17-Apr-2018 07:47 AM
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9 अप्रैल को दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा के समापन अवसर पर पार्टी में व्याप्त गुटबाजी का जो नजारा देखने को मिला उससे सवाल उठने लगे हैं कि पंद्रह साल बाद आखिर कांग्रेस की साख कैसे लोटेगी? दरअसल इस यात्रा के कई राजनैतिक मायने निकाले जा रहे थे। यात्रा को लेकर जहां कांग्रेस में उत्साह था वहीं भाजपा में बेचैनी। वह इसलिए कि दिग्विजय सिंह को जानने वाले जानते हैं कि वे बिना किसी बड़े उद्देश्य के ऐसा बड़ा कदम नहीं उठा सकते। लेकिन इस यात्रा के समापन अवसर पर सांसद कमलनाथ और केवल दिग्विजय समर्थक नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ने यह दर्शा दिया कि पार्टी में अभी भी बड़ी खाई है। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति के सशक्त नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और अजय सिंह की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी रही। ऐसे में हर कोई सवाल पूछ रहा था कि क्या यही कांग्रेस की एकता है? क्या ऐसे ही कांग्रेस सत्ता में वापस आएगी?
तमाम सवालों के बीच छह माह के लंबे राजनैतिक अवकाश के दौरान प्रदेश की जीवनदायनी नर्मदा की परिक्रमा करने वाले दिग्विजय सिंह एक बार फिर राजनीति में सक्रिय होने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उनका राजनैतिक तौर पर अगला कदम क्या होगा इस पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। हालांकि वे पहले ही प्रदेश में राजनैतिक यात्रा पर निकलने की घोषणा कर चुके हैं। खास बात यह है कि उनके कदम को लेकर भाजपा ही नहीं कांग्रेस के नेताओं की भी नजर बनी हुई है। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उन पर जहां गुटों में बंटी कांग्रेस पार्टी को एकजुट करने की चुनौती है तो वहीं उन पर अब सत्तारूढ़ दल भाजपा को चुनौती देने की भी जिम्मेदारी है। वजह साफ है कि वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही पार्टी आलाकमान के करीबी भी हैं।
दरअसल वे ऐसे नेता है जो कहते हैं उसे वे पूरी शिद्दत के साथ निभाते भी हैं। उनका प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद दस साल तक कोई चुनाव नहीं लडऩे का प्रण हो या कोई पद न लेने की प्रतिज्ञा, उन्होंने ईमानदारी से अपने संकल्पों का मान रखा। नर्मदा परिक्रमा आसान अनुष्ठान नहीं था, लेकिन उन्होंने उसे भी पूरी तरह से साधा। परिक्रमा पर राजनीति की छाया नहीं पडऩे देने की बात पर भी वे कायम रहे। यात्रा के दौरान वे कांग्रेस की मजबूती के लिए प्रदेश की यात्रा पर निकलने की बात करते रहे हैं। उनकी यात्रा कब से शुरू होगी और उसका स्वरूप कैसा होगा, यह कौतूहल का विषय है। क्या वाकई वे कांग्रेस में एकता ला पाएंगे? यह सवाल इसलिए, क्योंकि भाजपा पर जीत की यह पहली और अनिवार्य शर्त है। 15 साल तक सत्ता में रहने के कारण सरकार और उसके नुमाइंदों के प्रति लाजमी-सी नाराजगी के बावजूद भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका बेजोड़ सांगठनिक ढांचा और नेताओं के बीच समन्वय का होना है।
कांग्रेस इन दोनों मामलों में गरीब है। संगठन की हालत यह है कि हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह न्याय यात्रा पर निकले तो कार्यकर्ताओं की गैरमौजूदगी आयोजन और उसके उद्देश्य के साथ न्याय नहीं कर पाई। राजधानी भोपाल में जब न्याय यात्रा का समापन हो रहा था, तब जलसे वाली जगह पर कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं की कमी बड़े नेताओं को खल रही थी।
अभी भी कांग्रेस में नहीं दिख रही एकता
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा पूरी हो चुकी है। इसके साथ ही प्रदेश की राजनीति में एक नया दौर शुरू हो गया है। मप्र में कांग्रेसी नेताओं ने यात्राओं की राजनीति शुरू कर दी है। लेकिन कहीं भी उनमें एकता नजर नहीं आ रही है। दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा के समापन समारोह में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न जाकर यह संकेत तो दे ही दिया है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा, कुछ तो गड़बड़ है। यूं नजर तो अजय सिंह भी नहीं आए, लेकिन उन्होंने इसका कारण बताया कि वे अस्वस्थ हो गए थे। कांग्रेस चाहती तो इस जलसे को शक्ति प्रदर्शन के रूप में भुना सकती थी, लेकिन वह ऐसा करने में विफल हो गई। हो सकता है कि सिंधिया को नेतृत्व के मसले पर दिग्विजय का कमलनाथ के पाले में खड़ा होना रास न आया हो, लेकिन यह तो वे भी जानते हैं कि कमलनाथ के मामले में सिंह शुरू से संजीदा रहे हैं। उस समय से जब स्व. माधवराव सिंधिया जीवित थे।
-सुनील सिंह