घटता जल बढ़ता संकट
16-Mar-2018 09:23 AM 1235210
मप्र में पिछले साल हुई कम बारिश का असर अब दिखने लगा है। राज्य में सूखे की वजह से हालात बिगड़ते नजर जा रहे है। खासतौर पर 23 जिलों में पानी का संकट अब धीरे-धीरे विकराल रूप ले रहा है। ऐसे में राज्य सरकार के सामने चुनावी साल में लोगों को जलसंकट से निजात दिलाने के लिए अपना खजाना खोलने का दबाव है। प्रदेश के 378 नगरीय निकायों गर्मी के मौसम में पानी मुहैया कराने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग ने अपनी कार्ययोजना तैयार की है। शहरों में पीने के पानी की समस्या से निपटने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग ने राज्य सरकार से 122 करोड़ रुपए की मांग की है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि आखिर क्या वजह है कि प्रदेश में हर साल जल संकट आ खड़ा होता है। सरकारी दावे के अनुसार मप्र के 51 जिलों की 367 तहसीलों, 313 विकासखंड़ों, 476 शहरों, 54903 गांवों, 16 नगर निगमों, 98 नगरपालिकाओं, 264 नगरपरिषदों, 22825 ग्राम पंचायतों के माध्यम से यहां निवासरत लोगों को पर्याप्त पेयजल मुहैया कराने की व्यवस्था की गई है। लेकिन हर साल गर्मी की दस्तक के साथ ही जलसंकट पैर पसारने लगता है। इसकी वजह है नल-जल योजनाओं के निर्माण में भ्रष्टाचार, पंचायत ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय प्रशासन विभाग और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग के अफसरों और कर्मचारियों की भर्राशाही, अल्पवर्षा, जलस्त्रोतों का असफल होना, पुरानी योजनाएं और वाटर लेवल कम होना। सरकार हर साल इन अव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए दावा करती है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। 2171 नल-जल योजनाएं ठप्प प्रदेश की साढ़े सात करोड़ आबादी की प्यास बुझाने के लिए 15488 नलजल योजनाएं हैं। लेकिन विसंगति यह देखिए कि उनमें से 13317 योजनाएं चालू हैं और 2171 बंद पड़ी हैं। वहीं प्रदेश में 537476 हैंडपंप हैं जिनमें से 506926 चालू हैं 30550 बंद पड़े हैं। ऐसे में हर साल जलसंकट होना लाजमी है। यही नहीं सरकार हर साल पेयजल की योजनाएं बनाती हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश पूरी नहीं हो पाती हैं। जल संसाधन विभाग में वर्ष 2017-18 के लिए 10075 बसाहटों में पेयजल का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन अभी तक 6142 बसाहटों में ही व्यवस्था हो सकी हैं। सरकारी दावे के अनुसार प्रदेश के बड़े शहरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 150 लीटर और प्रदेश की कुल बसाहटों 127559 में से 108763 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। वहीं 18796 बसाहटों में कम पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन सरकार के दावे के इतर देखें तो प्रदेश में जलप्रदाय की व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है। राजधानी भोपाल भी जलसंकट से अछूता नहीं है। बुंदेलखण्ड, ग्वालियर, चंबल, शहडोल, इंदौर, जबलपुर, रीवा, संभाग के गांवों में लोग बूंद-बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रदेश की पांच करोड़ आबादी को पानी पिलाने के लिए जिम्मेदारी पीएचई के पास कोई तत्कालीन रणनीति नहीं है जिससे गांवों का पेयजल संकट दूर हो सके। जानकारी के अनुसार अभी तक सीएम हेल्प लाइन, मुख्यमंत्री कार्यालय, पीएचई कार्यालय और नगरीय निकाय विभाग को 1 लाख से ज्यादा शिकायतें सिर्फ पेयजल संकट की मिली हैं। नगरीय प्रशासन मंत्री माया सिंह ने पानी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र से राशि देने की मांग की है। इस संबंध में एक प्रस्ताव केंद्र को भेजा जा रहा है। तैयार कार्ययोजना के मुताबिक नगर निगमों को 66 करोड़ 60 लाख, नगर पालिकाओं को 32 करोड़ 2 लाख और नगर परिषदों 23 करोड़ 40 लाख रुपये देने का प्रावधान रखा गया है। राज्य सरकार को अभी तक 23 जिलों से 120 निकायों में पानी के परिवहन के लिए 19 करोड़ 40 लाख रुपये के प्रस्ताव मिले है। पानी के लिए परेशान ग्रामीण 10 अक्टूबर 2017 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि फरवरी 2018 तक मुख्यमंत्री ग्राम नलजल योजना में प्रस्तावित सभी 2 हजार 379 ग्रामों के लिए 1650 नलजल योजनाएं अभियान के रूप में शुरु की जाएंगी, लेकिन आज स्थिति यह है कि प्रदेश में अधिकांश पुरानी नलजल योजनाएं भी ठप पड़ी हैं। इस कारण लोगों को नदी-नहरों का पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है। प्रदेश में सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जलसंकट से जूझ रहे हैं। नल जल योजनाएं बंद होने की बजह से ग्रामीण बूंद-बंूद पानी के लिए परेशान हो रहे हैं। शासन ने ग्रामीणों को पेयजल सप्लाई के लिए नलजल योजनाओं को संचालित करने के लिए अरबों रुपए पानी में बहा दिए लेकिन नलों में पानी नहीं आया। मार्च माह में ही जल स्तर नीचे जाने से हैंडपंपों ने साथ छोड़ दिया है। जिन गांवों में नलजल योजनाएं चालू नहीं हैं वहां ग्रामीण खेतों में स्थित कुओं से पीने के लिए पानी ला रहे हैं। बंद नलजल योजनाओं को चालू कराने के लिए कई बार जनप्रतिनिधि मुद्दे उठा चुके हैं लेकिन स्थिति में खास सुधार नहीं आ पाया है। कई सालों से नलजल योजनाएं शो पीस बनी हैं। 12,235 पंचायतों ने नलजल योजना नहीं प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी नलजल योजना के नाम सुनते ही पंचायतों में लोगों का गुस्सा फूटने लगता है। पंचायत ग्रामीण विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश की 22,825 ग्राम पंचायतों में से 12,235 ग्राम पंचायतों में नलजल योजना आज तक नहीं पहुंची है, जबकि जिन 10,590 पंचायतों में योजना पहुंची तो है, वहां भी स्थिति बुरी है। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल्य सीधी जिले में पेयजल संकट गहराने लगा है। सूखे की वजह से यहां जलस्तर भी तेजी से खिसक रहा है। कुएं सहित अन्य जल स्रोत सूख जाने से लोग नाले व नहरों के पानी से प्यास बुझाने को मजबूर हैं। पिछले साल प्रदेश के कई जिलों में मानसून की देरी से दस्तक और फिर बीच-बीच में कम वर्षा का असर अब भू-जलस्तर पर दिखाई देने लगा है। प्रदेश के ज्यादातर सभी विकासखंडों में भू-जलस्तर की स्थिति चिंताजनक है। आलम यह है कि कहीं 100 तो कई 150 मीटर तक जल स्तर चला गया है। अतिदोहित क्षेत्रों में इस बार स्थितियां और भी खराब हो गई हैं। कई जगह जलस्तर 200 मीटर से नीचे चला गया है। बांधों-जलाशयों की स्थिति चिंताजनक प्रदेश में बांधों-जलाशयों के गिरते जलस्तर को लेकर केंद्रीय जल आयोग ने भी चिंता जताई है। गत दिनों जारी आयोग की रिपोर्ट बताती है कि देश के बांधों, तालाबों और नदी क्षेत्रों (रिवर बेसिन) में जलस्तर गिर रहा है। बांधों और तालाबों के मामले में यह गिरावट 10 साल के औसत से भी नीचे चली गई है। बांधों और जलाशयों का जलस्तर 63.59 बीसीएम (अरब घन मीटर) के स्तर पर है। यह पिछले 10 साल के औसत 69.76 बीसीएम से भी नीचे चल रहा है जो कि 39 फीसदी है। 15 फरवरी से पहले के हफ्ते में यह 41 फीसदी था। प्रदेश के बरगी, तवा, बारना, इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, बाणसागर, संजय सरोवर, राजीव सागर, गांधी सागर, मनीखेड़ा, गोपीकृष्ण माही, हलाली सम्राट अशोक सागर, कोलार, केरवा, राजघाट आदि प्रमुख बांधों का जल स्तर तेजी से कम हो रहा है। परियट जलाशय में सिर्फ 10.50 फीट पानी रह जाने के कारण इसमें से रोजाना 10 एमएलडी पानी ही लिया जा रहा है। इसके बदले उमरिया में बरगी दायीं तट नहर से 25 एमएलडी पानी रांझी प्लांट तक पहुंचाया जा रहा है। नर्मदा नदी बेसिन में भी पानी दस साल के औसत से नीचे चला गया है। नर्मदा नदी बेसिन के इलाकों में पानी की किल्लत बढ़ रही है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटेकर कहती हैं कि प्रदेश सरकार की नीतियों के कारण नर्मदा किनारे जलसंकट फैल रहा है। वह कहती हैं कि नदी में अवैध खनन और सरदार सरोवर बांध के कारण मध्यप्रदेश ही नहीं गुजरात में भी जलसंकट फैल रहा है। गुजरात के 131 शहर और 53 फीसदी गांवों को पेयजल की आपूर्ति नर्मदा से होती है लेकिन बारिश कम होने से नर्मदा में पानी बहुत कम है। इसके अलावा सिंचाई और उद्योग को भी पानी की सप्लाई होनी है। जाहिर है, गर्मी में यहां हालात बहुत खराब होने का अंदेशा है। मध्य प्रदेश के शहरों में पानी की किल्लत अभी से शुरू हो चुकी है। 30 फीसदी भूजल ब्लॉक खतरे में देश के करीब 30 फीसदी ब्लॉक में भूमिगत जल तेजी से खत्म हो रहा है, ऐसे में किसी बड़े जल संकट से बचने के लिए सरकार 6,000 करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी योजना बना रही है। इस योजना के तहत सामुदायिक भागीदारी से जल संसाधनों के फिर से भरने की व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा। केंद्र सरकार की अटल भूजल योजना नामक इस योजना की आधी लागत विश्व बैंक वहन करेगा और आधी रकम केंद्र सरकार बजटीय सहयोग के रूप देगी। केंद्रीय जल संसाधन सचिव यूपी सिंह को उम्मीद है कि इसके लिए 31 मार्च, 2018 तक बजट मंजूर हो जाएगा, ताकि इसे एक अप्रैल से लागू किया जा सके। इस योजना में स्थानीय स्तर पर जल संसाधनों के पुनर्भरण और जल के प्रभावी इस्तेमाल पर जोर होगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड के पिछले आंकलन रिपोर्ट के अनुसार देश के 6,584 ब्लॉक में सर्वे करने पर पता चला कि इनमें से 1,034 ब्लॉक में भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन हो चुका है। इसका मतलब यह है कि इन ब्लॉक में सालाना जितने भूजल का खपत हो रहा है, वह सालाना भूमिगत जल के पुनर्भरण से ज्यादा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार 934 ब्लॉक की हालत बेहद संवेदनशील मानी जा सकती है, क्योंकि वहां जल का बस उपभोग हो रहा है और पुनर्भरण का कोई उपाय नहीं है। अतिशय जल उपभोग वाले ब्लॉक पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी यूपी, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में केंद्रित हैं। गौरतलब है कि देश में सिंचाई जरूरत का 60 फीसदी हिस्सा, पेयजल जरूरत का 85 फीसदी हिस्सा और शहरी जल जरूरतों का करीब 50 फीसदी हिस्सा भूजल से आता है। मध्यप्रदेश में अभी से जल संकट की जो स्थिति निर्मित हो रही है उससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या प्रदेश में भी जल आपातकाल लगेगा? दरअसल मध्यप्रदेश की जीवनरेखा मानी जाने वाली नर्मदा नदी की बिगड़ती स्थिति और बांधों में कम होते जलस्तर ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। इस वर्ष नर्मदा घाटी क्षेत्र में हुई कम बारिश के कारण नर्मदा तथा इसकी सहायक तवा, कुंदी, हथनी, बरनार सहित 20 से अधिक नदियां पूरी तरह भर नहीं पाई। परिणामस्वरूप नर्मदा में अपनी कुल क्षमता से लगभग 45 प्रतिशत कम पानी आया। इससे प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में जलसंकट बढ़ा है। सिंचाई के योग्य नहीं कुएं प्रदेश में जलसंकट की एक वजह है नलजल और सिंचाई की योजनाओं में भ्रष्टाचार। खासकर बुंदेलखंड में कुओं की खुदाई में मापदंड़ों का परिपालन नहीं किया गया है। इससे प्रदेश के सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना और टीकमगढ़ आदि जिलों में सिंचाई के अभाव में फसले बर्बाद हो रही है। मनरेगा के तहत कुओं की खुदाई में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। मनरेगा में अधिकारियों और विभाग के जिम्मेदारों द्वारा किस प्रकार आंकड़ों की बाजीगरी दिखाई जा रही है इसका खुलासा एक एनजीओ समर्थन द्वारा किए गए सर्वे में हुआ है। यह रिपोर्ट आने के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग पड़ताल की खानापूर्ति में जुटा हुआ है। उल्लेखनीय है कि मनरेगा के तहत प्रदेशभर में कपिलधारा के कुओं की खुदाई में कराई गई है। उन कुओं के आवंटन से लेकर खुदाई तक में भारी घोटाला हुआ है। सुर्खियों में आने के बाद भी प्रदेश सरकार इस महाघोटाले का सच सामने लाने से कतराती रही। जांच की औपचारिकताएं ही की जाती रहीं। जांच गुम होती गई। बड़ी मछलियों को साफ बचा लिया गया। पंचायत स्तर से लेकर अधिकारी और बैंक तक इस घपले में शामिल रहे। लेकिन किसी पर कार्रवाही नहीं हुई। इन जिलों में मनरेगा के तहत हो रहे कार्यों की लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं। वर्तमान में 13767 शिकायतें अधर में लटकी हुई हैं। अभी इन शिकायतों का निराकरण हुआ की नहीं कुओं की खुदाई का मामला सामने आ गया है। पन्ना जनपद की पांच ग्राम पंचायतों में पूर्ण बताए जा रहे 218 कपिल धारा कुओं में 200 से भी अधिक अधूरे पाए गए हैं। जिन कुओं को पूरा बताया जा रहा है उनके खातों में बड़ी मात्रा में राशि भी बकाया दिखाई जा रही है। पूरे बताए जा रहे कामों की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) भी अपलोड नहीं की गई है। जानकारी के अनुसार पन्ना जिले में मनरेगा की स्थिति बहुत ही दयनीय है। सात करोड़ से अधिक का भुगतान बकाया है। उसके बाद 13 हजार से अधिक रिजेक्ट ट्रांजेक्शन में करीब एक करोड़ रुपए फंसा है और नौ हजार से अधिक काम अधूरे हैं। 10 लाख लोग कर चुके हैं पलायन विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि मध्यप्रदेश में पानी की कमी के चलते बड़े हिस्से में पेयजल संकट गहरा गया है, वहीं खेती पर बुरा असर पड़ा है। इतना ही नहीं, राहत कार्य शुरू न किए जाने से 10 लाख से ज्यादा लोग काम की तलाश में पलायन कर गए हैं। प्रदेश में व्याप्त सूखे और पेयजल संकट के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बदतर हो चुकी है, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार लोगों की इस समस्या पर ध्यान देने की बजाय उसे नजरअंदाज कर रही हैं। नेता प्रतिपक्ष सिंह ने मुख्यमंत्री से सवाल किया है कि प्रदेश के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए जो साढ़े तीन हजार करोड़ की राहत केंद्र सरकार से मांगी थी, बताएं वह मिली या नहीं। प्रदेश की पांच करोड़ से अधिक की आबादी पेयजल संकट से जूझ रही है। अजय सिंह कहते हैं कि प्रदेश में सवा पांच लाख हैंडपंप में से ढाई लाख हैंडपंप बंद पड़े हैं। जलस्तर नीचे जाने से 18 हजार से अधिक हैंडपंप सूख गए हैं। बिजली संकट के कारण 2674 नलजल योजनाएं बंद पड़ी हुई हैं। लगभग 12235 ऐसे ग्राम पंचायत हैं जो नलजल विहीन हैं। 27 की जगह 17 एमएएफ से भी कम पानी नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के अनुसार आमतौर पर नर्मदा में 27 एमएएफ पानी वर्षभर रहता है, लेकिन इस बार 17 एमएएफ से भी कम पानी ही नदी में रह गया है। गौरतलब है कि इस समय इंदौर, भोपाल समेत मध्य प्रदेश के 18 शहर पेयजल के लिए नर्मदा के जल पर आश्रित हैं। साथ ही आने वाले समय में नर्मदा के जल को और भी शहरों में पहुंचाने की योजना है। छोटे नाले में तब्दील हुई कलकल बहती नर्मदा की धार पिछले 20 सालों में पहली बार नर्मदा अपने न्यूनतम जलस्तर से नीचे पहुंच गई है। ये स्थिति फरवरी माह के अंत तक हुई है, जबकि अभी गर्मी का मौसम आना बाकी है। नर्मदा किनारे के शहरों में पेयजल संकट और खेतों में सिंचाई के लिए जलसंकट के आसार बन गए हैं। नर्मदा की ताजा स्थिति को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इसे मानवीय त्रुटी बताते हुए मप्र सरकार पर आरोप लगाया कि गुजरात चुनाव के लिए केंद्र सरकार के कहने पर सरकार ने खाली बांधों से पानी छोड़कर मप्र की जनता के हितों से खिलवाड़ किया है। नबआं की कमला यादव, गौरीशंकर कुमावत ने बताया कि मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार द्वारा किए गए नर्मदा जल के दुरुपयोग के कारण दोनों ही राज्यों के निवासियों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। मप्र में कई शहरों-गांवों में पेयजल संकट खड़ा हो गया है। गुजरात सरकार ने वहां के विधानसभा चुनाव के दौरान नर्मदा जल का दुरुपयोग करने से सरदार सरोवर बांध का पानी समय से काफी पहले जवाब दे गया है और सरकार को अब सिंचाई प्रतिबंधित करने का आदेश जारी करना पड़ा है। नबआं के राहुल यादव ने बताया कि गुजरात सरकार ये लचर तर्क दे रही है कि इस साल बारिश कम होने के कारण ऐसी स्थिति बनी है, लेकिन सब जानते है कि सरदार सरोवर के गेट बंद करने से इस वर्ष पिछले सालों की अपेक्षा ज्यादा पानी संग्रहित हुआ था।
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