वसुंधरा ही हैं भाजपा
21-May-2018 09:00 AM 1234807
राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा है और भाजपा ही वसुंधरा है राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए ये बात उनके खेमे के सबसे बड़े संकट मोचक माने जाने वाले भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने तब कही थी, जब सीएम राजे विपक्ष में थी। उस वक्त धड़ेबंदी कर भाजपा के कई नेता वसुंधरा राजे को राजस्थान भाजपा की राजनीति में अलग-थलग करने के उपाय में लगे थे। मामला आर-पार का था, लिहाजा राजे समर्थकों ने अपनी ताकत दिखाई और पार्टी में राजे विरोधी नेताओं को अपने कदम वापस लेने पड़े। पांच साल बाद कमोबेश वही स्थिति एक बार फिर है। पहले 120 सीटों फिर 163 सीटों के साथ सत्ता में लौटी वसुंधरा राजे के दोबारा सत्ता में आने के साथ ही यूं तो उनके विरोधी घेरने के बहाने तलाश रहे थे, लेकिन बीते महीनों तीन उप चुनावों में हुई भाजपा की करारी हार के बाद हालात ऐसे बने हैं कि राजे के समर्थक एक बार फिर उसी मुद्रा में मु_ी ताने नारेबाजी के अंदाज में हैं। वजह है भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के पद से राजे के समर्थक अशोक परनामी की विदाई और संघ दीक्षित गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बैठाने की दिल्ली दरबार की मंशा। केंद्र की मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री के साथ-साथ संगठन में किसान मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री का जिम्मा देख रहे गजेंद्र सिंह शेखावत यूं तो संसद में राजे की पसंद पर ही गए थे, लेकिन हालात ऐसे बने कि राजे और शेखावत भाजपा की अंदरूनी राजनीति में आमने-सामने हैं। राजे समर्थकों को लगता है कि हर विपरीत हालात में राजस्थान में भाजपा की कोई नैय्या पार लगा सकता है तो वह सिर्फ और सिर्फ वसुंधरा राजे है, बाकी सब बेमानी हैं। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक और सीमा जन कल्याण समिति के महामंत्री रहे केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष बनाना चाहता है। शेखावत के जरिए बिगड़े हुए जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने की दलील भी दी जा रही है, तो वहीं पाकिस्तान से सटी 1070 किमी भारतीय सीमा पर बतौर संघ कार्यकर्ता शेखावत द्वारा किए गए काम को भी याद दिलाया जा रहा है। लेकिन राजस्थान में भाजपा अध्यक्ष का मामला कुछ इस तरह उलझा है कि न सीएम राजे केंद्र के इस फैसले को स्वीकार करने को तैयार है और न केंद्र सीएम राजे के सुझाये नामों पर गौर करने के मूड में है। वसुंधरा राजे के करीबी और कृपा पात्र रहे अशोक परनामी ने बीती 18 अप्रैल को पद से इस्तीफा दे दिया था। विरोधियों की भाषा में कहें तो उससे चार दिन पहले ही परनामी का इस्तीफा ले लिया गया था। तबसे अब तक राजस्थान में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का मसला उलझा है। लेकिन ना तो केंद्र यानि प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनावी वेला में वसुंधरा के पसंदीदा किसी चेहरे को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पर देखने को तैयार हैं और ना ही वसुंधरा राजे दिल्ली दरबार की पसंद को मंजूरी देने के मूड में है। केंद्र गजेंद्र सिंह के नाम पर राजस्थान भाजपा की मुहर चाहता है तो राजस्थान भाजपा का सीएम राजे खेमा शेखावत के खिलाफ मोर्चा बांधे है। दलील यह है कि शेखावत राजपूत समुदाय से है और प्रतिस्पर्धी जाट समुदाय इस फैसले से चुनाव की इस घड़ी में अलग हो सकता है। हालांकि, दूसरी दलील यह भी है कि तीन दशक तक संघ के कार्यकत्र्ता के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और सीमा जन कल्याण परिषद जैसे संगठनों में काम करने के बाद भी शेखावत में कोई जातीय सोच तलाश रहा है, तो यह संघ की शिक्षा-दीक्षा पर सवाल है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के लिए शेखावत के नाम पर ही नहीं, केंद्र द्वारा सुझाए गए किसी भी नाम पर राजे समर्थकों की मुहर आसान नहीं है। कारण है आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन में प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका। सीएम राजे एक तरफ बड़ी जातियों के खिलाफ चुनावों में होने वाली गोलबंदी से बचाना चाहती है, दूसरी ओर ये भी चाहती हैं कि अध्यक्ष जो भी बने वह सरकार के साथ सुर मिलाकर काम करने वाला हो। शेखावत के बढ़ते कद से कई हैं हैरान-परेशान सवाल उठता है कि गजेंद्र सिंह शेखावत जब खुद सीएम वसुंधरा राजे की पसंद रहे हैं तो अब क्यों और किस वजह से खटक रहे हैं। जवाब है जैसलमेर के चर्चित चुतर सिंह एनकाउंटर मामले में शेखावत द्वारा की गई सीबीआई जांच की मांग। सूत्र बताते हैं कि शेखावत ने जैसलमेर पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर पर सवाल करते हुए सीबीआई जांच के पक्ष में ट्वीट किया तभी से समीकरण बदलने शुरू हो गए। जो अलग-अलग फीडबैक के चलते फिर ठीक होने की स्थिति में नहीं रहे । इस बीच शेखावत द्वारा बतौर संघ कार्यकर्ता कोई तीन दशक तक की गई सेवाओं और संसद में परफॉर्मेंस के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने शेखावत को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया तो इलाके के जनप्रतिनिधियों को भी उनका बढ़ता राजनीतिक कद खटकने लगा। नतीजा यह है कि सीएम राजे का खेमा तो आगामी चुनावों के मद्देनजर किसी अपने को अध्यक्ष बनाने की पैरवी में जुटा ही है। गजेंद्र सिंह शेखावत के एकाएक बढ़ते कद से कई राजपूत क्षत्रप भी हैरान-परेशान हैं। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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