02-Apr-2018 07:07 AM
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कांग्रेस के कर्णधार राहुल गांधी पूरे देश में कांग्रेस का चेहरे बदलने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस की सर्जरी में कई राज्यों में बदलाव होने वाला है। मप्र भी इसमें शामिल है, जहां 15 सालों से भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में है। कांग्रेस के नेताओं ने भी मान लिया है कि यदि नवंबर 2018 के चुनाव में उसने भाजपा को सत्ता से बाहर नहीं किया तो फिर उसे हमेशा के लिए विपक्ष में ही बैठना होगा। इसलिए इस बार कांग्रेस निर्णायक युद्ध भाजपा के साथ करना चाहती है, लेकिन उसके पहले नेतृत्वकर्ता कौन हो, इसको लेकर अहम सवाल खड़ा है। अभी कांग्रेस के पास दो ही चेहरे हैं एक हैं सिंधिया और दूसरे कमलनाथ।
सिंधिया को लेकर कार्यकर्ता उत्साहित हैं, जनता भी सिंधिया में आशा की किरण देखती है, लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा तबका सिंधिया को प्रदेश का नेतृत्वकर्ता घोषित करने के पक्ष में नहीं है। और इसमें सबसे बड़ी बाधा दिग्विजय सिंह हैं। वे सामने से कुछ भी कहें, लेकिन वास्तविकता यह है कि वे लंबे समय से मप्र में कमलनाथ को लाना चाहते हैं। हालांकि कमलनाथ भी फौरी तौर पर यह कह चुके हैं कि सिंधिया से उन्हें कोई ऐतराज नहीं, लेकिन जिस तरह से नाथ कुछ महीनों से प्रदेश में अपना सेटअप जमा रहे हैं, इससे लगता है कि उन्होंने अभी नेतृत्वकर्ता के मामले में अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं। पार्टी में कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले पार्टी उन्हें भरोसे में लेना चाहती है। परिक्रमा पूरी होते ही कोर कमेटी भी अस्तित्व में आ जाएगी। दिग्विजय सिंह लगातार कमलनाथ से संपर्क में है और चाहते हैं कि भले ही कमलनाथ कांग्रेस में प्रदेश का बहुमत आने के बाद मुख्यमंत्री न बने, लेकिन लड़ाई उनके नेतृत्व में ही होना चाहिए।
कांग्रेस के सूत्र कहते हैं कि सिंधिया चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के बड़े फायनेंशियल सपोटर नहीं बन सकते हैं, जबकि कमलनाथ दिल खोलकर मदद कर सकते हैं। चेहरे के मान से भले ही कमलनाथ सिंधिया के मुकाबले कमतर हो, लेकिन संगठनात्मक और वित्तीय मामलों में वे दिलदार हैं और उम्मीदवारों को भाजपा से लडऩे के लिए बड़े आर्थिक सहयोग की जरूरत भी पड़ेगी और इसमें कमनलाथ बहुत कारगर साबित हो सकते हैं। समझा जाता है कि प्रदेश में मैनेजमेंट और संगठनात्मक नेतृत्व के लिए कमलनाथ को लाया जा सकता है, भले ही बहुमत आने पर मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान पर छोड़ दिया जाए। सियासी सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच इस समय दिग्गी पुत्र विधायक राजवर्धन सिंह सेतूबंध का काम कर रहे हैं। नर्मदा परिक्रमा यात्रा के दौरान राजवर्धन सिंह ही संदेशवाहक बने रहे। इधर प्रदेश के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया को भी प्रदेश से खो करने की तैयारी में एक बड़ा खेमा लग गया है।
उधर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। इसी कड़ी में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने मंत्री रामपाल सिंह और उनके परिजनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर आंदोलन का रास्ता पकड़ लिया है। वहीं अजय सिंह कहते हैं कि पत्रकारों की सुरक्षा भी चिंता का विषय है। एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि पत्रकारों की कमेटी बनाकर
उनसे ही उनकी सुरक्षा के संबंध में निर्णय कराया जाए। यही नहीं वे कहते हैं कि मैंने बहुत मुख्यमंत्री देखे हैं। जब डंडा सही चलता है तो घोड़ा सही चलता है। लेकिन इनका न डंडा सही चलता है न घोड़ा सही।
नर्मदा परिक्रमा पूरी होते ही शुरू होगा सियासी हल्ला
लगभग 6 महीने से नर्मदा की परिक्रमा कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह 3100 किमी की दूरी तय कर 9 अप्रैल को अपनी यात्रा का समापन विधिवत तरीके से कर देंगे और 10 को ओंकारेश्वर में अभिषेक करेंगे और इसके बाद प्रदेश की बची हुई 110 सीटों पर दौरा करने निकलेंगे। दिग्गी की नर्मदा परिक्रमा यात्रा पूरी होने के बाद ही प्रदेश में सियासी हल्ला तेज हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि 30 सितंबर 2017 से दिग्विजय सिंह अपनी धर्मपत्नी अमृता सिंह को साथ लेकर नरसिंहपुर जिले के बरमान घाट से नर्मदा परिक्रमा पर निकले हैं। 9 अप्रैल को 3100 किमी की उनकी यात्रा पूरी हो जाएगी और वे बरमान घाट पर यात्रा का समापन करेंगे और फिर 300 परिक्रमावासियों को साथ लेकर 9 अप्रैल की रात हरदा से ओंकारेश्वर पहुंचेंगे, इसके साथ ही उनका 20 साल पुराना नर्मदा परिक्रमा का संकल्प पूरा हो जाएगा। वे ओंकारेश्वर से इन्दौर आएंगे और फिर यहां से आगे रवाना होंगे। 6 माह से दिग्विजय सिंह ने राजनीति से लगभग किनारा कर रखा था और इस बीच मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व का मामला भी पूरी तरह पेंडिंग रहा। अब दिग्विजय सिंह की यात्रा पूरी होने के साथ ही प्रदेश में कांग्रेस का सियासी हल्ला तेज हो जाएगा। नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट अब कार्यरूप में परिणित हो जाएगी। प्रदेश की 230 में से 120 सीटों पर नर्मदा परिक्रमा के दौरान दिग्विजय सिंह पहुंच चुके हैं और जो 110 सीटें बची हैं, उन पर वे अब पहुंचेंगे।
-भोपाल से अजय धीर