17-Apr-2018 08:09 AM
1234855
उन्नाव और कठुआ की घटनाओं से पूरा देश शर्मसार है। लेकिन इन घटनाओं को लेकर राजनीति का जो रूप देखने को मिला उससे सारा देश हैरान है। आलम यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को भी हस्तक्षेप करना पड़ा। आखिर हमारा देश किस ओर जा रहा है। उन्नाव में युवती से दुष्कर्म और उसके पिता की हत्या का आरोप उत्तरप्रदेश के भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उसके साथियों पर लगा। पुलिस ने गैर जमानती धाराओं में एफआइआर दर्ज होने के बावजूद विधायक की गिरफ्तारी नहीं होना साफ जाहिर करता है कि प्रशासनिक अमले पर सियातदानों का किस कदर खौफ है। यहां तक कि सीबीआई जांच शुरू होने के बाद भी गिरफ्तारी नहीं हुई। उच्च न्यायालय को आखिर सरकार से जवाब तलब करना पड़ा और खुद गिरफ्तारी के आदेश देने पड़े। क्या पुलिस ऐसी ही धाराओं के अन्य आरोपितों के साथ ऐसा ही सुलूक करती है? मोदी सरकार का तो नारा ही ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का था। क्या सब दिखावा था? क्यों उन्नाव और कठुआ के आरोपितों को बचाने के लिए सत्तारूढ़ दल के नेता आगे आए? क्या इन पर भी अपराधियों को बचाने की धाराओं में मुकदमें दर्ज कराने की हिम्मत सरकार दिखाएगी? विपक्ष का रवैया भी ऐसा नहीं दिखा कि वह महिलाओं व मासूम बालिकाओं के उत्पीडऩ के खिलाफ गंभीर है। न उन्नाव में और न ही कठुआ में।
विभिन्न राज्यों में मासूमों के बलात्कारियों को मौत की सजा का प्रावधान हुआ। लेकिन कितनों को सजा हुई? जबकि इन सालों में महिला उत्पीडऩ व दुष्कर्म के मामले बढ़े हैं। सिर्फ कानून बनाने या घटना होने पर सियासत करने से काम नहीं चलेगा। सभी दलों को निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर जागृति अभियान चलाना होगा। राजनीति से अपराधियों, दुष्कर्मियों, बाहुबलियों और भ्रष्टाचारियों का सफाया नहीं होगा, तो कानून-व्यवस्था सुधरने की उम्मीद बेमानी है। आमजन भी बेदाग छवि वालों को ही वोट देने की ठान ले। बदलाव आपके हाथ में है। समय आ गया है सिस्टम में चेंज का। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं।
उन्नाव और कठुआ मामले में भाजपा की भद पिटने के बाद पार्टी के नेता कह रहे हैं कि बाहरी नेताओं के कारण पार्टी शर्मसार हो रही है। भारतीय लोकतंत्र में चुनावों के समय बहुत से नेता अपने पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण दिल और दल बदल तो लेते हैं लेकिन जीतने के बाद नई पार्टी के लिए सिरदर्द भी बन जाते हैं। ऐसा ही हाल इस समय भाजपा के लिए हो गया है। उत्तर प्रदेश की बांगरमऊ विधानसभा सीट से भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप का आरोप है। कुलदीप सिंह सेंगर लगातार चार बार से विधायक हैं और कभी चुनाव नहीं हारे। 2002 का विधानसभा चुनाव वो कांग्रेस की टिकट पर लड़े और जीते थे। इसके बाद कांग्रेस का साथ छोडक़र 2007 में उन्होंने बसपा के टिकट पर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते। वो 2012 का विधानसभा चुनाव सपा की टिकट पर लड़े और उन्होंने जीत हासिल की। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में वो हवा का रुख समझ गए और उन्होंने सपा का साथ छोडक़र भाजपा का दामन थामते हुए जीत हासिल की और अब भाजपा के लिए सिरदर्द बने हुए हैं।
वहीं जम्मू के कठुआ जिले में 8 साल की बच्ची के अपहरण, रेप और हत्या के मामले में क्राइम ब्रांच ने राज्य सरकार के एक पूर्व अधिकारी समेत सात अन्य लोगों को दोषी पाया था। बलात्कार और मर्डर केस में जिनको आरोपी बनाया गया था उनके समर्थन में लोकल प्रदर्शन हो रहा था जिसमें राज्य सरकार के मंत्री लाल सिंह गए और उन्होंने लोगों को संबोधित किया। लाल सिंह ने 2014 में कांग्रेस पार्टी छोडक़र भाजपा का दामन थामा था और अब भाजपा के ये मंत्री बलात्कार के आरोपी को समर्थन देकर पार्टी के लिए सिर दर्द बने हुए हैं। वैसे तो लोकतंत्र में ‘राजनीतिक शुचिता’ का महत्वपूर्ण स्थान होता है और राजनीतिक शुचिता और विचार या सिद्धांत की बात पर भारत की राजनीति में बहस भी जारी रहती है लेकिन जहां तक भाजपा की बात है तो एक समय भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी का भाजपा के लिए मंत्र था सुराज (सुशासन), सुचिता (सुरक्षा) और सुरक्षा लेकिन वर्तमान में शायद ये भाजपा में गायब ही दिखता है।
कोई अन्य जाति का नेता होता तो पहले ही हो जाती गिरफ्तारी
उत्तरप्रदेश के उन्नाव में युवती के साथ हुए बलात्कार में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का नाम आने के बाद प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चुप्पी साध ली। प्रदेश में मनचलों को पकडऩे के लिए योगी ने जैसी तत्परता दिखाई थी वह इस मामले में गायब हो गई। इस संदर्भ में कहा जा रहा है कि उत्तरप्रदेश में जातिवाद के कारण सेंगर के खिलाफ सरकार लचीला व्यवहार कर रही थी। आरोप लग रहे हैं कि अगर किसी दूसरी जाति के नेता ने ऐसा किया होता तो खुद मुख्यमंत्री उसकी गिरफ्तारी के आदेश देने से नहीं कतराते। दरअसल उत्तरप्रदेश में जातिवाद चरम पर रहता है और वर्तमान समय में भाजपा के करीब 70-75 विधायक क्षत्रिय समाज से हैं। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री भी चुप्पी साधे रहे।
द्य विकास दुबे