26-Apr-2018 12:46 PM
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भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई में हुए संगठनात्मक परिवर्तन को अगर बेहद कम शब्दों को समेटें तो यही कहा जा सकता है कि कुछ प्रत्याशित और थोड़ा अप्रत्याशित। पार्टी के भीतर और बाहर यह संभावनाएं तो काफी पहले से जताई जा रही थीं कि प्रदेश इकाई की कमान नंदकुमार सिंह चौहान से वापस ली जानी है। प्रत्याशित ये भी था कि 2008 और 2013 की तरह इस बार भी शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी के नेतृत्व में भी भाजपा चुनाव में उतरेगी। लेकिन यह अंदाजा कम ही लोगों को था कि नंदकुमार सिंह चौहान के उत्तराधिकारी जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से तीन बार के सांसद राकेश सिंह बनेंगे। यह अप्रत्याशित था।
राकेश सिंह को मिला-जुला अध्यक्ष माना जा सकता है। वह इसलिए कि फ्रेम वही-पिक्चर नई वाली रणनीति के साथ प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष मिला है। यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिसको चाहा उसको अध्यक्ष बना दिया। वैसे अध्यक्ष पद के लिए नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा प्रबल दावेदार थे। लेकिन दलित आंदोलन के बाद बदले घटनाक्रम को देखते हुए सारे कयासों को दरकिनार कर राकेश सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। यानी प्रदेश के लिए योग्यता की बजाए जातियता को प्राथमिकता दी गई है। वैसे देखा जाए तो राकेश सिंह की महाकोशल के बाहर कोई पहचान नहीं है। यही स्थिति नंदकुमार सिंह चौहान की भी थी, लेकिन उस समय भाजपा चुनावी मोड में नहीं थी। अब नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियों का पहाड़ है। छह महीने बाद विधानसभा चुनाव है। अगली परीक्षा एंटी-इंकमबेंसी फैक्टर को दूर कर पार्टी को बहुमत दिलाने की होगी। महाकोशल-विंध्य क्षेत्र में भाजपा के पास 68 में से 41 सीट पहले से हैं। अगले चुनाव में इसे बढ़ाकर संगठन को अपने प्रभाव को दिखाना होगा।
राकेश सिंह पर कांग्रेस के आक्रामक तेवरों का जवाब देने की भी जिम्मेदारी होगी। पूर्व सीएम की नर्मदा यात्रा के दौरान से ही भाजपा नर्मदा में अवैध उत्खनन और 6 करोड़ पौधरोपण में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर कांग्रेस के निशाने पर है। सांसद इस क्षेत्र से वाकिफ हैं। इन आरोपों से बैकफुट पर आई पार्टी को आक्रामक करना होगा। भाजपा में भी क्षेत्रीय क्षत्रप तैयार हो रहे हैं। संगठन और सत्ता से उनका समन्वय बनाना चुनौती होगा। गुटबाजी को भी दूर करना होगा। इसके साथ ही नोटबंदी और जीएसटी के बाद भाजपा के परंपरागत, व्यावसायिक वर्ग के नाराज वोटर को साधना चुनौती होगा। प्रदेश में दलित, किसान, पिछड़ा वर्ग को भी पार्टी से जोडऩा होगा।
पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि राकेश सिंह की नियुक्ति क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए की गई है। प्रदेश के चारों कोने से पार्टी ने प्रदेश या राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व देकर क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश की है। इस संतुलन के अनुसार वर्तमान समय में चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर (चुनाव अभियान समिति प्रभारी), मालवा में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, भोपाल (बुदनी) से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो महाकोशल-विंध्य से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष। हालांकि प्रदेश चुनाव समिति के गठन में जातिगत समीकरण साधने की कोशिश हुई है। प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ओबीसी कोटे से हैं तो प्रदेश चुनाव अभियान समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर और सह संयोजक नरोत्तम मिश्रा जनरल कैटेगरी से हंै। एक अन्य सह संयोजक फग्गनसिंह कुलस्ते एससी कोटे तो दूसरे सह संयोजक लालसिंह आर्य एससी कोटे से हैं। संतुलन साधने की यह कवायद आगामी चुनाव में क्या गुल खिलाती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन राकेश सिंह की नियुक्ति से भाजपा का एक वर्ग नाखुश नजर आ रहा है।
नए अध्यक्ष के लिए पहचान का संकट
जबलपुर से तीन बार सांसद रहे राकेश सिंह भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद वे महाकोशल क्षेत्र में तो कांग्रेस के नेता कमलनाथ की काट साबित होंगे लेकिन प्रदेश के कई क्षेत्रों में उनकी पहचान का संकट है। कई इलाकों में उनका नेटवर्क नहीं है। पार्टी के कई कार्यकर्ता ही उन्हें नहीं जानते हैं। ऐसे में क्षेत्रीय समीकरणों के मामले में उन्हें स्थानीय क्षत्रपों के भरोसे ही रहना होगा। सिंह का प्रभाव महाकोशल क्षेत्र में ज्यादा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ की भी विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। पार्टी में हुआ बदलाव विंध्य और महाकोशल के क्षेत्रीय समीकरण के हिसाब से फायदेमंद साबित होगा, लेकिन मालवा-निमाड़, भोपाल संभाग में नए भाजपा अध्यक्ष सिंह को जमीन तैयार करना होगी, हालांकि इसमें अरविंद मेनन उनके मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि जब उन्हें जबलपुर की जिम्मेदारी मिली थी तब सिंह उनके करीबी नेताओं में माने जा रहे थे। संभागीय संगठन मंत्री के समय मेनन ने जो मेहनत की है उस कारण मालवा और निमाड़ के कार्यकर्ताओं में आज भी गहरी पैठ है, जो सिंह के लिए भी मददगार साबित होगी। वहीं भोपाल संभाग में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनका भरपूर साथ मिलेगा। फिर भी राकेश सिंह के सामने पहचान का संकट परेशानी खड़ा करता रहेगा। ऐसे में उन्हें अपनी सक्रियता रात दिन बढ़ानी पड़़ेगी।
- भोपाल से अजय धीर