पलायन मजबूरी या आदत?
21-May-2018 08:23 AM 1234871
बुंदेलखंड में सरकारी दावों के बाद भी पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। मध्य प्रदेश के छतरपुर से सागर की तरफ जाने वाले रास्ते में जिला मुख्यालय से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है खडग़ांय। गांव तक जाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत बनाई गई पक्की सडक़ है, लेकिन इस सडक़ पर आवाजाही इन दिनों न के बराबर है। वजह गांव की लगभग 70 फीसदी आबादी काम की तलाश में परदेस जा चुकी है। यहां अभी अगर कोई बचा है तो कुछ बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं। गांव के अधिकांश घरों में ताले लटके नजर आते हैं। लोग बताते हैं कि गांव की उप-सरपंच मंजू अहिरवार तक काम की तलाश में पति के साथ दिल्ली चली गई हैं। दरअसल बुंदेलखंड में पलायन का मौसम आ चुका है। एक तरफ खेतों से फसलें कटकर बाजार में पहुंच रही हैं, खेत सूने हो रहे हैं। दूसरी तरफ अपनी जड़ों से कटकर बुंदेलखंड के लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जम्मू, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, लेह-लद्दाख तक पहुंच रहे हैं और गांव के गांव सूने होते जा रहे हैं। जो बचे हैं उनमें बुजुर्ग, महिलाओं और छोटे बच्चों के अलावा सिर्फ वे हैं जिन्हें अपना घर-गांव छोडऩा रास नहीं आता, लेकिन जो जा सकते हैं वे जा चुके हैं, जा रहे हैं या जाने वाले हैं। खडग़ांय की तरफ मुडऩे से पहले बगौता तिराहे पर कुछ लोगों की बातों से इसकी मिसाल मिलती है। इनमें से एक हैं राजापुर-बराज गांव के रामसेवक लोधी। इनका गांव छतरपुर जिले की ही बड़ामलेहरा तहसील के अंतर्गत आता है। एक सवाल पर वे बताते हैं, ‘आज-कल तौ पूरौ गांवइ खाली हो गओ साब। गांव में 400-500 की आबादी हुई है। मैं 40-50 जनैं बचे।’ आप क्यों नहीं गए काम की तलाश में बाहर? जवाब में कहते हैं, ‘गए ते साब। एक-दो दफै हमऊं गए ते। पर अच्छो नईं लगो सो भग आए। फिर नईं गए कभऊं। अब इतईं जौन काम मिल जात ओइ सैं खर्चा चला लेत।’ रामसेवक के खुद के संबंधी भी इन दिनों दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में हैं। यहां इतना काम मिल जाता है कि खर्चा चल जाए? इसका जवाब रामसेवक के पास में ही खड़े ललौनी गांव के रामदयाल कुशवाहा देते हैं, ‘काम-वाम कछू नईं मिलत साब। मिलत होतो तौ का कोऊ घर-बार छोड़ कैं परदेस जातो भलां। अब हम औंरन खां नई पुसात (पसंद) सो नईं गए बाहर। सो जौ देख लो जे बैठे ठलुआ (निठल्ला)।’ रामदयाल का छोटा बेटा इन दिनों लद्दाख में है। जो थोड़ी बहुत फसल वगैरह हुई है उसे बेचने के बाद बड़ा भी वहीं जाने वाला है। यह बुंदेलखंड के कुछ गांवों की नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र की कहानी है। तो सरकारी राशन कहां जाता है? सवाल उठता है कि जिस दौरान बुंदेलखंड के लोग नौकरी की तलाश में पलायन करते हैं उस दौरान उनके हिस्से का सरकारी राशन कहां जाता है? इस सवाल पर इस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि हमें क्या मालूम। जब उनसे पूछा जाता है कि राशन इकट्ठा मिलता है या नहीं? तो उनका जबाव होता है ‘अरे काए खां मिलत। सब वेई (राशन दुकान वाले) खा जात, भडय़ा (चोर) सबरे। बेंच देत सब बाजार में।’ बुंदेलखंड में सरकारी योजनाओं के भ्रष्टाचार की ऐसी ही कहानी है। यही कारण है कि यहां पलायन जोरों पर है। यहां के युवा इस पूरे चलन (पलायन के) को एक तरह से ठीक ही ठहराते हैं। उनकी दलील है, ‘सर मुझे देखिए। मेरी उम्र अभी 24 साल है। मैं 12 साल से बाहर कमाई के लिए जा रहा हूं। उसी कमाई के बल पर आज मैंने थोड़ी-बहुत पढ़ाई कर ली है। इससे आज आप जैसे लोगों से बात कर पा रहा हूं। घर वालों को कुछ कमाकर दे पाता हूं। दो पैसे बचा लेता हूं इसलिए बीवी-बच्चों के भले के बारे में थोड़ा-बहुत सोच लेता हूं। क्या यहां रहकर यह सब हो पाता?’ दीपक के साथी ओमप्रकाश 12 साल से काम के लिए जम्मू जा रहे हैं। वे अभी वहां किसी ठेकेदार के मातहत ड्राइवरी करते हैं। पलायन का एक पहलू शोषण से जुड़ता है छतरपुर के नजदीकी अमरोनिया गांव के ओमप्रकाश अभी 24 साल के हैं। साल-छह महीने की एक छोटी सी बच्ची के पिता भी हैं। वह बच्ची अभी उनकी गोद में खेल रही है। लेकिन जल्द ही उसके पिता का साथ उससे छूट जाने वाला है। ओमप्रकाश भी काम की तलाश में दिल्ली जाने वाला हैं। पलायन के सवाल पर वे खड़ी हिंदी में मार्मिक सा जवाब देते हैं, ‘सर आप ही बताइए, इतनी सी बच्ची को घर में छोडक़र कोई मजबूरी में परदेस जाएगा या आदत की वजह से?’ वहीं कदवारा गांव के एक अधेड़ रामलाल अहिरवार ठेठ बुंदेली में पलायन के एक दूसरे पहलू की तरफ भी रोशनी डालते हैं। वे कहते हैं, ‘घर कौ मुखिया बाहरें चलो जात तौ राशन की दुकान वारे राशन तक नई देत।’ फिर घर का खाना-पानी कैसे चलता है? ‘कैसें का। बनियन सें उधारी लेत। महिनन-महिनन। फिर जब मुखिया लौटत तौ वेई कर्जा चुकाउत। -धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^