27-Apr-2018 06:12 AM
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हैदराबाद मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में अदालत द्वारा सभी दोषियों को बरी किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर प्रहार किया कि वोट बैंक की राजनीति के तहत उसने हिंदू/भगवा आतंकवाद का ढिंढोरा पीटा। जवाब में कांग्रेस का कहना है कि राहुल गांधी या कांग्रेस ने कभी भगवा आतंकवाद शब्द इस्तेमाल नहीं किया। यही नहीं कांग्रेस का कहना है कि आतंक को धर्म या समुदाय से जोडऩा आपराधिक मानसिकता की पहचान है। दरअसल, रंग बदलती कांग्रेस की हिंदू राजनीति का यह अगला पड़ाव है। गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने मंदिर-मंदिर घूमकर यह संकेत दे दिया था कि कांग्रेस अब अपने आप को बदल रही है।
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद एके एंटनी के नेतृत्व में गठित पार्टी की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में हार का कारण बताया था कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि। तब से कांग्रेस लगातार उस छवि को बदलने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार के जमाने में भगवा आतंकवाद की चर्चा बार-बार हुई, किंतु कांग्रेस की ओर से इसका कभी खंडन नहीं किया गया। अब हिंदू मतों को पाने की बेचैनी कांग्रेस से वह सब करवा रही है जिसके विरुद्ध वह खड़ी थी।
कनार्टक में चुनाव होने जा रहे हैं और गुजरात की तरह राहुल गांधी का मंदिर दौरा भी तेजी से चल रहा है। उन्होंने वासवन्ना के आदर्शों पर चलने की भी बात कही है। हिंदू मतों को पाने की कांग्रेस की बेचैनी गुजरात चुनाव में साफ देखने को मिली जो अब कर्नाटक में झलक रही है। इस बेचैनी की इंतेहा तो तब हो गई जब सोनिया गांधी ने यह बयान दे दिया कि बीजेपी लोगों को समझाने में सफल रही कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस में ज्यादातर नेता हिंदू है जबकि कुछ मुसलमान भी हैं। उनका यह वक्तव्य कांग्रेस की अब तक की घोषित नीति पर पूर्ण विराम है जब वह पंथनिरपेक्षता का जाप करना नहीं भूलती थी। तो क्या इसका अर्थ यह है कि सेकुलरिजम का सिक्का घिसकर अपनी चमक के साथ-साथ अपनी खनक खो चुका है और इसे अलविदा कहने का यह माकूल वक्त है।
जब राहुल गांधी गुजरात में मंदिरों का दौरा कर रहे थे तो कांग्रेस ने यहां तक घोषणा कर दी कि राहुल जनेऊधारी हिंदूÓ हैं। इस वक्तव्य से पिछड़े-दलितों के अलग होने का भी खतरा है क्योंकि केवल सवर्ण हिंदू ही जनेऊ पहनते हैं। (वैसे तो अब अधिकतर सवर्णों ने इसे पहनना छोड़ दिया)। परंतु जनेऊधारी होना हिंदू होने का अकाट्य प्रमाण है। यह देखना है कि राहुल की मंदिर यात्रा एवं सोनिया का बयान और अब कांग्रेस का यह वक्तव्य कि उसने कभी भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया कांग्रेस की उस छवि को कितना धो पाता है कि वह मुसलमानों का तुष्टिकरण करती है।
भारत में पंथनिरपेक्षता या बहुसांस्कृतिकता किसी नेता की कृपा की मोहताज नहीं है। बल्कि भाषा, धर्म, जाति, वेश-भूषा, रहन-सहन की व्यापक विविधता के कारण यह जीवंत है जो समाज को एकरूपीय होने से रोकती है। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्यों कांग्रेस यह साबित करने के लिए परेशान है कि वह मुस्लिम-परस्त पार्टी नहीं है। इससे पार्टी का मूल दर्शन खंडित होता है कि बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के बीच की दरार अंग्रेजों की बनाई हुई है। महात्मा गांधी ने 27 अप्रैल 1942 को आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के लिए जो प्रस्ताव भेजा था उसमें लिखा, बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यक का सवाल अंग्रेजों का बनाया हुआ है और उनके वापस जाते ही यह खत्म हो जाएगा। उनके प्रस्ताव को कांग्रेस कार्य समिति ने पूरी तरह स्वीकार किया। परंतु सच्चाई यह है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस नेतृत्व पर कभी भरोसा नहीं किया। सैयद अहमद खान प्रारंभ में एक राष्ट्रवादी थे जो हिंदू एवं मुसलमान को भारत माता की दो आंखें कहते थे। लेकिन जैसे ही कांग्रेस की स्थापना हुई और उसने राष्ट्रीय सरोकार के मुद्दे उठाने शुरू किए जिससे ब्रिटिश हुकूमत उस पर संदेह करने लगी, तो सर सैयद सरकार के करीब हो गए और मुसलमानों का आह्वान किया कि वे कांग्रेस में शामिल न हों।
बाद में मुस्लिम लीग कांग्रेस को हिंदू पार्टी कहने लगी और 1946 में अंतरिम सरकार के गठन के समय उसने शर्त रखी कि कांग्रेस को मंत्रिमंडल में किसी मुसलमान को मनोनीत करने का अधिकार नहीं होगा क्योंकि वह मुसलमानों का अकेला प्रतिनिधि है। जब कांग्रेस ने 14 सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया तो उसमें दो मुसलमान- शफ्फात अहमद खान एवं सैयर जहीर अली शामिल थे। कांग्रेस सरकार में शामिल होने के कारण अगले ही दिन एक कट्टर मुसलमान ने खान पर छूरी से हमला कर उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया।
महात्मा गांधी का सपना कभी पूरा नहीं हुआ क्योंकि आजादी के बाद बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक का प्रश्न बना हुआ है। यह एक विडंबना है कि आजादी के पूर्व जो पार्टी हिंदुओं की मानी जाती थी, स्वाधीनता के बाद वह मुसलमानों के हितों की रक्षक हो गई! जवाहरलाल नेहरू मुसलमानों के नायक हो गए जिन्हें मुसलमान महात्मा गांधी से भी अधिक सम्मान देते थे। गांधीजी की हिंदू जीवन शैली तथा राम राज्य पर उनका जोर मुसलमानों के मन में संदेह पैदा करता था। धीरे-धीरे यह नजरिया बनता गया कि सबसे पुराना राजनीतिक दल मुसलमानों के तुष्टिकरण में लगा है। मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में बयान दिया कि राष्ट्रीय संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक है। यह हैरतअंगेज है कि वही पार्टी आज हिंदुओं को खुश में करने के लिए व्याकुल है।
भाजपा को मिला हथियार
हाल के दिनों में कांग्रेस कभी दलितों तो कभी कठुआ-उन्नाव या फिर जज लोया और राफेल डील को लेकर बीजेपी पर हमलावर रही है। चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग मोदी सरकार पर कांग्रेस का ताजा वार है। ऐसे में अजमेर और मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस से असीमानंद के बरी हो जाने के बाद बीजेपी को कांग्रेस के खिलाफ धावा बोलने का मौका मिल गया है। माना जा रहा था कि पश्चिम बंगाल में पांव जमाने के लिए जूझ रही बीजेपी असीमानंद को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करेगी - रायबरेली में अमित शाह के रुख से साफ हो गया कि आने वाले दिनों में असीमानंद और माया कोडनानी बीजेपी के स्टार कैंपेनर बनने वाले हैं। अगर ऐसा होता है तो आने वाले समय में भाजपा इस मुद्दे को और हवा देगी।
कांग्रेस की ये थ्योरी धड़ाम हो चुकी है
हिंदू या कह लें भगवा आतंक को लेकर कांग्रेस ने जो आरोप मढ़े थे वे सारे ही आरोप अब औंधे मुंह गिरे हैं और कांग्रेस को इन आरोपों का भूत सता रहा है क्योंकि हैदराबाद में एनआईए की अदालत ने मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद सहित पांचों आरोपियों को बरी कर दिया है। मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को जुमे की नमाज के वक्त एक बम-विस्फोट हुआ था जिसमें 8 लोगों की जान गई और अन्य 58 लोग घायल हुए थे। हैदराबाद पुलिस ने अपनी शुरुआती जांच में कुछ मुस्लिम नौजवानों को बम-विस्फोट की योजना बनाने और इस कार्रवाई को अंजाम देने के आरोप में पकड़ा लेकिन मामला 2007 की जुलाई में सीबीआई और आगे चलकर 2011 की अप्रैल में एनआईए के हवाले हो गया और इसी वक्त से मक्का मस्जिद की घटना ने एक नया मोड़ लिया। केंद्रीय जांच एजेंसियों की खोज-बीन के दौरान बम-विस्फोट के मामले में अभिनव भारत के सदस्यों का नाम सामने आया। मालेगांव, मक्का मस्जिद और अन्य घटनाओं में भगवा आतंक की बात को भरोसेमंद साबित करने के लिए एनआईए ने जो मामले गढ़े थे वे सभी कानून की अदालत में एक-एक करके धराशायी हो गए हैं। गृहमंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी आरवीएस मणि का यह खुलासा भी सामने आया है कि पी चिदंबरम के गृहमंत्री रहते उनके साथ जोर-जबर्दस्ती की गई थी और इशरत जहां मामले में नए सिरे से सुधार हुआ हलफनामा दायर करने को कहा गया था। इन सारी बातों के सामने आने के कारण कांग्रेस पार्टी के तेवर ढीले पड़ गए हैं। पार्टी रक्षात्मक मुद्रा में आ गई है। अदालत ने मालेगांव विस्फोट मामले में कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ लगे मकोका (एमसीओसीए) के आरोपों को भी खारिज कर दिया था और दोनों को जमानत मिल गई थी।
- दिल्ली से रेणु आगाल