26-Apr-2018 12:06 PM
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बुंदेलखण्ड की सबसे बड़ी और नासूर बन चुकी पेयजल समस्या को दूर करने के लिए शुरू की गई योजनाओं-परियोजनाओं का क्या हाल है, यह किसी से छिपा नहीं। न जाने कितनी परियोजनाएं कागजों में चलती रहीं और हकीकत में उनके नाम पर एक भी ईंट नहीं रखी गई। दूसरी ओर कई परियोजनाएं अपनी पूर्णावधि से आगे निकलते हुए अभी भी घिसटते हुए संचालित हो रही हैं और जनता को लाभ देने वाले उसमें भी दलाली का नमक मिर्च लगाकर फायदे का चटखारा ले रहे हैं।
बुंदेलखण्ड-मध्यप्रदेश के छह जिले हो या उत्तरप्रदेश के 7 जिले सभी की स्थिति एक जैसी है। बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत मिला फंड भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। स्थिति यह रही कि जो योजनाएं शुरू की गई वे अभी भी अधर में हैं। चित्रकूट में ऐसी ही दो परियोजनाएं बसपा शासनकाल में शुरू हुई थीं, जिनके माध्यम से अब जाकर थोड़ा बहुत पानी ग्रामीणों को मिल रहा है। दीगर बात यह है कि भविष्य में ये परियोजनाएं समुचित व सुचारू रूप से संचालित होंगी या नहीं इस पर संशय बरकरार है क्योंकि सत्ता और सिस्टम का कोई भरोसा नहीं कि कब किस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए।
पेयजल संकट से जूझ रहे बुन्देलखण्ड में पानी की तरह पैसा बहाया गया। इस समस्या से निपटने के लिए ठेकेदारों और विभागों की मिलीभगत से कई परियोजनाओं ने धरातल पर दम तोड़ दिया जबकि कागजों पर वे संचालित होती रहीं। कई परियोजनाओं को बार-बार बुखार चढ़ता रहा और गिरते पड़ते किसी तरह खानापूर्ति के नाम पर उन्हें पूरा किया गया। चित्रकूट की मऊ व बरगढ़ पेयजल परियोजना दरअसल बसपा शासनकाल के दौरान सन् 2010 में शुरू हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने जनपद के मऊ व आदिवासी बाहुल्य बरगढ़ क्षेत्र के ग्राम समूहों को पेयजल संकट से निजात दिलाने के लिए इन योजनाओं की शुरुआत की थी। इन इलाकों के किनारे से निकली यमुना नदी से पानी को लिफ्ट कराकर शुद्ध पेयजल आपूर्ति शुरू करने की परियोजना को मंजूरी दी गई थी, जिसकी कुल लागत लगभग 250 करोड़ रूपये रखी गई थी।
परियोजना की मंजूरी मिलने के बाद शुरूआती दिनों में काम तेजी से शुरू हुआ और ऐसा लगा की अगले दो वर्षों के दौरान यह परियोजना पूरी भी हो जाएगी और इसकी निर्धारित अवधि भी इतनी ही थी। शुरूआती दिनों में काम में तेजी आने के बाद कुछ ही महीनों में रफ्तार कम होने लगी और फिर सन् 2012 में सपा सरकार बनने के बाद उम्मीद जगी कि पुन: परियोजना को पंख लगेंगे। उम्मीद के विपरीत बजट न मिलने और अन्य अव्यवस्थाओं से परियोजना किसी तरह घिसटते हुए अपने पूरा होने की बाट जोहती रही। सपा सरकार में इस परियोजना को पूरा करने की बात होती रही लेकिन धरातल पर कुछ खास न हो सका। काम तो नहीं रुका और कार्य चलता रहा लेकिन साल 2012 से 17 तक भी इस परियोजना से पानी न मिल सका। साल 2017 में निजाम बदलने पर सीएम योगी ने अपने पहले दौरे 22 अक्टूबर 2017 के दौरान पेयजल संकट से निपटने के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं का जिक्र करते हुए काम में तेजी लाने का निर्देश दिया। लेकिन आज स्थिति यह है कि परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। कमोवेश यही हाल मध्यप्रदेश में भी देखने को मिल रहा है। यहां के छह जिलों में परियोजनाओं का हाल यह है कि कहीं नींव दिख रही है तो कहीं खंडहर।
क्यों नहीं बदली
बुंदेलखंड की हालात
बुंदेलखंड पैकेज में मंजूर राशि में से करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी इस इलाके की तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आया है। अब उसकी हकीकत सामने आने लगी है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा विधानसभा सचिवालय को उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक, विभिन्न विभागों के लगभग 200 अधिकारियों और कर्मचारियों ने आवंटित राशि में बंदरबांट की है। इनमें से अधिकांश के खिलाफ आरोप पत्र भी जारी किए जा चुके हैं। बुंदेलखंड बीते कुछ सालों से सूखा और जल संकट का केंद्र बन गया है। यहां गर्मी के मौसम में पीने के पानी को लेकर मारामारी का दौर शुरू हो जाता है। खेती के लिए पानी मिलना दूर की कौड़ी होता है। यहां के हालात बदलने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2008 में 7400 करोड़ रुपये विशेष पैकेज के तहत मंजूर किए थे। इसमें से 3,860 करोड़ की राशि मध्य प्रदेश के छह जिलों और शेष उत्तर प्रदेश के सात जिलों में सिंचाई, खेती, जलसंरचना, पशुपालन आदि पर खर्च की जानी थी।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया