17-Apr-2018 07:49 AM
1234826
इन दिनों दिल्ली से लेकर जयपुर तक तमाम लोगों के बीच सबसे ज्यादा चर्चा अशोक गहलोत के कांग्रेस के संगठन महासचिव बनने को लेकर है। ये एक ऐसा कदम है, जिसने खासकर राजस्थान में कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीजेपी तक में कईयों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है। इन चेहरों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को भी शामिल किया जा सकता है तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी शामिल किया जा सकता है। राजस्थान में आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की संभावनाएं बहुत ज्यादा मानी जा रही हैं। बीजेपी की सत्ता का पांचवा साल चल रहा है और लोगों में राजे सरकार को लेकर गहरी नाराजगी साफ देखी जा सकती है। हाल ही में लोकसभा, विधानसभा और यहां तक कि स्थानीय निकायों के उपचुनावों में भी कांग्रेस उम्मीदवारों की बंपर जीत इसका इशारा बखूबी देती है। सरकार बनने की संभावनाओं ने कांग्रेस में खुशी भी भर दी है।
लेकिन जैसा कि लोगों के बीच मजाक में कही जाने वाली कहावत है कि कांग्रेस में कार्यकर्ता से ज्यादा नेता हैं और हर नेता बड़ा नेता बनने की महत्वाकांक्षा भी पाले रहता है। राजस्थान कांग्रेस में भी जीत की संभावनाएं जगते ही मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो गए हैं। 2 बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत इस पद के स्वाभाविक प्रत्याशी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की दावेदारी भी लगातार मजबूत हो रही है। 2008 में एक वोट से हार के बाद मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए सी पी जोशी भी पीछे नहीं हैं। यूपीए सरकार में मंत्री रहे भंवर जितेंद्र सिंह भी सीएम बनने का सपना देख लेते हैं। सीएम पद की दावेदारी कई जताते हैं लेकिन मुख्य टक्कर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ही है। दोनों ही जानते हैं कि दोनों के एक जगह रहते दोनों में से कोई एक ही मुख्यमंत्री बन सकेगा। एक को बाहर किए बिना दूसरा मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। इसीलिए दोनों ही खेमे एक-दूसरे को अपनी-अपनी ताकत का अहसास कराने में पीछे नहीं रहे हैं।
अशोक गहलोत जहां सोनिया गांधी और अहमद पटेल के करीब माने जाते हैं तो सचिन पायलट पर राहुल गांधी का हाथ बताया जाता है। 1977 से चुनाव लड़ रहे गहलोत की राजनीतिक जादूगरी के किस्से पायलट ने भी सुन रखे हैं। इसीलिए प्रदेश अध्यक्ष बनकर राजस्थान आने के बाद से ही वे लगातार इस कोशिश में हैं कि किसी भी तरह गहलोत को राज्य से राष्ट्रीय राजनीति की तरफ भेज दिया जाए।
दूसरी तरफ, अशोक गहलोत गुट की ये कोशिश रहती है कि हाईकमान की नजर में कैसे भी करके सचिन पायलट के नंबर कम करवाए जाएं। इसीलिए उपचुनावों के समय कई बार आरोप लगता है कि पायलट को सीनियर नेताओं खासकर गहलोत का सहयोग नहीं मिलता। पिछले साल धौलपुर उपचुनाव में बीजेपी की जीत का क्रेडिट बीजेपी से ज्यादा गहलोत की मेहनत को दिया गया।
अप्रैल की तेज होती गरमी के बीच अशोक गहलोत को राष्ट्रीय संगठन महासचिव बनाने से राजस्थान में कई चेहरे बसंत के मौसम में खिल उठे हैं। इनमें सचिन पायलट को सबसे ऊपर रखा जा सकता है। आखिर उनका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी रास्ते से हट गया है। अब पायलट को राजस्थान में फ्री हैंड मिल सकेगा। हालांकि उन्हें सीपी जोशी और जाट नेताओं की तरफ से खतरा बरकरार है। लेकिन ये खतरा उतना बड़ा नहीं है और इनसे निपटना जादूगर गहलोत से निपटने से कम मुश्किल होगा। सचिन पायलट इसलिए भी खुश होंगे क्योंकि उन्हें पता था कि गहलोत के रहते वे विधानसभा चुनाव लडऩे का जोखिम भी नहीं ले सकते थे। पायलट खेमे के एक नेता के मुताबिक गहलोत की कार्यशैली ऐसी है कि वे अपने प्रतिद्वंद्वी नेता की बाड़ेबंदी कर देते हैं। इस तरह उनका शत्रु अपनी ही जंग में उलझ कर रह जाता है।
गहलोत का अब मुख्यमंत्री बनना नामुमकिन!
कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की ताजपोशी और हाल ही में दिल्ली अधिवेशन में युवाओं को आगे आने देने की उनकी नसीहत के बाद पायलट के पक्ष में कुछ होने के कयास लगाए जाने लगे थे। मार्च खत्म होने से पहले गहलोत की राजस्थान से विदाई की खबर भी आ गई। निश्चित रूप से अशोक गहलोत का राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ाया गया है लेकिन राज्य की राजनीति से अब उनको लगभग बाहर कर दिया गया है। अगर अब भी उनके चाहने वाले मुख्यमंत्री पद का सपना पाले बैठे हों तो ये गालिब के शब्दों में खुश रहने के लिए ख्याल अच्छा है वाली बात ही कही जा सकती है। अशोक गहलोत का कद अब इतना बढ़ा दिया गया है कि मुख्यमंत्री पद उसके आगे नैतिक रूप से मायने नहीं रखता।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी