हार का अंदाज
02-Apr-2018 07:20 AM 1234798
राजस्थान में संभावित हार को देखते हुए भाजपा में अब सत्ता की मलाई खा रहे नेताओं के तेवर बदलने लग गए है। इनमें कई मंत्री भी शामिल हैं। प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री चंद्रशेखर ने हाल में मंत्रियों की ऐसी बैठक बुलाई जिसमें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को शामिल नहीं किया गया। इस बैठक में राष्ट्रीय संगठन मंत्री वी सतीश भी प्रदेश प्रभारी के नाते मौजूद रहे। इस बैठक में ही मंत्रियों से सरकार के कामकाज की असलियत जानने की कोशिश की गई। दोनों संगठन मंत्रियों का मकसद था कि बैठक में मुख्यमंत्री की गैर मौजूदगी में मंत्री खुलकर अपनी बात कहें और सरकार के भ्रष्टाचार और नौकरशाही के रवैये के बारे में अपनी बात कह सके। पर बैठक में तीन-चार ऐसे मंत्रियों की मौजूदगी ने ही मकसद पर पानी फेर दिया। इन मंत्रियों को मुख्यमंत्री का करीबी माना जाता है और जो मंत्री उलटी भी बात करता तो उसकी रिपोर्ट सीधे ही राजे तक पहुंचने का अंदेशा था। इससे बैठक में ज्यादातर मंत्रियों ने हार का ठीकरा नौकरशाही पर ही फोडऩे में अपनी भलाई समझी। इसमें भी ऐसे नौकरशाहों के बारे में कुछ नहीं कहा गया जो मुख्यमंत्री राजे के सबसे बेहद करीबी हैं। जबकि प्रदेश भाजपा में निचले स्तर का कार्यकर्ता भी जानता है कि किस वजह से राजस्थान में भाजपा का बंटाधार हो रहा है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व अब अपने को बचाने के लिए कई तरह के फार्मूले राष्ट्रीय नेतृत्व को दे रहा है जिससे फिर से सत्ता बचाई जा सके। इसमें एक मंत्रिमंडल में फेरबदल कर कुछ को हटा कर नयों को लेने वाला फार्मूला भी है। मंत्रिमंडल फेरबदल की चर्चाएं चलने से ही भाजपा के कार्यकर्ताओं की हंसी फूटने लग गई है। जमीनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करने से भी कुछ नहीं होगा जब उच्च स्तर पर ही सब गड़बड़ है तो कुछ भी करने का फायदा नहीं होगा। प्रदेश में भाजपा के हाल अब ऐसे हो गए है कि मौजूदा नेतृत्व जो भी फार्मूला सरकाता है कार्यकर्ताओं के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व भी सतर्क हो जाता है और उसे नकार देता है। दरअसल भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व अब ऐसे लोगों से फीडबैक जुटा रहा है जिनको स्थानीय राजनीति की समझ है। इनमें संघ विचारधारा से जुड़े कई लेखक, साहित्यकार और मीडिया के लोग भी है। ऐसे लोगों की मौजूदा नेतृत्व ने पूरे चार साल तक अनदेखी की। ऐसे लोगों की मूल विचारधारा भाजपा समर्थित है और राजस्थान का मौजूदा नेतृत्व और उनके कारिंदे इनको अपने पास फटकने तक नहीं देते हैं। भाजपा में अंदरूनी राजनीति चाहे जितने गुल खिलाए, लेकिन राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उड़ती चिडिंया के पर गिनकर बैठी हैं। वह राजस्थान में पार्टी और सरकार पर जरा भी अपनी पकड़ ढीली करने के लिए तैयार नहीं हैं। खासकर राज्य के भाजपा अध्यक्ष और मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर भी वह बेहद सावधान हैं। सूत्र बताते हैं कि वसुंधरा राजस्थान के आज के नहीं बल्कि आने वाले कल के राजनीतिक परिदृश्य को देखकर चल रही हैं। इसलिए वह एक सीमा तक ही केंद्रीय नेतृत्व के दबाव को जगह दे रही हैं। राजस्थान मंत्रिमंडल में फेरबदल तय था। उपचुनाव में मिली हार के लिए जिम्मेदार नेताओं को इसकी सजा भी मिलनी थी। कुछ मंत्रियों के विभाग बदले जाने थे, लेकिन ऐन वक्त पर सब कुछ खटाई में पड़ गया। सूत्र बताते हैं कि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव तक राजस्थान सरकार में मंत्रिमंडल फेरबदल की संभावना कम है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी को हटाए जाने की संभावना भी क्षीण हो गई है। राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अशोक परनामी के हाथ पार्टी की कमान खींचे जाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन केंद्रीय दबाव के आगे एक हद तक झुकते हुए उन्होंने इसके फार्मूले पर अपनी सहमति दे दी थी। बताते हैं ऐन वक्त फिर मामला नहीं बना। राजस्थान के संघ प्रचारक और संगठन मंत्री भी और वसुंधरा राजे के बीच बनी सहमति में नए पेंच आ गए। इसके बाद वसुंधरा राजे ने भी अपना स्टैंड कड़ा कर लिया। कांग्रेस के बड़े दिग्गज लडऩा चाहते हैं चुनाव उधर राजस्थान कांग्रेस के अधिकांश बड़े नेता आगामी विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। इनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पूर्व सांसद शामिल हैं। विधानसभा चुनाव लडक़र ये सभी नेता स्वयं को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल कराना चाहते हैं। ये नेता अपने पसंदीदा विधानसभा क्षेत्रों मे सक्रिय भी हो गए हैं। इन नेताओं के समर्थक चुनाव अभियान में जुट गए हैं। पिछले माह अलवर एवं अजमेर संसदीय एवं मांडगलढ़ विधानसभा क्षेत्र के बाद पंचायत और स्थानीय निकाय के उप चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता से उत्साहित कांग्रेस के नेताओं को पक्की उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलेगा और वे सत्ता के शीर्ष तक पहुंच सकते हैं। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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