27-Apr-2018 06:09 AM
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भारत के पड़ोसी नेपाल के नए विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली ने बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की है। इस बैठक में दोनों देशों के बीच रेल संपर्क बेहतर बनाने समेत कई और अहम मुद्दों पर बात हुई। बीते साल की शुरुआत में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी ओली सत्ता में थे। इस दौरान इस सिलसिले में सारे फैसले लिए जा चुके थे। लेकिन इन फैसलों पर अमल नहीं हो पाया था क्योंकि नेपाल में सत्ता परिवर्तन हो गया था। ओली के सत्ता में वापसी करने के बाद इस पर फिर से बैठक हुई और फैसलों पर अमल करने के बारे में बात हुई है।
पूरी दुनिया में अपनी पहुँच बढ़ाने के लिए चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 65 देशों को जोडऩे की योजना बनाई है। इस परियोजना को नाम दिया गया है वन बेल्ट वन रोड यानी ओबीओआर परियोजना। इसे न्यू सिल्क रूट नाम से भी जाना जाता है। बैठक के बाद साझा प्रेस वार्ता में चीन ने (वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत) भारत-नेपाल-चीन आर्थिक गलियारे का प्रस्ताव देकर एक बार फिर से इस बात के संकेत दिए हैं वो भारत को इसमें शामिल करना चाहता है।
चीन पहले से ही चाहता था कि भारत वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा बने, लेकिन भारत इससे इनकार करता रहा है। चीन इसे एक महायज्ञ के रूप में देखता है और समझता है कि मानव संसाधन विकास का एक अहम जरिया ढ़ाचागत विकास है और इसके लिए दूसरे देशों से जुडऩा जरूरी है। चीन मानता है कि इसके लिए सड़कें, रेल मार्ग, जल मार्ग, टेलीकम्युनिकेशन लाइनें, गैस की लाइनें, पेट्रोलियम की लाइनें बिछाई जानी चाहिए।
चीन की इस परियोजना में अगर कोई कमी दिखती है तो वो ये कि चीन इसके तहत सभी देशों को अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर रहा है यानी वो खुद को इसका केंद्र बना रहा है। लेकिन ये बात जाहिर भी है क्योंकि इसके लिए आर्थिक मदद चीन ही दे रहा है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि वो चाहते हैं कि चीन-नेपाल-भारत इसमें एक साथ जुड़ जाएं, लेकिन भारत इसमें शामिल होने से लगातार इनकार करता रहा है। बीते साल चीन ने कई देशों वन बेल्ट वन रोड फोरम की एक बड़ी बैठक का आयोजन किया था और कई मुल्कों को आमंत्रित किया था। भारत एकमात्र बड़ा देश था जो इसमें सम्मिलित नहीं हुआ। इसके बाद भारत ने एक बयान जारी कर कहा कि जो देश चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा बन रहे हैं वो कर्जे में फंस रहे हैं और खुल कर इसका विरोध किया।
भारत के विरोध के पीछे मुख्य उद्देश्य ये है कि बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना रहा है। इसके तहत चीन से शुरू हो रही सड़क पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाती है, लेकिन इसके लिए ये सड़क गिलगित-बलूचिस्तान के इलाके से गुजरती है। ये हिस्सा फिलहाल पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आता है लेकिन इसे भारत अपना हिस्सा मानता है। एक तरफ तो चीन कश्मीर पर भारत के हक को नकारती है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान का दावा कि ये हिस्सा उसका है इसे चीन स्वीकार करती है। ऐसे में भारत का चीन को अपना मित्र देश ना समझना समझा जा सकता है।
ये चीन की भारत पर दवाब डालने की कोशिश है। इस परियोजना में चीन के सहयोगी मालदीव, नेपाल, पकिस्तान, म्यांमार के पास इतना पैसा नहीं है कि वो चीन की परियोजना पर काम कर सकें। चीन की इस परियोजना में नेपाल ने अपना पैसा लगाया तो उसका पूरा जीडीपी ही इसमें चला जाएगा। चीन इस परियोजना में इतना घाटा उठाने के लिए इसीलिए तैयार है क्योंकि भारत पर दवाब पड़े और भारत के सिर तक चीन की सड़क आ जाए। इतना ही नहीं नेपाल में चीन का जो हजारों टन सामान आएगा नेपाल के लोग उसे खरीद नहीं पाएंगे और वो तस्करी के जरिए नेपाल की सीमा से होकर भारत आएगा।
चीन की चालाकी का देना होगा जवाब
अरुणाचल प्रदेश में सड़क निर्माण के बहाने चीनी सैनिकों की घुसपैठ रोज की बात होती जा रही है। हाल ही में तूतिंग में और किविथ में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की और वहां भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर भी आपत्ति दर्ज कराई। चीन और भारत की 3488 किलोमीटर सीमा से जुड़े आपसी मतभेद समझने के लिए हमें इतिहास के कुछ पन्ने पलटने चाहिए। अरुणाचल प्रदेश शुरू से ही भारत और चीन के बीच विवाद का कारण रहा है। चीन इसे दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है और अपनी हठधर्मी पर अड़ा हुआ है। वास्तविकता यह है कि यह इलाका प्राचीनकाल से ही भारत का हिस्सा रहा है। रामायण, वैदिक काल और महाभारत में भी इसके भारत में होने के उदाहरण मिलते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन बहुत सोची-समझी राजनीति और विदेश नीति पर चलने वाला देश है। वह अपनी आर्थिक उन्नति में किसी प्रकार की बाधा नहीं चाहता है। उसकी विदेश नीति का अहम हिस्सा है येन-केन-प्रकारेण अपने प्रतिद्वंद्वियों की आर्थिक उन्नति को रोकना।
- बिन्दु माथुर