21-May-2018 08:19 AM
1234818
इन दिनों पशु चिकित्सा सेवाएं, मप्र में पदस्थ पशु चिकित्सा शल्यज्ञ डॉ. गगन सक्सेना को लेकर इन दिनों प्रदेश में एक अनार कई बीमार वाली स्थिति बन गई है। डॉ. गगन सक्सेना वैसे तो मूलत: पशु चिकित्सा शल्यज्ञ हैं, लेकिन उनको चाहने वाले नेता और अधिकारियों की भरमार है। आलम यह है कि अपने-अपने विभागों में पदस्थ विभागीय जानकार अधिकारियों को छोडक़र कई अफसर इन्हें अपने विभाग में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ करवाना चाहते हैं। इसके लिए कइयों ने पत्र भी लिखे हैं।
उल्लेखनीय है डॉ. गगन सक्सेना 2015 से 2017 तक मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के निज सचिव के पद पर पदस्थ रहे थे। उसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने 29 दिसंबर 2017 को उनकी सेवाएं उनके पैतृक विभाग पशुपालन विभाग में वापस कर दी। उसी दिन संचालक डॉ. आरके रोकड़े ने प्रतिनियुक्ति से वापस आने पर इनकी पदस्थापना पशु चिकित्सालय जावर जिला सीहोर में की थी। तभी से डॉ. सक्सेना को प्रतिनियुक्ति पर लेने के लिए होड़ सी मच गई है।
16 फरवरी 2018 को पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव हरिरंजन राव ने डॉ. सक्सेना को मप्र टूरिज्म बोर्ड में प्रतिनियुक्ति पर लेने के लिए पत्र लिखा। उसके बाद 13 मार्च 2018 को अपर मुख्य सचिव योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी दीपक खाण्डेकर ने उनकी सेवाएं निदेशक क्षमता सेल में प्रतिनियुक्ति पर लेने के लिए पत्र लिखा। उसके बाद राजगढ़ सांसद रोड़मल नागर ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख डॉ. सक्सेना को राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन राजगढ़ में प्रतिनियुक्ति पर दिए जाने की मांग की। उधर खेल एवं युवक कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया अभी भी डॉ. सक्सेना को प्रतिनियुक्ति पर लाना चाहती हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एक पशुचिकित्सक में ऐसी कौन सी खूबियां हैं जिसके कारण उन्हें दूसरे विभाग के अफसर प्रतिनियुक्ति पर अपने यहां पदस्थ करना चाहते हैं। उधर 19 अप्रैल 2018 को पशुपालन विभाग ने डॉ. गगन सक्सेना को तत्काल प्रभाव से आगामी आदेश तक पशु चिकित्सालय जावर जिला सीहोर में पदस्थ करने का दोबारा आदेश दिया है।
दरअसल डॉ. गगन सक्सेना को विभिन्न विभागों द्वारा प्रतिनियुक्ति पर लिए जाने की होड़ यह दर्शाती है कि डॉ. सक्सेना का रसूख कितना दमदार है। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि यह जानते हुए भी कि प्रदेश में पशुचिकित्सकों की कमी है। सरकार में बैठे अधिकारी एक पशुचिकित्सक को बाबू बनाने पर क्यों तुले हुए हैं। ज्ञातव्य है कि अभी हाल ही में सरकार ने पशुपालकों के पशुओं के लिए घर पर ही स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने की योजना शुरू की है। पशुओं के इलाज के लिए डायल 1962 सेवा शुरू की गई है। जिस पर पशु के बीमार होने पर पशु मालिक कॉल करेगा और पशु चिकित्सक घर इलाज करने पहुंचेंगे। लेकिन यह योजना साकार कैसे हो पाएगी जब पशु चिकित्सक बाबूगिरी करेंगे। दरअसल प्रदेश में यह परंपरा खूब देखने को मिल रही है कि अपना मूल काम छोडक़र अधिकारी-कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए उतावले रहते हैं। ऐसे अधिकारी-कर्मचारी विभिन्न माध्यमों से जुगाड़ लगाकर अपना हित साधना चाहते हैं।
- कुमार राजेंद्र