17-Apr-2018 07:32 AM
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गर्मियों के शुरू होते ही प्रदेश के जंगलों में आग लगनी शुरू हो गई है। आलम यह है कि पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर जोन हो या फिर सीधी का संजय टाइगर रिजर्व या उमरिया के घुनघुटी रेंज की चंदनियां बीट या फिर दमोह, रीवा, डिंडोरी, सारणी, बैतूल, पन्ना, सतना हर क्षेत्र के जंगलों में आग धधक रही है। अब तक सैकड़ों हेक्टेयर जंगल खाक हो गए हैं। दरअसल, वन महकमें के पास आग बुझाने के पर्याप्त साधन नहीं हैं, इसलिए छोटी सी आग भी विकराल रूप ले लेती है। उधर, आग के कारण वन्य प्राणी जंगल से बाहर आने लगे हैं। कई जगह तो वन्य प्राणियों ने लोगों पर हमला भी किया है। कटनी जिले के बरही के जंगल में एक बाघ आदमखोर हो चुका है। अब तक उसने तीन लोगों को अपना शिकार बनाया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जंगलों में आग अमूमन हर साल लगती है। पर आग बुझाने की एहतियाती रणनीति बना ली जाए तो आग से होने वाली क्षति कम की जा सकती है। जब तक वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर वनों के प्रबंधन में आमजनों की भागीदारी नहीं बढ़ाई जाएगी, तब तक कोई भी इंतजाम वनों को आग से नहीं बचा सकता है। स्थिति यह है कि जंगल में फैले इस दावानल से खुद को बचाने के लिए चीतल, सांभर, नीलगाय जैसे शाकाहारी वन्यप्राणी सडक़ों पर घूमते नजर आने लगे हैं। इसके साथ ही सैकड़ों हेक्टेयर में फैले सूक्ष्म जीव और वनस्पतियां भी नष्ट हो गए। जंगल में आए दिन लग रही आग को रोकने के लिए टाइगर रिजर्व और वन मंडलों द्वारा मिलकर प्रयास किए जाने की जरूरत है। बीते साल पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन द्वारा आग को बुझाने के लिए एयर ब्लोवर खरीदने की बात भी कही जा रही थी। लेकिन आग लगने पर कर्मचारी पेड़ों की डालियों और फायर पीटर से ही आग बुझाते रहे। आग लगाने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से इस प्रकार की वारदातों पर रोक नहीं लग पा रही है।
जंगल को आग से बचाने की सरकार की अब तक की सारी कोशिशें फेल साबित हुई है। आग की घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। वर्ष 2016 के मुकाबले वर्ष 2017 में जंगल में आग लगने की 11 हजार से ज्यादा घटनाएं हुई है। यह स्थिति तब है, जब जंगल को आग से बचाने के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता के नाम पर सरकार द्वारा इन सालों में 4.23 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। ऐसे में सरकार ने इसे अब एक नई चुनौती के रूप में लिया है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में जंगल में आग लगने की कुल 15,937 घटनाएं घटित हुई थी, जबकि वर्ष 2016 में यह बढक़र 24,817 हो गई है। वहीं वर्ष 2017 में जंगल में आग लगने की कुल 35,888 घटनाएं घटित हुई। मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक वर्ष 2017 को लेकर यह रिपोर्ट मार्च में आई है। इसके बाद मंत्रालय ने जंगल को आग से बचाने की नए सिरे कोशिशें तेज की है।
जंगल में आग लगने की इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 में सबसे ज्यादा आग मध्य प्रदेश के जंगलों में लगी। जहां आग लगने की कुल 4781 घटनाएं घटित हुई। दूसरे नंबर पर ओडिशा रहा है, जहां आग की 4416 घटनाएं दर्ज हुई। वहीं तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ रहा है, जहां आग की 4373 घटनाएं दर्ज की गई है। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक जंगल को आग से बचाने के लिए सेटेलाइट सहित कई तकनीक की मदद ली जा रही है। इसके अलावा जंगल में फायर लाइन तैयार करने जैसे उपायों पर जोर दिया जा रहा है, बावजूद इसके जंगल में घटनाएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। मंत्रालय ने इस बीच जंगल में आग की बढ़ती घटनाओं पर रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों की मदद मांगी है। उन्हें इसके लिए एक अत्याधुनिक तकनीक विकसित करने का चैलेंज दिया है।
वनों को गांव को सौंप दो
देश के अन्य भागों के जंगल भी आग की चपेट में आए हैं। एक अनुमान है कि प्रतिवर्ष लगभग 37 लाख हेक्टेयर जंगल प्रभावित हो रहे हैं। कहा जाता है कि इन जंगलों को पुनस्र्थापित करने के नाम पर हर वर्ष 440 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने होते हैं। देश भर के पर्यावरण संगठनों ने कई बार मांग की है कि वनों को गांव को सौंप दो। अब तक यदि ऐसा हो जाता, तो वनों के पास रहने वाले लोग स्वयं ही वनों की आग बुझाते। वन विभाग और लोगों के बीच में आजादी के बाद अब तक सामंजस्य नहीं बना है। जिसके कारण लाखों वन निवासी, आदिवासी और अन्य लोग अभयारण्यों और राष्ट्रीय पार्कों के नाम पर बेदखल किए गए हैं। यदि वनों पर गांवों का नियंत्रण होता और वन विभाग उनकी मदद करता, तो वनों को आग से भी बचाया जा सकता है। आम तौर पर कहा जाता है कि वन माफिया का समूह वनों में आग लगाने के लिए सक्रिय रहता है। वन्य जीवों के तस्कर अथवा विफल वृक्षारोपण के सबूतों के मिटाने के नाम पर आग लगाई जाती है। इसके अलावा वनों को आग से सुखाकर सूखे पेड़ों के नाम पर वनों के व्यावसायिक कटान का ठेका भी मिलना आसान हो जाता है।
-बृजेश साहू