26-Apr-2018 12:27 PM
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मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में पिछले साल 2017 में हुए किसान गोलीबारी को लेकर 1 जून से 10 जून तक ग्राम बंद आंदोलन किया जाएगा। ग्राम बंद आंदोलन के दौरान गांव से फल सब्जी दूध अनाज कुछ भी शहर में नहीं आएगा। गांव वालों से आवाहन किया गया है कि वह आंदोलन के दौरान शहर ना जाए। सरकार से किसानों की मांग है कि किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम मिले। इसके लिए उपज की लागत में डेढ़ गुना लाभकारी मूल्य जोड़कर दिया जाए। देशभर के किसानों को कर्जमुक्त किया जाए। उनके सारे कर्ज माफ किए जाएं। ऐसे गरीब और छोटे किसान जिनके यहां दो-चार क्विंंटल अनाज ही पैदा हो रहा है और वह मंडी में उपज बेचने नहीं जा पा रहा हो, उसकी आय निश्चित की जाए। इनके अलावा किसान महासंघ 31 मांगों का मांग-पत्र तैयार कर रहा है जिसमें किसानों की शिक्षा, स्वास्थ्य, फसल बीमा सहित विभिन्न समस्याओं का जिक्र होगा।
शिवकुमार शर्मा कक्का जी ने बताया कि राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के प्रस्ताव पर राष्ट्रीय किसान महासंघ द्वारा किए जा रहे इस ग्राम बंद आंदोलन में देशभर के 60 संगठन शामिल होंगे। इसमें महाराष्ट्र के कई संगठन शामिल है। उन्होंने कहा कि 6 जून को मंदसौर में निर्दोष किसानों को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस लिए 1 जून से 10 जून तक मध्यप्रदेश के हर जिले में श्रृद्धांजलि सभा और उनकी आत्मा शांति के लिए हवन आदि पूरे देश में किए जाएंगे।
ग्राम बंद आंदोलन को लेकर जानकारों का कहना है कि इस आंदोलन से महंगाई तो बढ़ेगी ही, साथ ही किसानों को भी घाटा होगा। शहर में सब्जी, दूध और अनाज जैसे खाद्य पदार्थ समय पर नहीं पहुंचेगा। व्यापारी पहले से रखे माल को मनमाने तरीके से महंगें दामों में बेचेंगे। इससे शहर में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे स्थिती में सरकार को अन्य विकल्पों का सहारा लेना पड़ेगा।
मंदसौर में किसानों पर हुई गोली बारी में मृतक किसानों की शान्ति के लिए किसान महासंघ के प्रस्ताव पर देशभर के 60 संगठनों को जोड़ा गया है। ये बात शिवकुमार शर्मा कक्का जी ने ग्राम बंद आंदोलन का ऐलान करते समय कही। कक्का जी बोले कि 1 जून से 10 जून तक यह आंदोलन चलेगा, इसमें सभी किसान संगठन शामिल होंगे। बता दें की इसी साल 2018 में मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव होने को है, ऐसी स्थिति में ग्राम बंद आंदोलन से वोटों की राजनीति होगी। जानकारों का कहना है कि इस बार के चुनाव में पक्ष को मेहनत करने की जरूरत होगी। वहीं विपक्ष इस आंदोलन का लाभ भी लेंगे।
किसान के प्रति कोई भी सरकार गंभीर नहीं
राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि किसान कभी किसी सरकार के एजेंडे में रहा ही नहीं है। कभी कोई सरकार किसान के प्रति गंभीर नहीं रही है। 2013 से लेकर 2016 तक 22 पूंजीपतियों का 17 लाख 15 हजार करोड़ का कर माफ किया। उन्होंने कहा कि सरकार अगर व्यापारियों का टेक्स माफ नहीं भी करती तो पूंजीपति आत्महत्या नहीं करता। पूरे देश के किसानों पर कुल 12 लाख 60 हजार करोड़ का कर्जा है जो कि व्यापारियों के तीन साल के टेक्स के बराबर है। यदि व्यापारियों को कर माफी नहीं देते तो उससे कम पैसे में किसानों का कर्ज माफ हो जाता। आमतौर पर यह माना जाता है कि भारतीय समाज में समय-समय पर होने वाली उथल-पुथल में किसानों की कोई सार्थक भूमिका नहीं रही है, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि भारत के स्वाधीनता आंदोलन में जिन लोगों ने शीर्ष स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, उनमें आदिवासियों, जनजातियों और किसानों का अहम योगदान रहा है। स्वतंत्रता से पहले किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में जो आंदोलन किए वे गांधीजी के प्रभाव के कारण हिंसा और बरबादी से भरे नहीं होते थे, लेकिन अब स्वतंत्रता के बाद जो किसानों के नाम पर आंदोलन या उनके आंदोलन हुए वे हिंसक और राजनीति से ज्यादा प्रेरित थे।
-रजनीकांत पारे