02-Apr-2018 06:47 AM
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अच्छी कानून-व्यवस्था विकास की सबसे पहली शर्त है। मप्र में पिछले 12 साल में हुए विकास को देखें तो कहा जा सकता है कि यहां कानून व्यवस्था बेहतर है, लेकिन प्रदेश में बढ़ते हुए महिला अपराध, छेड़छाड़, बलात्कार की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि यहां व्यवस्था भले ही सुदृढ़ है लेकिन कानून शिथिल है। इसी के कारण यहां चौकीदार से बड़े अपराधी हो गए हैं। आलम यह है कि चाहे महिला अपराध हो या अवैध खनन या विभागों में फैला भ्रष्टाचार सब दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है। खासकर महिला अपराधों से तो मध्य प्रदेश सरकार की नींद हराम है। मध्य प्रदेश सरकार ने महिला अपराध को बढ़ते देख विधानसभा में कानून बना दिया मगर उस कानून का असर प्रदेश के अपराधियों के ऊपर होते हुए बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहा है। एक के बाद एक हो रही सामूहिक बलात्कार की घटनाओं से थर्राए प्रदेश में कानून-व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए अब पुलिस कमिश्नर प्रणाली का सहारा लिया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर और भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा कर दी। इससे अपराधों में कमी आएगी इसकी गारंटी फिलहाल नहीं है।
दरअसल हमारे देश में व्यवस्थाएं पूरी तरह लचर हैं। अब हमारी आजादी बूढी होती जा रही है व हम अनुभवों से परिपक्व होते जा रहे हैं। इन 70 सालों में हमने अपनी एकता, अखंडता के दम पर विश्व में अपनी एक पहचान बनाई है। हमारे देश में अब भी जनता की सरकार है। हर फैसला हमारा है परंतु फिर भी मन में एक टीस है, वह है असुरक्षा की भावना। दरअसल हमारी कानून व्यवस्था इन 70 सालों में हममें सुरक्षा का भाव नहीं भर पाई है। यह हमारी कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिंह नहीं बदनुमा दाग है। मप्र में अब इसी दाग को धोने के लिए सरकार पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की तैयारी कर रही है। यह प्रणाली लागू होने से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के पास ही दंडाधिकारीय अधिकारी की शक्तियां आ जाएंगी, जिससे अपराधों पर नियंत्रण लगाने तथा अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में पुलिस प्रशासन को मदद मिलेगी।
अपराधों पर लगेगी लगाम?
भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा के बाद लोगों के मन में ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे अपराधों पर लगाम लगेगी? इस सवाल के जवाब में प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच कहती हैं कि अगर पुलिस प्रशासन अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से निभाए तो ही अपराधों में कमी आ सकती है। सिस्टम बदलने से अपराधों में कमी नहीं आएगी। पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद क्या गारंटी है कि अपराधों में गिरावट आएगी। सरकार को पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की बजाए पुलिस के ढांचे को सुदृढ़ करना चाहिए। पुलिस के वर्तमान ढांचे में एडीजी स्तर के अफसरों की भरमार है, जबकि मैदानी अमले की कमी है। थाने से लेकर जिला और संभाग मुख्यालय में पदस्थ अफसर व कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से निभाएं, इस पर जोर होना चाहिए।
अगर निर्मला बुच के नजरिए से देखें तो उनका कहना सही है। क्योंकि प्रदेश में अक्सर देखने, सुनने और पढऩे को मिलता है कि थानों में अपराध पंजीबद्ध करने में लापरवाही बरती जाती है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल पुलिस की कार्यपद्धति पर है। पुलिस की नियमावली कहती है कि अपराध की सूचना मिलते ही अपराध पंजीबद्ध किया जायेगा। जहां घटना घटी है वह स्थान सूचना मिलने वाले पुलिस थाने का नहीं है तो भी प्रकरण जीरों पर दर्ज करके सम्बन्धित पुलिस थाने को भेजा जाये, पर ऐसा होता नहीं है। इस कार्रवाई हेतु हर पुलिस थाने में 24 घंटे एक अधिकारी तैनात रखने का भी हुकुम है, लेकिन टालमटोल पुलिस की कार्य प्रणाली का अंग बन गया है। ऐसे में क्या गारंटी है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद व्यवस्थाएं सुधर जाएंगी।
अब तक के सभी प्रयोग नाकाम
वर्तमान समय में देश के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। दिल्ली, बेंगलूरू और मुंबई के अपराधों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि यह प्रणाली भी अपराध रोकने में उतनी कारगर नहीं है। अगर मप्र के संदर्भ में देखें तो यह महिला अपराधों में पूरे देश में पहले स्थान पर है। प्रदेश को अपराध मुक्त बनाने के लिए सरकार ने कई प्रयोग किए लेकिन कोई कारगर नहीं हो सका। वर्ष 2009 में एसएसपी सिस्टम इंदौर और भोपाल में लागू किया गया लेकिन इससे भी कोई बदलाव नहीं दिखा। उसके बाद सीएम ने वर्ष 2012 में 28 फरवरी को विधानसभा में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की घोषणा की थी। लेकिन इस पर बात नहीं बनी। सरकार ने 18 दिसंबर 2012 को दो महानगरों में एसएसपी सिस्टम समाप्त कर डीआईजी सिस्टम लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी थी। लेकिन इसका भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। यही नहीं राजधानी पुलिस ने लॉ एंड आर्डर और इन्वेस्टिगेशन विंग अलग-अलग बनाने का प्रयोग भी किया। यह प्रयोग सबसे पहले हबीबगंज थाने में किया गया। हालांकि वक्त के साथ-साथ यह भी फाइलों में बंद होकर रह गया। यानी अब तक सरकार ने अपराधों को रोकने के लिए जो भी प्रयोग किए हैं वे नाकाम रहे हैं।
इस संदर्भ में पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि सिस्टम बदलने की बजाय पुलिस की जवाबदेही तय होना चाहिए। पुलिस पर प्रयोग बंद हो, कमिश्नर सिस्टम से अपराध का संबंध नहीं है। नई प्रणाली को लागू करने से अपराधों में कोई कमी नहीं आने वाली है बल्कि इससे उल्टे पुलिस पर ही काम का बोझ बढ़ जाएगा। पहले एसएसपी, फिर डीआईजी और अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम। यदि ऐसा होता तो बेंगलुरू और दिल्ली में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद अपराधों में कमी आती। दोनों शहरों में महिला अपराध बढ़े हैं।
उधर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक अरुण गुर्टू कहते हैं कि पुलिस के पास सीमित अधिकारी हैं। ऐसे में अगर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होती है तो पुलिस सशक्त होगी। उसकी निर्णय क्षमता बढ़ेगी। जब तक पुलिस को मजिस्ट्रियल पावर नहीं मिलेंगे, पुलिसिंग कैसे होगी। जब पावर मिलेंगे तो जवाबदेही तय होगी। आज स्थिति यह है कि डीजीपी के सामने हुए बयान भी कोर्ट में मान्य नहीं होते। ऐसे में पुलिस का मनोबल गिरता है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली एक ऐसा सिस्टम है जो पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह बनाएगा। जब तक अच्छा सिस्टम नहीं बनेगा, अच्छे से अच्छा अधिकारी परिणाम नहीं दे पाएगा।
40 सूत्रीय कार्य योजना
उधर सरकार ने 40 सूत्रीय कार्ययोजना बनाकर उस पर अमल करने की कार्यवाही शुरू कर दी है। इस कार्ययोजना के तहत समेकित आंतरिक सुरक्षा नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन को कारगर बनाने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में समिति गठित करने की बात कही गई है। साथ ही मध्यप्रदेश जन सुरक्षा विधेयक, आदिवासियों के सामान एवं सम्मान के लिए अभियान चलाने, उन पर दर्ज छोटे प्रकरण वापस लेने, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पट्टा वितरण करने, ट्राइबल एडवाइजर काउंसिल की नियमित बैठक करने, अल्पसंख्यक वर्गों के प्रबुद्धजनों के साथ मंथन करने अपराधियों की संपत्ति राजसात करने, विधि आयोग का गठन करने, सायबर एवं सोशल मीडिया का गठन करने, सूद खारों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई करने का प्रावधान किया गया है।
नई व्यवस्था लागू करने के
लिए प्रक्रिया क्या होगी?
सरकार ने भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा तो कर दी है। जानकारी के अनुसार पुलिस कमिश्नर सिस्टम को अध्यादेश या विधेयक की बजाय सीधे नोटिफिकेशन के जरिए लागू करने की तैयारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हरी झंडी मिलने के बाद पुलिस मुख्यालय ने 24 घंटे के भीतर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा (8) में इस प्रणाली के नोटिफिकेशन का मसौदा तैयार कर गृह विभाग को भेज दिया। यह मसौदा पश्चिम बंगाल के आसनसोल-दुर्गापुर की तर्ज पर तैयार किया गया है। इसमें विधि विभाग की मंजूरी मिलना है। वहां से हरी झंडी मिलते ही राज्य सरकार इसे नोटिफिकेशन से लागू कर सकती है। पुलिस कमिश्नर को प्रतिबंधात्मक और कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के अधिकार मिल जाएंगे। मसौदे के अनुसार दोनों शहरों के नगरीय क्षेत्र में पुलिस कमिश्नर सर्वेसर्वा हो जाएंगे। भोपाल पुलिस कमिश्नर के अधीन नगरीय क्षेत्र के 35 और इंदौर कमिश्नर के पास 29 थाने होंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा (8) की उपधारा 1 के तहत राज्य शासन किसी भी क्षेत्र को पुलिस कमिश्नर प्रणाली प्रयोजन के लिए मेट्रोपोलिटिन क्षेत्र घोषित कर सकता है। पुलिस एक्ट 1861 की धारा (2) के तहत ऐसे मेट्रोपोलिटिन क्षेत्र के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को पुलिस कमिश्नर घोषित किया जा सकता है। ये अधिकारी आइजी स्तर के होंगे। पुलिस कमिश्नर को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा (20) की उपधारा (5) के तहत कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के अधिकार दिए जा सकते हैं। जानकारी के अनुसार भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर का मुख्यालय अलग-अलग होगा। यह शहर दो जोन में बंटेंगे। पुलिस कमिश्नर के पास एक-एक डिप्टी कमिश्नर और तीन-तीन उपायुक्त रहेंगे। इनके अधीन पुलिस थाने, महिला थाने, सीआइडी, यातायात जैसी विंग होगी। जोन को थानों के हिसाब से सर्कल में बांटा जाएगा। हर सर्कल पर एक इंस्पेक्टर तैनात होगा।
उधर डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला ने सागर में कहा, आवश्यकता के अनुरूप व्यवस्था में बदलाव जरूरी है। आइपीएस एसोसिएशन के संजय राणा का कहना है कि कमिश्नर प्रणाली में अधिकार मिलने से पुलिस अपराध नियंत्रण पर बेहतर ढंग से फोकस कर सकेगी। हम सिर्फ दो शहरों की बात कर रहे हैं, बाकी तो आइएएस अफसरों के पास ही रहेंगे। आईजी इंटेलीजेंस मकरंद देउस्कर कहते हैं कि महानगर का रूप लेने वाले भोपाल और इंदौर की विशेषताओं का हवाला देते हुए राज्य शासन को पुलिस कमिश्नर प्रणाली का प्रस्ताव भेजा गया है। इसमें पुलिस को लोकशांति स्थापित करने और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए कारगर उपाय अपनाने की शक्तियां देने का प्रस्ताव दिया है। इसमें सीआरपीसी की प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की धारा 107, 116 व 110 जैसे अधिकार का प्रस्ताव है।
वहीं पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच आईएएस अफसरों ने तय कर लिया है कि वे इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयानबाजी नहीं करेंगे। आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन भी इस मामले में कोई बयान नहीं देगी। जब सरकार कोई निर्णय कर लेगी, उसके बाद विचार करके रणनीति बनाई जाएगी। वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के बीच अनौपचारिक चर्चा में यह रणनीति तय की गई। साथ ही यह भी कहा गया कि हमारा आईपीएस अफसरों के साथ कोई झगड़ा नहीं है।
पुलिस को मिलेंगे मजिस्ट्रियल पावर
राजधानी सहित प्रदेशभर में बढ़ रही आपराधिक वारदातों के बीच सरकार भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रणाली का नया प्रयोग करने की तैयारी में है। यानी सरकार ने पुलिस को मजिस्ट्रियल पावर देने का मन बना लिया है। इसका मतलब यह होगा कि पुलिस को लाठीचार्ज और धारा 144 लागू करने के लिए कलेक्टर के आदेश का इंतजार नहीं करना होगा। गुंडों को जमानत मिलेगी या नहीं यह पुलिस की कोर्ट में तय होगा। इसके लागू होने से पुलिस के अधिकार बढ़ेंगे। प्रतिबंधात्मक धाराओं में गिरफ्तार आरोपियों की जमानत पुलिस की कोर्ट से होगी। जिलाबदर भी पुलिस अफसर ही तय करेंगे। सीमित क्षेत्र में धारा 144 लागू करने के अधिकार होंगे। लाठीचार्ज की अनुमति कलेक्टर से नहीं लेनी होगी। धरना-प्रदर्शन, रैलियों की अनुमति पुलिस देगी। जानकारी के अनुसार भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही है कि जिलाबदर के प्रस्ताव महीनों तक कलेक्टर कोर्ट में पेंडिंग रहते हैं कई आदतन अपराधियों को भी एसडीएम कोर्ट से जमानत मिल जाती है। पुलिस जिस अपराधी का प्रोफाइल जानती है, उसे सीधे जेल भेजेगी। कानून व्यवस्था से जुड़े विषयों पर पुलिस खुद निर्णय ले सकेगी।
6 साल बाद याद आई पुलिस कमिश्नर प्रणाली
तेजी से बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाने में नाकाम रही सरकार अब भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की तैयारी कर रही है। इसके साथ ही प्रदेश में एक नई बहस शुरू हो गई है। इसको लेकर कांग्रेस भी सरकार पर हमला बोल रही है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि हजारों बालिकाओं की अस्मत लुट गई, प्रदेश बलात्कार में नंबर-वन हो गया, अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 6 साल बाद भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली की घोषणा की याद आई। सिंह कहते हैं कि पुलिस आयुक्त प्रणाली, फांसी का कानून, कोरी घोषणाओं से नहीं इच्छाशक्ति से घटनाओं और तंत्र पर लगाम लगता है, जिसमें मुख्यमंत्री और उनका तंत्र पूरी तरह असफल है। मौजूदा कानून का पालन करने में सरकार पूरी तरह असफल है। अपनी असफलता को छुपाने वह फिर नई चाल चलने में व्यस्त हो गई। कांग्रेस का आरोप है कि मप्र में 2004 से लगातार अपराधों में इजाफा हो रहा है। महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों की स्थिति यह है कि 2004 से 2016 तक 46,308 दुष्कर्म की घटनाएं हुईं, जो देश में सर्वाधिक हैं। 2004 में 2,875 दुष्कर्म की नृशंस घटनाएं हुईं वे आज बढक़र प्रतिवर्ष 4,909 के आंकड़े पर पहुंच गई हैं। वहीं, बच्चियों, महिलाओं के अपहरण के मामलों की संख्या 2004 में 584 थी वह आज बढक़र प्रति वर्ष 4,904 पर पहुंच गई है यानी ये मामले लगभग 10 गुना बढ़े हैं।
पुलिस का नाकामी
छुपाने का नया खेल
सामाजिक कार्यकर्ता पीजी नाजपाण्डे कहते हैं कि पुलिस या खाकी वर्दी का जिक्र आते ही आम लोगों में सुरक्षा का भाव आता है लेकिन मध्य प्रदेश की पुलिस बड़े मामलों के खुलासे और प्रभावशाली लोगों को पकडऩे की नाकामी की भरपाई मनचलों के नाम पर गरीब युवाओं का जुलूस निकाल रही है। पुलिस ने आम आदमी का आपराधिक घटनाओं और अपराधियों की ओर से ध्यान हटाने के लिए यह नया खेल शुरू किया है। इसी कड़ी में अब पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का शगूफा छोड़ा गया है। सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय वाते कहते हैं कि मनचलों का जुलूस निकालना पुलिस का टोना-टोटका जैसा है। वास्तव में पुलिस का काम है कि वह कानून व नियम के तहत काम करे। अपराधी छोटा हो या बड़ा सभी के साथ एक जैसा सलूक किया जाना चाहिए। जुलूस निकालने से अपराधियों में खौफ पैदा होगा, ऐसा नहीं लगता। सर्वोच्च न्यायालय तो आरोपी को हथकड़ी तक लगाने के खिलाफ है मगर यह जुलूस निकालने का अधिकार पुलिस को किस नियम या कानून के तहत मिला है यह समझ से परे है। वाते आगे कहते हैं कि कानून के लिए न तो कोई छोटा होता है और न ही कोई बड़ा, जिसने अपराध किया है, उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। कानून का पालन हर छोटे-बड़े व्यक्ति को करना होगा तभी अपराधों पर अंकुश लग सकेगा। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं को बालिकाओं और युवतियों का सबसे बड़ा हितैषी बताते हैं। उन्होंने 12 वर्ष की आयु तक की बालिकाओं से दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा देने का कानून पारित कर केंद्र सरकार को भेजा है। सरकार के इस कदम के बाद भी राज्य में बालिकाओं, महिलाओं से छेड़छाड़ और अन्य तरह की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।
37 साल पहले कैबिनेट में आया था प्रस्ताव
पुलिस कमिश्नर प्रणाली पिछले 37 साल से फाइलों में कैद है। वर्ष 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह की कैबिनेट में सबसे पहले यह प्रस्ताव आया था। इसके बाद दिग्विजय सिंह सरकार ने भी प्रस्ताव तैयार किया था, जो विधेयक के रूप में राज्यपाल के पास अनुमोदन तक की स्थिति में पहुंच गया था। बाद में भाजपा सरकार आई और 2012 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा की। अब फिर कानून व्यवस्था की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने इस सिस्टम को लागू करने के संकेत दिए हैं। इससे पहले 3 जून 1981 को कैबिनेट में लाए गए प्रस्ताव में पांच लाख से ज्यादा की आबादी वाले चार शहरों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की मंजूरी दी गई थी। हालांकि कैबिनेट के उस फैसले पर बाद में कुछ नहीं हुआ। फिर 27 मार्च 1997 को दिग्विजय सिंह सरकार के तत्कालीन डीजीपी स्व. अयोध्यानाथ पाठक ने जबलपुर में एक कार्यक्रम में घोषणा कर दी थी कि भोपाल और इंदौर का पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लिए चयन किया गया है। वर्ष 2000 में दिग्विजय सरकार के दूसरे कार्यकाल में फिर इसके मसौदे पर मंथन शुरू हुआ। पुलिस कमिश्नर प्रणाली का विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। विधेयक के लिए तत्कालीन डीजीपी स्व. एएन सिंह ने ताबड़तोड़ तरीके से पुलिस कमिश्नर प्रणाली का प्रस्ताव तैयार कराया था। विधानसभा में पारित होने के बाद विधेयक अनुमोदन के लिए राजभवन पहुंचा, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल स्व. डॉ. भाई महावीर ने इस पर स्वीकृति नहीं दी। वर्ष 2012 में राज्यपाल के अभिभाषण में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए यह ऐलान किया था कि भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जाएगी।