27-Apr-2018 06:14 AM
1234809
राजस्थान में भाजपा की कमजोर स्थिति को देखते हुए आलाकमान सरकार में भी परिवर्तन की मंशा बना रहा है। खबर है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व उनके विकल्प की तलाश करने में जुट गया है। दरअसल, राजस्थान में भाजपा के सामने दोहरी चुनौती है। पहली सत्ता विरोधी लहर और दूसरी अपनी उपेक्षा से आहत नेता-कार्यकर्ता। भाजपा का एक खेमा यह मानता है कि इन दोनों चुनौतियों के लिए वसुंधरा राजे की कार्यशैली जिम्मेदार है।
नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक कहते हैं, वसुंधरा राजे ने प्रचंड बहुमत मिलने के बावजूद राजस्थान की सर्वाधिक अलोकप्रिय सरकार दी है। समाज के किसी भी तबके के लिए सरकार ने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है। उल्टे समाज के कई वर्ग सरकार की सुस्ती की वजह से नाराज हो गए हैं। वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज करने और कार्यकर्ताओं से संवादहीनता की वजह से संगठन का ढांचा पूरी तरह से चरमरा गया है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो विधानसभा चुनाव में पार्टी की दुर्गति होनी तय है।Ó असल में भाजपा जो वादे कर सत्ता में आई थी, उनमें से ज्यादातर अधूरे हैं। सरकार के खाते में गिनाने के लिए तो कई उपलब्धियां हैं, लेकिन जमीन और समाज के बड़े तबकों पर इसका असर नहीं है।
विशेष रूप से युवा सरकार से खुश नहीं हैं। वसुंधरा राजे ने चुनाव से पहले युवाओं को 15 लाख नौकरियां देने का वादा किया था, लेकिन अब तक 50 हजार को भी नौकरी नहीं मिली है। सरकार ने जो भर्तियां निकालीं भी, उनमें से ज्यादातर कानूनी पचड़े में फंस गई। इसके अलावा सरकार के आंदोलनों से निपटने में देरी भी सिरदर्द साबित हुई है। सरकार की अनदेखी की वजह से ही डॉक्टरों की हड़ताल, आनंदपाल एनकाउंटर और किसान आंदोलन सरीखे प्रकरण तिल का ताड़ बन गए।
दरअसल, वसुंधरा राजे का राजनीति करने का अपना अंदाज है। वे अपने काम में किसी भी प्रकार की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं करतीं। उनके करीबी पंचायती राज मंत्री राजेंद्र राठौड़ कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि राजस्थान में वसुंधरा राजे ही भाजपा हैं और भाजपा ही वसुंधरा राजे है। राजे के अब तक के सियासी सफर से यह साबित होता है कि प्रदेश भाजपा में उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। चाहे टिकट बंटवारा हो या मंत्रिमंडल के सदस्यों का चयन। वसुंधरा ने संघ की पसंद और वरिष्ठता को दरकिनार कर घनश्याम तिवाड़ी, प्रताप सिंह सिंघवी, नरपत सिंह राजवी, गुरजंट सिंह, सूर्यकांता व्यास व बाबू सिंह राठौड़ सरीखे वरिष्ठ विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।
यही नहीं, भाजपा के कई नेता वसुंधरा की कार्यशैली की वजह से पार्टी छोड़कर राजनीति की अलग राह पकड़ चुके हैं। इनमें दो विधायक डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और हनुमान बेनीवाल बड़े नाम हैं। इन दोनों नेताओं की अपनी जाति में गहरी पैठ है। डॉ. किरोड़ी की पार्टी में वापसी के लिए संघ लंबे समय से प्रयास कर रहा है, लेकिन वे राजे के नेतृत्व में घर वापसीÓ करने को तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं, मैंने वसुंधरा की कार्यशैली की वजह से ही पार्टी छोड़ी थी। उनके नेतृत्व में पार्टी में शामिल होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।Ó
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के पास यह रिपोर्ट पहले से है। संगठन मंत्री के पद पर चंद्रशेखर मिश्रा की नियुक्ति इसकी पुष्टि करती है, लेकिन वे भी कार्यकर्ताओं में जोश नहीं फूंक पा रहे। ऐसे में क्या यह माना जाए कि वसुंधरा का विकल्प तलाशना भाजपा की मजबूरी बन गया है? सियासी गलियारों में यह चर्चा ललितगेट कांड के बाद से ही गर्म है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा को जल्द ही दिल्ली बुलाकर मोदी मंत्रिमंडल में शामिल करने वाला है। यही नहीं, उनकी जगह मुख्यमंत्री के लिए ओमप्रकाश माथुर, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अर्जुन मेघवाल, सुनील बंसल, गुलाब चंद कटारिया और अरुण चतुर्वेदी सरीखे नामों की चर्चा आम है। क्या वाकई में ऐसा हो सकता है?
कई बार हो चुका है हटाने का प्रयास
सूत्रों के अनुसार पार्टी पहले भी कई बार वसुंधरा को हटाने की सोच चुकी है, लेकिन विधायकों के टूटने के डर से ऐसा नहीं कर पाई। पार्टी के सामने राजे को हटाने से ज्यादा बड़ी चुनौती यह है कि उनकी जगह किसे लाया जाए। बाकी जितने भी नाम हैं, उनमें से किसी का भी इतना बड़ा रुतबा नहीं है कि पूरी पार्टी सहर्ष उनका नेतृत्व स्वीकार कर ले। वसुंधरा को हटाने की चर्चाओं पर प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी कहते हैं कि वसुंधरा राजे पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहेंगी और अगला चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। खुद मुख्यमंत्री स्पष्ट कर चुकी हैं कि उनको हटाने की चर्चाएं उनके पिछले कार्यकाल के समय से चल रही हैं, लेकिन हकीकत सबके सामने है।Ó नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा आते ही वसुंधरा खेमे के नेता पिछले महीने बाड़मेर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की बार-बार याद दिलाते हैं, जिसमें उन्होंने राजे सरकार के कामकाज की तारीफ करते हुए कहा था कि अगली सरकार भी इन्हीं के नेतृत्व में बनेगी।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी