उखाड़ कर ही दम लेगी। वहीं नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। अजय सिंह लगातार मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर वार कर रहे हैं। इस तरह कांग्रेस फिलहाल एक नए जोश में दिख रही है। उधर कमलनाथ ने मानक अग्रवाल सहित कई नेताओं को मुख्यधारा मेें लाकर सरकार को घेरने का पूरा जतन कर लिया है।
क्या कांग्रेस में एकता कायम रहेगी?
कमलनाथ के हाथों कमल दल क्या पराजित होगा? क्या कमल मुरझाएगा? क्या पंजा फिर आबाद होगा? ऐसे ढेर सवाल हैं। क्या कांग्रेस की संतरे जैसी दिखावे की एकता कायम रहेगी या उसका छिलका उतर जाएगा और सारी चीरें सामने आ जाएंगी या फिर चुनाव तक एकता का छिलका चढ़ा रहेगा और वाकई सब दिल से राहुल गांधी के फैसले का सम्मान करते हुए प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता वापसी के लिए इसी तरह जुटे रहेंगे, जिस तरह विगत दिनों कमलनाथ की रैली में जुटे थे। कहीं ऐसा न हो कि चुनाव के समय टिकट बंटवारे के दौरान तेरे घोड़े से मेरा गधा बेहतर वाला फार्मूला फिर चल निकले और जीतने वाले प्रत्याशियों के बजाए हारने वाले पट्ठे टिकट पा जाएं। बहरहाल अभी सीन तो ठीक दिखाई दे रहा है, कमलनाथ की अगुवाई में सारे नेता एक जाजम पर हैं। सबको लग रहा है कि यदि सरकार ही नहीं रही तो उनका भी अस्तित्व मिट जाएगा। आधे से ज्यादा कांग्रेसी या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या तटस्थ हो गये हैं या भाजपा में चले गए हैं। अबकी बार पांच साल के लिए फिर कभी जनादेश भाजपा के पक्ष में आ गया तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो जाएगा। केवल नेता-नेता बच जाएंगे और कार्यकर्ता ढूंढे नहीं मिलेंगे। कमलनाथ इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं।
- भोपाल से अरविंद नारद