दम निकालती सडक़ें
17-Apr-2018 07:56 AM 1234770
चुनावी वर्ष में प्रदेश सरकार के लिए सडक़ों की बदहाली सबसे बड़ी चिंता है। लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाई गई 63,637 किमी सडक़ों में से करीब 15,200 किमी सडक़ों का हाल बदहाल है। जिसमें से करीब 5,000 किमी सडक़ तो पूरी तरह खराब हो गई है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, टूटी और उखड़ी 5,000 किमी सडक़ों के सुधार में 12,000 करोड़ रूपए की जरूरत है, लेकिन केंद्र सरकार ने मात्र 2,000 करोड़ रूपए ही दिए हैं। पीडब्ल्यूडी के सूत्रों का दावा है कि 2,000 करोड़ रूपए में भ्रष्टाचार की परतें छुपाने में ही खर्च हो जाएंगे। सूत्र बताते हैं कि केंद्र से मात्र 2,000 करोड़ रूपए ही मिलने के बाद सरकार अब सडक़ों की मरम्मत के लिए एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) और एनडीबी (न्यू डेवलपमेंट बैंक) से लोन लेने की तैयारी कर रही है। सडक़ों के उखडऩे पर उनके मेंटेनेंस का काम होना है पर लोक निर्माण विभाग नवीनीकरण के प्रस्ताव देकर यह लोन ले रहा है। इस राशि से नवीन घोषित स्टेट हाईवे और मुख्य जिला मार्गों का निर्माण भी कराया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि चूंकि बैंक सडक़ों के पेंचवर्क और मरम्मत के लिए कर्ज नहीं देते हैं। इसलिए लोक निर्माण विभाग सडक़ों के निर्माण का प्रस्ताव देकर यह लोन लेगा और सडक़ सुधार कराया जाएगा। 2003 में जिन खस्ताहाल सडक़ों का सहारा लेकर भाजपा सत्ता में आई थी इस बार चुनावी साल में वही सडक़ें उसके लिए परेशानी खड़ी कर सकती है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में भोपाल समेत 20 जिलों में पांच हजार किलोमीटर की सडक़ें अब भी खराब हैं। इसका खुलासा पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा 2017 में किए गए सर्वे में हुआ है। जब विभाग ने गणना की तो पाया कि सडक़ों की हालत खस्ता है। सडक़ों के निर्माण के लिए पीडब्ल्यूडी ने वित्त विभाग को 12 हजार करोड़ का प्रस्ताव भेजा है, लेकिन अभी तक वह राशि नहीं मिली है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पिछले कुछ महीनों से खराब सडक़ों को लेकर राजनीति गर्माई हुई है। कांग्रेस ने सरकार पर सडक़ निर्माण में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। ऐसे में 20 जिलों में सडक़ों की हालत ज्यादा जर्जर हो गई है। उनमें सीहोर, सागर, होशंगाबाद, भोपाल, छतरपुर, कटनी, पन्ना, दमोह, शिवपुरी, भिंड, नरसिंहपुर, श्योपुर और अलीराजपुर आदि हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं सडक़ों को लेकर कई बार सियासी बयानबाजी हुई। कांग्रेसी दिग्गजों ने इस बात को पहले ही साफ कर दिया है कि इस साल होने वाले विधानसभा में खराब सडक़ों को मुद्दा बनाया जाएगा। राजधानी भोपाल की ही एक दर्जन से अधिक सडक़ें जर्जर हो चुकी हैं। निर्माण एजेंसी ने सडक़ बनाने के बाद मुडक़र भी नहीं देखा। कई सडक़ों की बार-बार मरम्मत की गई, इसके बाद भी सडक़ों पर डामर तक नहीं बचा। जिम्मेदार निर्माण एजेंसी सडक़ बनाने के बाद भूल जाती हैं। वहीं इसी वर्ष सडक़ निर्माण के लिए पीडब्ल्यूडी मंत्री रामपाल सिंह ने पिछले साल की अपेक्षा 35 प्रतिशत अतिरिक्त राशि की मांग की है। दरअसल, मप्र में सडक़ों के निर्माण में गुणवत्ता के मापदंडों का पालन नहीं होता है। यह सब निर्माण एजेंसियों के अधिकारियों और इंजीनियरों की मिलीभगत से ठेकेदार करते हैं। इससे प्रदेश में अधिकांश सडक़ें दो माह में ही खराब होने लगती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई मेरी सडक़ एप पर सडक़ों के घटिया निर्माण की सबसे ज्यादा शिकायतों वाले प्रदेशों में मध्य प्रदेश बाकी प्रदेशों से कहीं आगे हैं। रिपोर्ट में सामने आया है कि एप के जरिए आने वाली शिकायतों में मध्य प्रदेश पहले पांच राज्यों में शामिल है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने लोकसभा में इस बारे में जानकारी दी है। यही नहीं कई जिलों में तो प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना से तैयार सडक़ नेटवर्क तो नष्ट हो चुका है। लेकिन निर्माण एजेंसियां केवल शहरी क्षेत्र में सडक़ों को दुरूस्त करने में जुटी हुई हैं। तमाम सरकारी दावों के इतर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश में सडक़ें इस कदर बदहाल हैं कि 2003 की स्थिति नजर आ रही है। सरकार को यह तस्वीर सता रही है और वह कर्ज लेकर इन्हें सुधारने में जुट गई है। लक्ष्य में भी पीछे रह गया मध्यप्रदेश प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना के अंतर्गत सडक़ों के निर्माण के लक्ष्य में भी मध्यप्रदेश पीछे है। वर्तमान सत्र 2016-17 में मध्यप्रदेश के पास 6200 किमी की सडक़ बनाने का लक्ष्य है, लेकिन अभी तक सिर्फ 2628 किमी तक ही सडक़ निर्माण हो पाया है। यानी आने वाले चार माह में 3572 किलोमीटर सडक़ का निर्माण करना है। जो संभव नहीं लगता है। यही नहीं बसाहटों को जोडऩे के मामले में भी मध्यप्रदेश काफी पीछे है। इस साल के 2450 बसाहटों को जोडऩे के लक्ष्य की तुलना में अभी तक 467 बसाहटों को ही जोड़ा गया है। आंकड़ों की बात करें तो मध्यप्रदेश अभी आधे काम के लक्ष्य तक भी नहीं पहुंच पाया है। प्रदेश की बदहाल सडक़ों को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के विधायक भी परेशान हैं। लांजी विधायक हिना कांवरे का कहना है कि उनके विधानसभा क्षेत्र की परसोड़ी पंचायत और दो-तीन अन्य क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की सडक़ों से रेत के भारी ट्रकों के गुजरने से सडक़ें खराब हो रही है। सतना जिले के रैगांव की बसपा विधायक उषा चौधरी का कहना है कि सडक़ें इतनी जल्दी जर्जर हो रही हैं कि कल्पना भी नहीं कर सकते। - सत्यनारायण सोमानी
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