17-Apr-2018 07:41 AM
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मध्य प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाए? कांग्रेस इन दिनों इस मुद्दे पर बुरी तरह उलझी हुई है। कभी कमलनाथ का नाम सुर्खियों में तैरता है तो कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया का। हालांकि दिग्विजय सिंह को कमान सौंपी जाएगी, इस बात की फिलहाल कोई गुंजाइश दिखाई नहीं देती, तब भी उनके कट्टर समर्थक मानते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वापसी केवल उन्हीं की अगुआई में हो सकती है। यानी पूरी कांग्रेस तिकड़ी में फंसी हुई है। पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भाजपा को घेरने की बजाय अपने प्रिय नेता को चेहरा बनाए जाने का इंतजार कर रहे हैं।
उधर, मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव के चाहने वाले दावा कर रहे हैं कि बड़े नेताओं के समर्थक चाहे जो दावा करें, लेकिन चुनाव तो यादव की अध्यक्षता में ही होंगे। इन लोगों का कहना है कि असल में अरुण यादव कांग्रेस के उन युवा नेताओं में शामिल हैं जिन्हें खुद राहुल गांधी ने खड़ा किया है। इसलिए यादव को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। नेतृत्व किसके हाथों में होगा, इस पर फिलहाल सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं, लेकिन ये तय है कि अब एक-एक दिन की देरी भी कांग्रेस को भारी पड़ेगी। वहीं नेताप्रतिपक्ष अजय सिंह इन दिनों अरूण यादव के साथ नजर आ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि अगले कुछ दिनों में प्रदेश में चुनावी माहौल बनने लगेगा और एक बार जो माहौल बन जाएगा, वो चुनाव तक कायम रहेगा। अब चूंकि चुनाव साल के आखिर में होना हैं, इसलिए यह पूरा साल तो चुनावी साल ही रहेगा। इसीलिए कांग्रेस के पास काम करने-दिखाने और अपने पक्ष में माहौल खड़ा करने के लिए सही मायने में अब वक्त नहीं है। असल में, यदि बीजेपी को कड़ी टक्कर देनी है तो कांग्रेस को जबर्दस्त मेहनत करनी पड़ेगी। पिछले 14 साल पर नजर डालें तो इस दौरान कभी भी कांग्रेस ऐसी कोशिश करती नजर नहीं आई जिसके बलबूते बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया जा सके।
हालांकि अधिकांश कांग्रेस नेता व उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि इस दफा खुद जनता आगे आएगी, कांग्रेस के पक्ष में वोट करेगी और बीजेपी को सत्ता से बाहर कर देगी। कांग्रेसियों के मुताबिक जनता बीजेपी सरकार से बेहद नाराज है। इस नाराजगी को कम करने के लिए बीजेपी इस दफा जमकर अपने मौजूदा विधायकों के टिकट काटने का प्रयोग कर सकती है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इसे नाराजगी कम करने का एक टेस्टेड फॉर्मूला मानते हैं और इस सबके सिवाय जब तक कांग्रेस इस नाराजगी को वोट में तब्दील करने की कोशिश नहीं करेगी, तब तक उसका सत्ता में लौटना महज सपना ही बना रहेगा। क्योंकि जनता विकल्प तलाशती है और विकल्प खड़ा करने का काम विपक्ष का होता है। इस बात को समझने के लिए हम 2003 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव को देख सकते हैं। 2003 के चुनाव तक प्रदेश की जनता दिग्विजय सिंह सरकार से आजिज आ चुकी थी, वो कांग्रेस सरकार से छुटकारा चाहती थी। बीजेपी ने उमा भारती को विकल्प बनाकर जनता के सामने खड़ा किया और गुस्से को वोट में तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कुछ ऐसा ही 2014 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ था। मनमोहन सिंह के विकल्प के तौर पर नरेंद्र मोदी को उतारा गया, नतीजा सामने है। अगर हम विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इन दोनों ही चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस से जनता लंबे वक्त से नाराज और दुखी थी, लेकिन उसके सामने चुनने को दूसरा विकल्प नहीं था। जैसे ही विपक्ष ने दमदार चेहरा सामने कर विकल्प खड़ा किया, जनता ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया। मगर फिलहाल मध्य प्रदेश में कांग्रेस ऐसा कोई विकल्प खड़ा करती दिखाई नहीं पड़ रही है। यानी कांग्रेस इस वक्त उस जायदाद के इंतजार में बैठी है जो बाप के मरने पर मिलने वाली है। वो लड़ाई के मैदान में है तो, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए, जीतने के लिए नहीं। हालांकि अरुण यादव और अजय सिंह अपनी तरफ से पूरा जोर लगाए हुए हैं, लेकिन उस जोर में इतनी ताकत नहीं कि भाजपा को सत्ता से दूर कर सके।
क्या गुल खिलाएगी यात्रा
भाजपा को घेरने के लिए प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह लगातार प्रयास कर रहे हैं। अभी हाल ही में इन्होंने मंत्री रामपाल के गांव उदयपुरा से भोपाल तक न्याय यात्रा कर सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की। इस यात्रा में उमड़ी भीड़ देखकर कांग्रेसी उत्साहित हैं। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि प्रदेश में महिलाओं की असुरक्षा, अत्याचार के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है। यहां पर दो तरह के कानून चलते हैं। एक आम जनता के लिए दूसरा मंत्रियों और अपने चहेतों को बचाने के लिए। उनका दावा है कि इस बार जनता भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएगी। अब देखना है कि न्याय यात्रा क्या गुल खिलाती है।
- भोपाल से रजनीकांत पारे