26-Apr-2018 12:14 PM
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भारतीय राजनीति में वर्तमान समय भाजपा का है। समय कभी ठहरता नहीं है, जो समय के साथ चलता है वहीं सिकंदर होता है। लेकिन देखा यह जा रहा है कि भाजपा के न तो मंत्री, न विधायक, न सांसद और न ही पदाधिकारी समय की कद्र कर रहे हैं। इसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि भाजपा के खिलाफ जनाक्रोश पनप रहा है। इसकी मूल वजह है मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और पदाधिकारियों की निष्क्रियता। अगर मध्यप्रदेश की बात करें तो पिछले एक दशक से ऐसी निष्क्रियता देखी जा रही है। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि, सक्रियता, समर्पण के कारण भाजपा लगातार चुनाव जीतती जा रही है। अब हालात और समय दोनों बदल गए हैं। चौदह साल तक बदहाली के दौर से गुजर रही कांगे्रस में जान आ गई है वहीं भाजपा सरकार के मंत्रियों, विधायकों की निष्क्रियता के कारण जनता आक्रोशित हो गई है। ऐसे में सरकार और संगठन के सामने विकट स्थिति आ गई है। पार्टी को इस स्थिति से उबारने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कंधे पर आ गई है या यूं कह सकते हैं कि मोदी-शिवराज के भरोसे भाजपा का राज है।
यही कारण है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में चौथी बार सरकार बनाने के लिए कमान संभाल ली है। यह जरूरी भी था क्योंकि कांग्रेस ने भी सांसद कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाकर पार्टी के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। आज प्रदेश में कांग्रेस भाजपा के सामने चुनौती के रूप में खड़ी हो गई है इसकी वजह भी भाजपा ही है। क्योंकि भाजपा नेताओं की निष्क्रियता के कारण ही पार्टी के खिलाफ माहौल बना है।
सीएम के निर्देशों का हश्र
मंत्रियों की खराब स्थिति की एक वजह यह भी है कि वे सरकार या संगठन के निर्देशों का पालन नहीं करते हैं। गत 27 मार्च को कैबिनेट बैठक में प्रदेश में जलसंकट को लेकर मंत्रियों ने चिंता जताई तो मुख्यमंत्री ने कहा हर मंत्री सोमवार तक अपने-अपने प्रभार के जिलों में कलेक्टरों व पीएचई विभाग से चर्चा कर पेयजल की व्यवस्था को सुनिश्चित करें। हैंडपंप चालू हैं या खराब पड़े हैं। नल-जल योजना बंद है तो क्यों? उन्होंने कहा कि पीएचई मंत्री और अधिकारी एक-एक जिले में बात करें और सोमवार को सभी मंत्री पीएचई मंत्री के साथ बैठें। इस पर कई मंत्रियों ने कलेक्टरों से चर्चा कर औपचारिकता तो पूरी कर दी, लेकिन पीएचई मंत्री के साथ बैठक में किसी ने रुचि नहीं दिााई। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को भीषण जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले भी मंत्री कई बार सीएम के निर्देशों को अनसुना कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री ने 8 फरवरी को कैबिनेट बैठक में मंत्रियों से अप्रैल से ई-कैबिनेट शुरू करने पर चर्चा की। सीएम ने कहा कि ई-कैबिनेट को लेकर प्रशिक्षण कार्यक्रम में सभी मंत्री शामिल होंगे। जब 9 मार्च को प्रशिक्षण हुआ तो सिर्फ एक दर्जन मंत्रियों ने इसमें रुचि दिखाई। सीएम ने 2 जनवरी को हुई कैबिनेट बैठक में मंत्रियों-अफसरों को साल भर का टास्क देते हुए हर महीने की 5 तारीख को इसकी रिपोर्ट सौंपने को कहा। शायद ही किसी मंत्री को सीएम का यह निर्देश याद हो। मुख्यमंत्री ने 29 अगस्त 2017 को सभी मंत्रियों को सोमवार और मंगलवार को राजधानी में रहने और दोनों दिन हर हाल में जनता से मिलने के निर्देश दिए। इसके बाद एक-दो सोमवार व मंगलवार को मंत्रियों ने सीएम के निर्देश का पालन किया और फिर पुराने ढर्रे पर आ गए। अधिकतर मंत्री सोमवार शाम को राजधानी पहुंचते हैं और कैबिनेट के बाद शाम को घरों को रवाना हो जाते हैं। पिछले साल जून में मंदसौर गोलीकांड के बाद सीएम ने सभी मंत्रियों को अपने प्रभार और गृह जिलों में जाने और किसानों को सरकार की किसान हितैशी योजनाओं के विषय में जानकारी देने के निर्देश दिए। कुछ ही मंत्रियों ने इसमें रुचि दिखाई। सीएम ने पिछले साल 9 मई को मंत्रियों से कहा कि कैबिनेट में सिर्फ निर्णय नहीं होंगे, सभी मंत्री इसकी समीक्षा भी करेंगे। कैबिनेट बैठक के दौरान लिए गए निर्णयों का क्रियान्वयन कैसा हो रहा है, हर कैबिनेट के बाद इसकी समीक्षा की जाएगी। सीएम के निर्देशों पर अमल नहीं किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने गत वर्ष 1 मई को मंत्रियों को कैबिनेट बैठक में टिफिन साथ लेकर आने को कहा। लेकिन ऐसा दोबारा नहीं हो सका। पिछले साल अप्रैल में सीएम ने कहा था कि मंत्री हफ्ते में तीन दिन गृह एवं प्रभार के जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहें। कोई भी मंत्री धूप में तपने की हिम्मत नहीं दिखा पाया।
इस बार ग्राम स्वराज योजना के तहत हर मंत्री और विधायक को गांव में रात गुजारने का निर्देश दिया गया है, लेकिन चौदह अप्रैल से शुरू हुए इस अभियान में 26 अप्रैल तक कोई भी मंत्री गांव नहीं पहुंचा। हालांकि 20 अप्रैल को कुछ मंत्रियों ने नि:शुल्क रसोई गैस वितरण में उपस्थिति दर्ज कराई। कुछ मंत्रियों का कहना है कि उनके कामकाज को लेकर मुख्यमंत्री की प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं। चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में वे सीएम निर्देश मानकर प्रभार के जिलों में जाएं, हफ्ते में दो दिन भोपाल में रहकर लोगों की समस्याएं सुनें या क्षेत्र पर ध्यान दें। अगर वे अपने क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहे तो चुनाव में जनता के सामने क्या मुंह लेकर जाएंगे। लेकिन अब ऐसी बयानबाजी या बहाने बाजी का समय नहीं है।
मुख्यमंत्री हुए सख्त
पिछले कुछ महीनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों और विधायकों के साथ जिस लहजे से बात की है उससे यह साफ हो गया है कि चुनावी साल में भाजपा की स्थिति चिंताजनक है। भाजपा में चिंता की यह स्थिति मंत्रियों की लापरवाही, अफसरों की नाफरमानी और विधायकों की निष्क्रियता से बनी है। ऐसे में सत्ता और संगठन के सामने सवाल खड़ा हो गया है कि प्रदेश में चौथी बार सरकार कैसे बनेगी? दरअसल, 2013 में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा के मंत्रियों, विधायकों, पदाधिकारियों का चाल, चेहरा और चरित्र बदल गया। सरकार और संगठन के सारे निर्देश दरकिनार कर सभी सत्ता के मद में डूबे रहे। इसको देखते हुए राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ और खुद मुख्यमंत्री कई बार चेताते रहे, लेकिन किसी की कान पर जूं तक नहीं रेंगी। अब जब स्थिति चिंताजनक हो गई है तो सरकार और संगठन के माथे पर बल पड़ गया है।
दरअसल प्रदेश में छह माह बाद विधानसभा चुनाव होना है। भाजपा सरकार को उम्मीद थी कि उसने पिछले साढ़े चार साल में जितना काम किया है, उससे वह प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बना सकती है। लेकिन विभिन्न स्रोतों से आईं सर्वे रिपोट्र्स ने सत्ता और भाजपा संगठन को चिंता में डाल दिया है। उधर, मुख्यमंत्री ने मंत्रियों और विधायकों को चेता दिया है कि अगर उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट नहीं सुधरी तो उनका टिकट कटना निश्चित है। ऐसे में अब विधायकों को अपने क्षेत्रों की चिंता सताने लगी है। दरअसल, भाजपा विधायक पार्टी के सर्वे से चिंतित हैं। सर्वे में लगातार सामने आ रहा है कि पार्टी के कई विधायकों की परफॉर्मेंस अच्छी नहीं है। मुख्यमंत्री भी साफ कर चुके हैं कि परफॉर्मेंस के आधार पर जो विधायक हार की कगार पर हैं उनका टिकट कट जाएगा। चुनाव बहुत चुनौतीपूर्ण माने जा रहे हैं। संगठन ने परफॉर्मेंस सुधारने के लिए तीन महीने का आखिरी मौका दिया है। इसके बाद स्थिति कमजोर नजर आएगी तो पार्टी उम्मीदवार नहीं बनाएगी, इसलिए विधायक अपने क्षेत्र में काम करना चाहते हैं।
कांग्रेस के पक्ष में माहौल
भाजपा के सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में जिन विधानसभा सीटों पर मौजूदा समय में भाजपा के विधायक हैं, उनमें से अधिकांश सीटों पर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनता नजर आ रहा है। इस माहौल को भुनाने के लिए दिग्विजय सिंह राजनैतिक यात्रा निकालने की तैयारी में है। सिंह की योजना 166 विधानसभा क्षेत्रों में यह यात्रा निकालने की है। भाजपा को मिले फीडबैक के अनुसार, अगर यह यात्रा निकाली जाती है तो भाजपा डैमेज कंट्रोल करने की स्थिति में भी नहीं रहेगी। इसलिए मुख्यमंत्री ने सभी मंत्रियों और विधायकों को क्षेत्र में सक्रिय रहने का निर्देश दे दिया है। बता दें कि प्रदेश में डेढ़ दशक से काबिज भाजपा की सरकार के सामने अब नर्मदा बेल्ट के तहत आने वाली करीब पांच दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर हार का खतरा मंडराता हुआ दिख रहा है। इस खतरे की बड़ी वजह जो सामने आ रही है उसके मुताबिक नर्मदा में होने वाला बड़े पैमाने पर अवैध रेत का उत्खनन और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा है।
संघ द्वारा दिए गए इस फीडबैक के बाद अब भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव के लिए नर्मदा बेल्ट पर खास फोकस करने की तैयारी कर रही है। यह फीडबैक बीते दिनों संघ के साथ हुई समन्वय बैठक में मिला था। फीडबैक में बताया गया है कि नर्मदा बेल्ट पर आने वाले जिलों में एंटीइनकंबेंसी ज्यादा है। इसकी चार बड़ी वजह मानी जा रही हैं। इनमें नर्मदा किनारे किए गए पौधरोपण के आंकड़ों का गड़बड़झाला, अवैध रेत उत्खनन, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की परिक्रमा और आदिवासियों की नाराजगी शामिल है। इन हालातों से निपटने के लिए पार्टी द्वारा अब एक दर्जन प्रदेश पदाधिकारियों के साथ स्थानीय सांसदों और जिला अध्यक्षों की टीम बनाई जा रही है। जिसका गठन प्रदेश पदाधिकारियों की अगली बैठक में किया जा सकता है। यही नहीं सरकार इन मुद्दों को ध्यान में रखकर कुछ खास कार्यक्रम भी तैयार कर सकती है। गौरतलब है कि इस इलाके से अभी भाजपा के 47 विधायक हैं।
संघ से मिले फीडबैक के अनुसार, दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा से भाजपा को काफी नुकसान की संभावना है। हालांकि, उनकी यह पदयात्रा आध्यात्मिक थी, लेकिन इसी बहाने उन्होंने नर्मदा क्षेत्र में अपने राजनीतिक संबंधों को भी पुनर्जीवित करने की कोशिश भी की है। इस दौरान वे तमाम ताम-झाम से भी दूर रहे, जिसका असर भी मतदाताओं पर पड़ा है। अपनी यात्रा के बाद दिग्विजय फिर से राजनीति के मैदान में उतरने वाले हैं। वे अपनी इस यात्रा के दौरान किए गए नर्मदा बेल्ट में बने संपर्कों का पूरा लाभ उठाएंगे। नर्मदा किनारे की 16 जिलों में अनूपपुर, डिंडोरी, मंडला, सिवनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, होशंगाबाद, सीहोर, हरदा, देवास, खंडवा, खरगौन, धार, बड़वानी और अलीराजपुर में 66 सीटें हैं, जो विधानसभा चुनाव में हार-जीत तय करेंगी।
मंत्रियों का अपना एजेंडा
करीब साल भर से चुनावी मोड में चल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समय-समय पर मंत्रियों को निर्देश देते रहते हैं, ताकि वे अपने कामकाज में सुधार लाकर जनता से जीवंत संपर्क बनाए रहें। लेकिन अधिकतर मंत्री मुख्यमंत्री के निर्देशों को लेकर संजीदा नहीं हैं। वे सीएम के निर्देश एक कान से सुनकर दूसरे कान से उड़ा देते हैं। मंत्रियों के लिए सीएम के निर्देशों से ज्यादा अपना एजेंडाÓ महत्वूपर्ण है। यही वजह है कि संगठन के सर्वे में कई मंत्रियों की परफॉर्मेंस ठीक नहीं पाई गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा पूर्णकालिकों की रिपोर्ट के बाद अब सहसंगठन मंत्री सौदान सिंह से मिले फीडबैक के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मप्र के मंत्रियों की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी है। ऐसे में शाह ने सभी 230 विधानसभा सीटों पर निजी कंपनी से सर्वे कराने की तैयारी शुरू कर दी है।
प्रदेश में भाजपा के लिए खतरे की घंटी यह है कि यहां की करीब 67 फीसदी आबादी सरकार से खुश नहीं है। इसमें करीब 52 फीसदी लोग ग्रामीण और किसान है। यह तथ्य पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषांगिक संगठनों की रिपोर्ट में आई थी और अब इस पर भाजपा के पूर्णकालिक समयदानी भी मुहर लगाते हैं। महाकोशल के एक नेता कहते हैं कि आबादी के प्रतिशत का यह आंकड़ा कितना सही है यह तो हम नहीं जानते, लेकिन सरकार के खिलाफ माहौल है।