26-Apr-2018 01:29 PM
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मध्य प्रदेश के एक किसान को अप्रैल के दूसरे पखवाड़े की शुरूआत में अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की शादी के लिए पैसों की जरूरत थी। किसान के मुताबिक वह पैसे निकालने लगातार दो दिन तक बैंक गए लेकिन बैंक ने कहा कि पैसे खत्म हो गए हैं। ये सिर्फ एक जगह का मामला नहीं है। भारत के कम से कम पांच राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और बिहार में कैश की भारी किल्लत दिखी। एटीएम के सामने लगी लंबी कतारों को देखकर नवंबर 2016 की यादें ताजा हो जाती हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजार और पांच सौ के नोटों पर रोक लगा दी थी। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक नोटबंदी का वह फैसला काले धन को हटाने के लिए लिया गया था। इसका असर उस वक्त चलन में मौजूद कैश के तकरीबन 86 फीसदी नोटों पर पड़ा था। हालांकि नोटबंदी के बाद तकरीबन सारा रोका गया पैसा बैंकों में वापस आ गया जिसके चलते कुछ अर्थशास्त्रियों ने नोटबंदी को एक बड़ी असफलता भी बताया।
नोटबंदी की मार से लोग अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाए हैं कि एक बार फिर नकदी संकट की खबरों ने नींद उड़ा दी है। देश के ग्यारह राज्यों में लोग कई दिनों तक एटीएम से खाली हाथ लौटते रहे। ज्यादातर बैंकों के एटीएम खाली पड़े रहे। जहां इक्का-दुक्का एटीएम चल भी रहे थे, वहां लंबी कतारें नोटबंदी के दिनों की याद ताजा करा रही थी। इस तरह अचानक आया संकट सरकार और बैंकिंग प्रणाली दोनों पर सवाल खड़े करता है। क्या सरकार और केंद्रीय बैंक को जरा भी भनक नहीं लगी कि नकदी की कमी होने जा रही है? अगर ऐसा है तो यह हमारी बैंकिंग प्रणाली की दुर्दशा को बताता है।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक नकदी संकट आ गया? देश में इस वक्त अठारह लाख करोड़ रुपए की नकदी चलन में है। पिछले एक पखवाड़े में सामान्य से तीन गुना ज्यादा नकदी निकाल ली गई। वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक समस्या की जड़ इसी में देख रहे हैं। देश में हर महीने बीस हजार करोड़ रुपए नकदी की खपत होती है, जबकि पिछले पंद्रह दिनों के भीतर पैंतालीस हजार करोड़ रुपए बाहर आ गए। मौजूदा नकदी संकट के लिए रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली काफी हद तक जिम्मेदार है। करेंसी चेस्ट में नोटों की सप्लाई घट कर चालीस फीसदी रह गई है। इसीलिए करेंसी चेस्ट बैंकों को भी उनकी मांग के अनुरूप पैसा नहीं दे पा रहे। अद्र्धशहरी और ग्रामीण इलाकों में बैंकों को उनकी जरूरत के हिसाब से नकदी नहीं पहुंचाई जा रही। इससे साफ है कि रिजर्व बैंक नकदी सप्लाई नहीं कर पा रहा। इसके पीछे भले तकनीकी या नीतिगत वजहें हों, लेकिन संकट आम जनता को झेलना पड़ रहा है।
एटीएम उद्योग परिसंघ के प्रवक्ता का कहना है कि मार्च तक चीजें ठीक थीं लेकिन पिछले दिनों से हमें नकदी की गंभीर समस्या हो रही है जो लगभग समूचे देश में है। ऐसा क्यों हुआ है, इसका जवाब सरकार को देना है। कहते हैं बाजार में नोटबंदी के समय जितनी नकदी सर्कुलेशन में थी अब उससे अधिक है। फिर भी एटीएम में नकदी न होना व्यवस्था में खामी है या कुछ और यह सवाल जवाब मांगता है।
बैंक का एक अर्थ भरोसा भी है और लोग उनमें भरोसा रखते हैं इसीलिए उनमें अपनी पूंजी जमा रखते हैं। सरकार का दायित्व नियामक और नियंत्रक के रूप में आमजन के इस भरोसे को बनाए रखने का है। तकलीफदायक यह है कि लोकतान्त्रिक सरकार मौका पडऩे पर लोक के साथ खड़ी नजर नहीं आती। सिस्टम में पर्याप्त मात्रा में कैश होने का बयान देकर, सरकार पल्ला नहीं झाड़ सकती।
कहा गायब हो गए 2000 के नोट
कई राज्यों में तो दो हजार रुपए के नोट ही गायब हैं। क्या यह रकम जमाखोरों के हाथ में पहुंच गई है? सबसे ज्यादा संकट और अफवाहें दो हजार रुपए के नोट को लेकर हैं। पिछले साल मई के बाद रिजर्व बैंक ने दो हजार का नोट छापना बंद कर दिया था। देश की कुल मुद्रा चलन में पचास फीसदी हिस्सेदारी दो हजार के नोट की है। इस वक्त बाजार में दो हजार रुपए मूल्य के मात्र दस फीसदी नोट चलन में हैं। जाहिर है, दो हजार रुपए के जितने नोट बैंकों से निकले, उसका बड़ा हिस्सा जमाखोरी का शिकार हो गया। सरकार ने भी इस बात को माना है। नोटों की जमाखोरी के पीछे एक बड़ा कारण लोगों में नोटबंदी का बैठा खौफ है। दूसरा बड़ा कारण यह है कि लोग एफआरडीआइ (फाइनेंशियल रेग्युलेटरी एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस) विधेयक को लेकर डरे हुए हैं। लोगों को लग रहा है कि अगर ऐसा कानून बन गया तो बैंकों में उनकी जमा रकम डूब सकती है। इसलिए पिछले कुछ महीनों में दो हजार के नोटों की जमाखोरी तेजी से बढ़ी।
- सत्यनारायण सोमानी