मजबूरी की मजदूरी!
17-Apr-2018 05:59 AM 1234794
मप्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम करने वाले मजदूरों की प्रतिदिन की मजदूरी में केंद्र सरकार ने 2 रूपए का इजाफा किया है। मध्यप्रदेश में मनरेगा की मजदूरी की दर 172 रुपए प्रतिदिन थी, जिसमें 1.16 फीसदी की वृद्धि की गई है। इसके बाद अब मनरेगा मजदूरों को 174 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान होगा। प्रदेश में दैनिक मजदूरी भी प्रतिदिन 230 रुपए ही है। ये आंकड़े बताते हैं कि सरकार श्रमिकों के प्रति कितनी संवेदनहीन है। अगर देखें तो बीते आठ सालों में महंगाई सूचकांक 148 से 272 तक पहुंच गया है। लेकिन सरकार के लिए देश में महंगाई सूचकांक सबके लिए अलग-अलग है। सांसदों का वेतन 55 फीसदी, विधायकों का वेतन 50 फीसदी की वृद्वि के साथ 71 हजार से 1 लाख 10 रुपए हो गया है। सातवें वेतनमान के बाद अफसरों का मूल वेतन भी दो गुने से भी ज्यादा हो गया है। वहीं मनरेगा मजदूरों की मजदूरी में 2 रूपए की वृद्धि कहां तक न्याय संगत है। हालांकि पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं कि हमने तो केंद्र सरकार को 210 रुपए की वृद्धि प्रस्तावित की थी। केंद्र की कमेटी मजदूरी की दरें तय करती है। टास्क के आधार पर मजदूरी में वृद्धि की जाती है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की मजदूरी के साथ भी इसकी तुलना की जाती है। केंद्र और राज्य सरकार मजदूर और किसान हितैषी होने का दावा कर रही हैं, लेकिन आंकड़े इसके विपरीत हैं। आलम यह है कि सरकार की तमाम नीतियों के बाद भी जनता बेहाल है और माननीय मालामाल हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने पिछले चार साल में मध्यप्रदेश के मनरेगा मजदूरों की मजदूरी में रोजाना 15 रूपए की वृद्धि की है, जबकि विधायकों का मासिक वेतन 1 लाख 10 हजार तक पहुंच गया है। विधायक इसे भी कम मान रहे हैं। आलम यह है कि जिस राज्य में जन्म लेते ही बच्चे कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं, उस राज्य में केंद्र सरकार ने मनरेगा मजदूरों की मजदूरी में इस साल 2 रूपए का इजाफा किया है। यानी 1 अप्रैल से मनरेगा मजदूरों को प्रतिदिन 174 रूपए की मजदूरी मिलेगी। वहीं समाजसेवा के नाम पर राजनीति में आने वाले माननीयों की पगार ही नहीं संपत्ति भी तेज रफ्तार से बढ़ती जा रही है। मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की बात करें तो 2015 में जहां उनकी प्रतिदिन की मजदूरी 159 रूपए थी, उसे 8 रूपए की बढ़ोतरी के साथ 2016 में 167 रूपए और 2017 में 5 रूपए बढ़ाकर 172 रूपए और वर्ष 2018 में 2 रूपए की बढ़ोतरी के साथ 174 रूपए किया गया है। दरअसल, जब इस देश में मनरेगा योजना लागू की गई थी तो कहा गया था कि यह गरीबों के उद्धार के लिए मील का पत्थर साबित होगी, लेकिन यह योजना गल्तियों का स्मारक साबित हो रही है। खुद वर्तमान केंद्र सरकार ने भी इसे यूपीए की गल्तियों का स्मारक कहा था, लेकिन यह सरकार भी गल्तियां कर बैठी है। जहां योजनाओं-परियोजनाओं के लिए खरबों रूपए का प्रावधान बजट में किया गया है, वहीं मजदूरों की मजदूरी में कहीं एक तो कहीं पांच की बढ़ोत्तरी की गई है। यह कैसी विसंगति है कि एक तरफ सरकार सरकारी कर्मचारियों को सातवां वेतनमान दे रही है वहीं मजदूरों की मजदूरी में इतनी कम बढ़ोत्तरी की गई है कि उससे वे अपने बच्चों की एक कॉपी भी नहीं खरीद सकते। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की गारंटी देने वाली योजना की दैनिक मजदूरी में सालाना बढ़ोतरी हैरान करने वाली है। 600 की जाए मजदूरी मनरेगा संघर्ष मोर्चा की सह संयोजक अंकिता अग्रवाल कहती हैं कि यह रवैया सरकार की गरीबों के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। सांसद, विधायकों के डीए में तो भारी इजाफा होता है। देश में लगातार गैर बराबरी बढ़ रही है, गरीब और गरीब होता जा रहा है। हम इसका घोर विरोध करते हैं। उन्होंने बताया कि हमने केंद्र सरकार को खुला पत्र लिखकर सातवें वेतनमान के हिसाब से मजदूरी 600 रुपए करने की मांग की है। वहीं भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश अध्यक्ष ज्ञानप्रकाश तिवारी कहते हैं कि ये मजदूरों के साथ मजाक है। दो रुपए मजदूरी बढ़ाने का कोई औचित्य ही नहीं है। महंगाई आसमान छू रही है और मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जा रही। हम केंद्र सरकार के सामने आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। -राजेश बोरकर
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