जीत की राजनीति
26-Apr-2018 12:22 PM 1234859
कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टियां जाति, धर्म, बाहुबल, परिवारवाद, दागी-बागी सबका सहारा ले रही हैं। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस ने उम्मीदवारों की घोषणा करना शुरू कर दिया है। अभी तक भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने जो उम्मीदवारों की घोषणा की है उसमें दागियों की भरमार है। दोनों पार्टियों ने उम्मीदवारों के चयन में उनके जीतने की संभावना को प्राथमिकता दी है चाहे वो दागदार ही क्यों न हों। यहां तक कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले मोदी-शाह की पार्टी भाजपा ने भी दागियों को टिकट देने में कोई परहेज नहीं किया, जो लगातार सिद्धारमैया सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं। आखिर करें भी क्यों नहीं, किसी प्रकार चुनाव जो जितना है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों ने टिकट बंटवारे में परिवारवाद को बढ़ावा दिया है। सबसे पहले बात उस पार्टी की करते हैं जिस पर हमेशा से ही राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है, यानी कांग्रेस पार्टी। इस चुनाव में भी कांग्रेस इन आरोपों पर खरा उतरती नजर आ रही है। मसलन, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपने बेटे डॉ. यतीन्द्र को वरुणा विधानसभा से टिकट दिलवाने में सफल हो गए। वहीं कर्नाटक के गृह मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने भी अपनी बेटी सौम्या रेड्डी के लिए जयानगर विधानसभा सीट प्राप्त कर ली। पूर्व रेल राज्यमंत्री मुनियप्पा की बेटी रूपा श्रीधर को कोलर गोल्ड फिल्डस से उम्मीदवार बनाया गया है। ठीक इसी प्रकार कांग्रेस ने मंत्री टी.बी. जयचंद्र के बेटे संतोष जयचंद्र को चिक्कनायकहली विधानसभा क्षेत्र से उतारा है। कर्नाटक विधानसभा के लिए हालांकि अभी भाजपा उम्मीदवारों की पूरी सूची नहीं आई है, लेकिन इसने भी नेताओं के रिश्तेदारों को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की तरफ से नामित मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र को वरुणा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। वहीं उनके बेटे राघवेंद्र वर्तमान में शिकारीपुरा से विधायक हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री एस.एम् कृष्णा, जो हाल में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं, उनकी बेटी शाम्भवी को मद्दुर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवारी मिल सकती है। जनता दल (एस) की नेता परिमाला नागप्पा के बेटे प्रीतम नागप्पा इस बार भाजपा के टिकट पर हानूर से चुनाव लडऩे जा रहे हैं। जनता दल (एस) कर्नाटक में सक्रिय तीसरी सबसे महत्वपूर्ण पार्टी है जो इस बार किंग मेकर की भूमिका अदा कर सकती है। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा वर्तमान में हासन से लोकसभा सांसद हैं और उनके बेटे एच.डी. कुमारस्वामी रामनगरम सीट से चुनाव मैदान में रहेंगे। वहीं कुमारस्वामी की पत्नी अनीता कुमारस्वामी को मधुगिरि सीट से उम्मीदवार बनाया जाएगा। एचडी देवेगौड़ा के दूसरे बेटे एचडी रेवन्ना होलनरसीपुरा से चुनाव मैदान में हैं। इस तरह से कर्नाटक में सारी पार्टियां परिवारवाद के सहारे राज्य में सरकार बनाने को आतुर हैं। लेकिन एक बात तो साफ है कि चाहे इस चुनाव में जीत किसी भी पार्टी की हो आने वाली 15 मई को जब वहां की जनता अपना फैसला सुनाएगी, तब साफ हो जायेगा कि किस पार्टी का परिवार किसके ऊपर भारी पड़ा। जातिगत समीकरण साधने से मिलेगी कर्नाटक की सत्ता? लिंगायत और वोक्कालिगा यहां कि दो प्रमुख जातियां है और सभी की निगाहें इन्हीं पार्टियों के वोट पर है। कांग्रेस और बीजेपी लिंगायतों को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं। दोनों ही दलों के शीर्ष नेता मठों के चक्कर लगा रहे हैं और लिंगायतों को अपनी ओर रिझाने में लगे हुए हैं। राज्य में लिंगायत 17 प्रतिशत और वोक्कालिगा 11-12 फीसदी हैं। लिंगायतों को वैसे तो भाजपा का वोट माना जाता है। भाजपा के येदियुरप्पा इसी समुदाय से आते हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस ने इसमें सेंध मारने की कोशिश की है। सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया है। सिद्धारमैया का ये दांव ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। राज्य की 224 सीटों में से 100 से अधिक सीटों पर इनका प्रभाव है। वहीं दूसरी तरफ वोक्कालिगा को जेडीएस का समर्थक माना जाता है। जेडीएस के एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय से आते हैं। वोक्कालिगा की कर्नाटक के दक्षिण के 10 जिलों में मजबूत पकड़ है। सिद्धारमैया पर वोक्कालिगा की अनदेखी का आरोप लगता रहा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस से वोक्कालिगा की नाराजगी का फायदा जेडीएस को मिलेगा। इसके अलावा तीसरी प्रमुख जाति कुरुबा है। कुरुबा का राज्य में महत्वपूर्ण दखल है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसी जाति से आते हैं, ऐसे में कुरुबा का समर्थन कांग्रेस को माना जा रहा है। राज्य में कुरुबा आबादी 8 फीसदी है। इसके अलावा राज्य में 19 प्रतिशत दलित और 16 प्रतिशत मुस्लिम भी हैं। इन दोनों वर्गों को प्रभाव पर वोटिंग पर दिख सकता है। इसलिए तीनों पार्टियां दलितों और मुस्लिमों को रिझाने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहती हैं। -सुनील सिंह
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