17-Apr-2018 07:43 AM
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आम आदमी के खाते में चंद पैसों की आमद भी बैंकों के लिए तहकीकात का कारण बन जाती है, लेकिन हमारे माननीयों की संपत्ति में हो रही बेतहाशा वृद्धि खबरों में भी जगह नहीं पाती। हालांकि संपत्ति में बढ़ोतरी नितांत निजी मामला है, लेकिन अगर किसी जनप्रतिनिधि की संपत्ति 17 लाख 68 हजार से बढक़र 10 करोड़ 16 लाख हो जाए तो यह अचरज में डालने वाला है। एक आम आदमी कैसा भी व्यापार करे उसे हजार को लाख में बदलने में दशकों लग जाते हैं, जबकि हमारे माननीय महज एक बार के प्रतिनिधित्व में लाख को करोड़ में बदलने का माद्दा रखते हैं।
2014 में लोकसभा चुनाव में जो 168 सांसद दोबारा चुनकर आए, उनमें से 165 की औसत संपत्ति 12.78 करोड़ रुपए थी, जो 2009 की उनकी औसत संपत्ति से 137 फीसदी ज्यादा थी। अफसोस कि सपत्ति बढ़ाने का यह सियासी फॉमूर्ला न तो उन्हें पता है और न ही वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, जो बेरोजगारी और गरीबी की मार से हलकान हैं। भारत में इस समय करीब 5 करोड़ लोग रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं और बेरोजगारी व गरीबी भी उन मुद्दों में से प्रमुख है, जिनका राग अलाप कर लोग राजनीति में आते हैं। लेकिन सेवा के नाम पर की जा रही सियासत जिस तरह से भारी मुनाफा देने वाले उद्योग में बदलती जा रही है, यह राजनीति के साथ-साथ लोकतंत्र की सार्थकता पर भी सवाल खड़े करता है। एक गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका के मुताबिक, दूसरी बार चुने गए 25 सांसदों और 257 विधायकों की संपत्ति 5 साल में 5 गुना बढ़ गई है। वहीं अगर कुल मिलाकर बात करें तो ऐसे सांसदों और विधायकों की संख्या भी सैकड़ों में है, जिनकी संपत्ति में 100 से लेकर 500 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उत्तर प्रदेश के बांसगांव से भाजपा सांसद कमलेश पासवान की संपत्ति में तो 5,649 फीसदी का इजाफा हो गया है। 2099 में कमलेश पासवान की संपत्ति 17 लाख 68 हजार थी, जो 2014 में बढक़र 10 करोड़ 16 लाख 40 हजार 625 रुपए हो गई। इस फेहरिश्त में सोनिया गांधी, वरुण गांधी, मुलायम सिंह यादव, जयराम रमेश, शत्रुघ्न सिन्हा, अर्जुन राम मेघवाल और सदानंद गौड़ा जैसी नामचीन हस्तियां भी शामिल हैं, जिनकी संपत्ति में 500 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। विधायकों की संपत्ति में बढ़ोतरी की बात करें, तो वे इस मामले में सांसदों से भी आगे हैं। कर्नाटक के चेंगानूर से कांग्रेस विधायक विष्णुनाथ की संपत्ति 5,632 रुपए से बढक़र 25 लाख 2 हजार हो गई है।
यह बढ़ोतरी 44,325 फीसदी है। विधायकों की संपत्ति बढ़ोतरी में भी कोई पार्टी किसी से पीछे नहीं है। ओड़ीशा के शेरगढ़ से भाजपा विधायक बाबू सिंह की संपत्ति 5 हजार से बढक़र 3 करोड़ 74 लाख 94 हजार हो गई है। यह बढ़ोतरी 39,367 फीसदी है। ऐसा भी नहीं है कि यह बढ़ोतरी किसी एक राज्य के किसी एक विधायक की संपत्ति में हुई है। मध्य प्रदेश के विधायकों की औसत संपत्ति में 290 फीसदी, हरियाणा के विधायकों की 245, महाराष्ट्र के विधायकों की, 157 फीसदी और छत्तीसगढ़ के विधायकों की औसत संपत्ति में 147 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 70 फीसदी विधायक तो ऐसे हैं, जिनकी संपत्ति 1 करोड़ रुपए से ज्यादा है। सांसदों-विधायकों के वेतन में यह बेतहासा वृद्धि इसलिए भी सवाल खड़े करती है, क्योंकि एक जनप्रतिनिधि के रूप में इनकी कमाई उतनी नहीं होती, जिससे इतनी बढ़ोतरी हो सके। अफसोस कि सपत्ति बढ़ाने का यह सियासी फॉमूर्ला न तो उन्हें पता है और न ही वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, जो बेरोजगारी और गरीबी की मार से हलकान हैं।
मतदाताओं को भा रहे अमीर जनप्रतिनिधि
एक अनुमान के मुताबिक सामान्य उम्मीदवारों की तुलना में अमीर प्रत्याशियों के चुनाव जीतने की सम्भावना 10 गुना ज्यादा होती है। हाल के चुनाव परिणामों पर नजर डाले तो पता चलता है कि मतदाताओं के बीच अमीर विधायकों और सांसदों की पसंद बढ़ती जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जितने प्रत्याशी मैदान में थे, उनमें हर पांच उम्मीदवारों में से एक की संपत्ति 5 करोड़ रुपए से ज्यादा थी। ऐसा भी नहीं है कि ये ट्रेंड सिर्फ सुविधासंपन्न राज्यों में ही है, गरीब राज्यों के मतदाता भी अमीर उम्मीदवारों को तरजीह दे रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में एक करोड़ की औसत संपत्ति वाले विधायकों के जीतने की सम्भावना मध्य प्रदेश में 46 फीसदी थी, जबकि छत्तीसगढ़ में 42 फीसदी।
-श्याम सिंह सिकरवार