पुतिन नहीं तो रूस नहीं
02-Apr-2018 07:47 AM 1234809
रूस की जनता ने व्लादिमिर पुतिन को चौथी बार देश की सत्ता संभालने के लिए भारी जनादेश देकर यह संदेश दिया है कि उनके नेतृत्व को लेकर उनके दिलो-दिमाग में कहीं कोई संशय नहीं है। पुतिन ने राष्ट्रपति चुनाव ऐसे वक्त में जीता है, जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका सहित पश्चिमी मुल्कों के साथ उनकी एक तरह से स्पष्ट और जबर्दस्त टकराव की स्थिति चल रही है। लेकिन उनके रुख से साफ है कि वे किसी भी ताकत के सामने झुके नहीं हैं, न कोई ऐसा समझौता किया है जो दुनिया में रूस के कमजोर पडऩे का संकेत देता हो। इसी से पुतिन की छवि एक कठोर और दृढ़ निश्चय वाले वैश्विक नेता की बनी है। पुतिन ने रूसी जनता के मन में भरोसे का एक स्थिर भाव पैदा किया है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव में पुतिन को इस बार छिहत्तर फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले, जबकि 2012 के चुनाव में उन्हें तिरसठ फीसदी वोट मिले थे। सन 2000 में जब पुतिन पहली बार देश के राष्ट्रपति बने थे तब उन्हें तिरपन फीसदी वोट मिले थे। जाहिर है, रूस में पुतिन की लोकप्रियता में लगातार इजाफा ही हुआ है। सोवियत संघ के विखंडन के बाद लंबे समय तक रूस में जो उथल-पुथल की स्थिति रही, उससे रूस को बाहर निकालने में पुतिन का बड़ा योगदान माना जाता है। इस बीच पुतिन ने न सिर्फ घरेलू मोर्चों, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी धाक कायम की है। इसीलिए वे रूसी जनता के लिए एक बार फिर नायक बने हैं। इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रपति के तौर पर चौथा कार्यकाल पुतिन के लिए बड़ी चुनौतियों से भरा है। इस वक्त सीरिया अमेरिका और रूस के बीच प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन गया है। सीरिया को लेकर कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं है। पूरी दुनिया मान चुकी है कि सोवियत संघ खत्म होने के बाद रूस महाशक्ति नहीं रह गया। अमेरिका को लग रहा है कि अगर सीरिया मामले में वह रूस के सामने कमजोर पड़ा तो सारी दुनिया की नजर में रूस फिर से महाशक्ति का दर्जा हासिल कर सकता है। फिलहाल सीरिया में जो हालत है और टकराव के जिस तरह मोर्चे खुले हुए हैं, उसके लिहाज से देखें तो पुतिन के चौथे कार्यकाल का शुरुआती दौर काफी महत्वपूर्ण होगा। हाल में ब्रिटेन में पूर्व रूसी जासूस की हत्या के मामले में भी रूस और ब्रिटेन के बीच जिस तरह का टकराव पैदा हो गया है, वह शीतयुद्ध के एक और दौर की आशंका को जन्म देता है। ब्रिटेन और रूस दोनों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को बाहर निकाल दिया है। इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ के कई देश अमेरिका और ब्रिटेन के साथ हैं। ऐसे में रूस को इस द्वंद्व से निकालना पुतिन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है। पुतिन ऐसे वक्त में चौथी बार राष्ट्रपति चुने गए हैं जब पड़ोसी देश चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जीवन भर के लिए अपने पद पर बने रहने का रास्ता साफ कर दिया गया है। यों रूस और चीन के बीच बढ़ती नजदीकी से सबसे ज्यादा चिंतित अमेरिका ही है। इसके अलावा, पाकिस्तान से भी रिश्ते बना कर पुतिन ने संकेत दिया है कि जरूरत पडऩे पर एशियाई क्षेत्र में चीन-पाकिस्तान और रूस का गठजोड़ बन सकता है। फिलहाल भारत और रूस के रिश्ते तो मजबूत हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कैसे हैं, इससे रूस अनजान नहीं है। भारत के विरोध के बावजूद पिछले साल रूस ने पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास किया। ऐसे में पुतिन एशिया में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखते हुए रूस को फिर से महाशक्ति के रूप में कैसे स्थापित कर पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी! व्लादिमीर के सामने बड़ी चुनौतियां ऐसे समय में जब रूस और पश्चिमी देशों के संबंध खराब दौर से गुजर रहे हैं रूस की जनता ने पुतिन को ही अगले 6 सालों के लिए राष्ट्रपति चुना है। अब वह 2024 तक इस पद पर रहेंगे। पुतिन 2024 में अपना कार्यकाल खत्म होने के समय 71 साल के होंगे और उस समय सोवियत शासक जोसेफ स्टालिन के बाद सबसे लंबे समय तक नेता रहने वाले शख्स भी होंगे। पुतिन ने इस चुनाव से पहले अपने देश के नागरिकों से वादा किया था कि वे पश्चिमी देशों के खिलाफ रक्षा क्षेत्र को मजबूत करेंगे और लोगों के जीवन स्तर को सुधारेंगे। बीते 18 सालों से राजनीति में अपना दबदबा रखने वाले पुतिन ने अपने प्रशंसकों की भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें इस जीत का भरोसा था क्योंकि उन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में भी विश्वास मत हासिल कर लिया था। अभी तक के नतीजों के मुताबिक पुतिन के सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी और कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार पावेल ग्रुदिनिन को करीब 13 प्रतिशत वोट मिले, जबक नैशनलिस्ट व्लादिमीर झिरिनोवस्की को करीब 6 प्रतिशत वोट मिले हैं। कोई भी उम्मीदवार पुतिन को मुकाबले की टक्कर नहीं दे सका और विपक्षी नेता ऐलेक्सी नवॉलनी को चुनाव लडऩे से रोक दिया गया था। 65 साल के पुतिन साल 2000 से रूस के राष्ट्रपति पद पर बने हुए हैं। - माया राठी
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