अधर में स्मार्ट सिटी
27-Apr-2018 06:19 AM 1234790
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न्यू इंडिया का सपना देख और दिखा रहे हैं, लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार ने जितनी भी योजनाएं शुरू की हैं, वे अधर में लटकी हुई हैं। इन्हीं में से एक है स्मार्ट सिटी की योजना। विभिन्न राज्यों के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी की सौगात मिली है। इनमें मप्र के 7 शहर (भोपाल,  इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर, उज्जैन और सतना) शामिल हैं। केंद्र सरकार ने सभी 100 स्मार्ट सिटी के लिए 9,943.22 करोड़ रूपए आवंटित किए लेकिन करीब 3 साल में 1.8 फीसदी से ज्यादा का उपयोग नहीं हो सका है। यही हाल अन्य योजनाओं का भी है। मध्यप्रदेश सरकार ने अपने सात शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए भी अपने बजट में शामिल किया है। मध्यप्रदेश के इन शहरों के लिए 700 करोड़ का प्रावधान किया है। अभी हाल ही में आई शहरी विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में शुरू होने के बाद से स्मार्ट सिटी मिशन (एससीएम) के लिए जारी की गई राशि 9943.22 करोड़ रूपए में से अभी तक 182.62 करोड़ रूपए ही खर्च किए गए हैं। देश में 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लिए केंद्र सरकार ने आनन-फानन में फंड तो जारी कर दिया, लेकिन राज्य सरकारों ने उसका भरपूर उपयोग नहीं किया। शहरी विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार  मिशन में 3 वर्षों के बाद भी पहचान की गई परियोजनाओं में से अधिकांश अभी भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के चरण में हैं। परियोजनाओं का केवल 4 फीसदी फरवरी 2018 तक पूरे किए गए थे। स्मार्ट सिटी के तहत सबसे ज्यादा परियोजनाओं का कार्यान्वयन करने में सूरत देश के 20 शहरों में सबसे आगे है। सूरत के बाद विशाखापत्तनम, पुणे, अहमदाबाद, उदयपुर, भोपाल और कोयंबटूर का नंबर आता है। अगर भोपाल में स्मार्ट सिटी के कार्यों पर नजर डाले तो स्पष्ट हो जाता है कि देश के अन्य शहरों में क्या स्थिति होगी। भोपाल को स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल हुए तीन साल गुजर चुके हैं, लेकिन स्मार्ट सिटी के नाम पर शहरवासियों को अब तक सिर्फ माय बाइक (साइकिल) और एक एंड्रोएड एप भोपाल प्लसÓ ही मिल सका है। पेन एरिया डेवलपमेंट सेगमेंट में स्मार्ट रोड, स्मार्ट स्ट्रीट, बोलेवार्ड स्ट्रीट जैसी सड़कों के निर्माण की कवायद चल रही है, लेकिन विवाद और काम में सुस्ती के कारण इन्हें पूरा होने में डेढ़ से दो साल और लग सकते हैं। स्मार्ट सिटी निर्माण के लिए भोपाल स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन कंपनी को केंद्र और राज्य सरकारों से भले ही 600 करोड़ रुपए से अधिक मिल गए हों, लेकिन जमीन पर 50 करोड़ के काम भी नजर नहीं आ रहे हैं।  स्मार्ट सिटी योजना के तहत शहरी विकास मंत्रालय ने 40 शहरों की सूची बनाकर सभी को 196 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की थी।  मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, इसमें अहमदाबाद ने सबसे ज्यादा 80.15 करोड़ रुपए खर्च किए।  वहीं, राशि खर्च करने के मामले में 70.79 करोड़ के साथ इंदौर दूसरे स्थान पर, 43.41 करोड़ रुपए के साथ सूरत तीसरे स्थान पर और 42.86 करोड़ रुपए की राशि के साथ भोपाल चौथे स्थान पर है। जबलपुर को स्मार्ट सिटी में 7वां स्थान मिलने के बाद विकास के दावों की बाढ़ सी आ गई थी। जबलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के अधिकारी बड़े सब्ज बाग दिखाने के साथ ही हवाई अंदाज में काम कर रहे हैं। यही हाल ग्वालियर, उज्जैन, सागर, सतना का भी है। अधिकारी केवल कागजों पर योजनाएं बना रहे हैं। स्थिति यह है कि स्मार्टसिटी के नाम पर कई कार्यशालाएं हो गई हैं, लेकिन धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। सुगम्य भारत योजना की राशि हुई लैप्स प्रदेश में विकास कार्यों की क्या स्थिति है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिव्यांगों की मदद के लिए पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई सुगम्य भारत अभियान की राशि ही लैप्स हो गई। मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश को 2017-18 के लिए 12 सरकारी भवनों में रैप व अन्य सुविधाओं के लिए 3.67 करोड़ रुपए दिए गए थे। प्रदेश सरकार ने यह बजट भोपाल ओर इंदौर के सरकारी भवनों के लिए रखा था। इसमें भोपाल के सतपुड़ा और विंध्याचल भवन शामिल है। लेकिन अफसर इस फंड का उपयोग नहीं कर सकें। - राजेश बोरकर
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