26-Apr-2018 12:44 PM
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एक तरफ अफसर इस साल जून-जुलाई तक मैट्रो का काम शुरू हो जाने की बात कह रही हैं वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि इसकी कोई डेटलाइन नहीं बता सकता। वे बताएं भी कैसे, अफसर मैट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट को कागजों में अटकाए बैठे हैं। अहमदाबाद से मुंबई बुलेट ट्रेन हो या लखनऊ, कोच्चि और जयपुर मेट्रो ट्रेन, यह सभी प्रोजेक्ट भोपाल के बाद के हैं फिर भी यह हमसे मीलों आगे निकल गए। जबकि भोपाल में चार साल बाद भी सरकार मेट्रो ट्रेन के लिए डिपो की जमीन तक आरक्षित नहीं कर पाई है। इसके लिए प्रदेश के आला अफसर कलेक्टर भोपाल को कई दफे निर्देश और आदेश भी दे चुके है लेकिन अब तक 77.13 एकड़ जमीन के लिए प्रशासन ने प्रस्ताव ही बनाकर सरकार को नहीं भेजा है। एक बार फिर प्रस्ताव बनाने की कवायद चल रही है।
हालांकि अब जिला प्रशासन इस जमीन के आवंटन की राह में अटके रोडों को दूर करने में जुट गया है। इसकी शुरूआत भी जमीन वापसी से कर दी गई है। प्रशासन ने छह विभागों के आला अधिकारियों को पत्र लिखकर उनके विभाग के नाम पर आवंटित जमीनों को वापस देने को कहा है ताकि वह मेट्रो रेल डिपो के लिए दी जा सके। यही नहीं सभी विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) भी मांगी गयी है, ताकि भविष्य में जमीन को लेकर कोई विवाद पैदा न हो। हालांकि जिला प्रशासन के अधिकारी अन्य 10 विभागों के लिए आरक्षित जमीनों का रिकार्ड तलाश रही है, जो अब तक नहीं मिल सका है। इधर सूत्र बताते हैं कि इन सभी समस्याओं के अतिरिक्त 10 एकड़ जमीन को लेकर भी मामला हाईकोर्ट में उलझा हुआ है। जिला प्रशासन 77.13 एकड़ जमीन में से इस जमीन को कम कर कुल 67.13 एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव बनाकर भी भेज सकता है। जब इस संबंध में जिला प्रशासन के अधिकारियों से चर्चा की गई तो वे इस मामले को छुपाते नजर आए। दरअसल यह सब कवायद जमीन आवंटन संबंधी फाईल राज्य शासन से वापस लौटने तथा अन्य जानकारी के साथ भेजने के निर्देश के चलते की जा रही है।
मध्यप्रदेश मेट्रो रेल कंपनी ने मेट्रो का मुख्य डिपो बनाने के लिए बोगदा पुल स्थित स्टर्ड फार्म 77.13 एकड़ जमीन में से 75 एकड़ जमीन की मांग की है। इसके पीछे उनका तर्क है कि इस जमीन पर वे डिपो के साथ-साथ अन्य गतिविधियों के लिए भी निर्माण कार्य करेंगे ताकि प्रोजेक्ट में खर्च होने वाली राशि को प्राप्त किया जा सके। जिला प्रशासन के पास वर्तमान में 56.81 एकड़ जमीन खाली पड़ी है, जिसके आवंटन का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका था। अब बची हुई 22.10 एकड़ जमीन 16 विभागों को आवंटित व आरक्षित है। इसमें से 6 विभागों को जमीनें आवंटित हैं, जो कि वापस ली जा रही है, जबकि अन्य 10 विभागों को जो जमीनें आरक्षित है, उनका रिकार्ड नहीं मिल पा रहा है। मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) से कर्ज लेने की कवायद जारी है। बैंक से सैद्घांतिक सहमति मिल चुकी है। वहीं मेट्रो कंपनी जनरल कंसल्टेंट की नियुक्ति करने की प्रक्रिया में जुटा हुआ हैं। कर्ज मिलने के बाद काम शुरू होगा। इससे एक बार फिर लोगों को मेट्रो ट्रेन की आस जगी है। यह कब तक साकार होगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
भोपाल में 28 व इंदौर में 32 किमी का ट्रैक
भोपाल मेट्रो दो चरणों में पूरा होगा। ट्रैक की लंबाई लगभग 28 किमी होगी। इस प्रोजेक्ट पर 6962 करोड़ रुपए खर्च होंगे। वहीं इंदौर मेट्रो का ट्रैक करीब 32 किमी लंबा होगा। इसका कॉरिडोर एयरपोर्ट से सुपर कॉरिडोर, भंवरकुआं चौराहा, विजय नगर, पलासिया और रेलवे स्टेशन से एयरपोर्ट पहुंचेगा। प्रोजेक्ट के लिए सुपर कॉरिडोर पर छोटा बांगड़दा और नैनोद की लगभग 32.5 हेक्टेयर शासकीय भूमि चिन्हित कर ली गई है। इसमें लगभग 30 हेक्टेयर वन भूमि है। पिछले दिनों अफसरों, जिला प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों ने जमीन का वेरिफिकेशन किया था। इसमें छोटा बांगड़दा की करीब 30 हेक्टेयर और नैनोद की 2.5 हेक्टेयर भूमि आ रही है। इसके लिए वन विभाग से भी बात चल रही है। इस प्रोजेक्ट पर 7522 करोड़ रुपए खर्च होंगे। दोनों शहरों में मेट्रो का काम 2022 तक पूरा किया जाना है। मेट्रो के लिए राज्य सरकार 60 फीसदी लोन लेगी और 40 फीसदी हिस्सा केंद्र और राज्य सरकार लगाएंगी। इनमें केंद्र और राज्य सरकार आधा-आधा पैसा देंगी। एमडी मेट्रो रेल कंपनी लिमिटेड एवं प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन विवेक अग्रवाल ने बताया कि समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस कार्य को शीघ्र शुरू करवाने को लेकर अधिकारियों से कह चुके हैं। भोपाल मेट्रो के लिए राज्य सरकार यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक (ईआइबी) तथा इंदौर मेट्रो के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से लोन लेगी।
-श्याम सिंह सिकरवार