साख का सवाल
02-Apr-2018 06:44 AM 1234819
पांच करोड़ यूजर्स के फेसबुक डाटा लीक मामले की आंच दुनिया के कई देशों में महसूस की जा रही है। फेसबुक उपयोगकर्ताओं से जुड़ी सूचनाएं और जानकारियां चोरी होने और उनके बेजा इस्तेमाल की जो घटना सामने आई है, उसने न केवल सरकार बल्कि सोशल मीडिया मंचों पर सक्रिय रहने वालों की नींद उड़ा दी है। फेसबुक को लेकर भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में हडक़ंप मचा हुआ है। इसका पता तब चला जब अमेरिका में वहां की संघीय व्यापार एजेंसी ने फेसबुक के खिलाफ जांच शुरू की। यूरोपीय देशों में भी जांच शुरू हुई। ऐसे आरोप हैं कि केंब्रिज एनालिटिक नाम की कंपनी ने फेसबुक के पांच करोड़ अमेरिकी उपयोगकर्ताओं की गोपनीय सूचनाएं चोरी कर उनका इस्तेमाल ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव जिताने में किया। इसी तरह ‘ब्रेक्जिट’ के वक्त ब्रिटेन ने भी इसका इस्तेमाल किया। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह फेसबुक उपयोगकर्ताओं के साथ छल नहीं है? अगर कपटपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल कर चुनाव जीते जाते हैं तो इससे राजनीतिक व्यवस्था भी कठघरे में खड़ी होती है। डाटा चोरी करने वाली कंपनी केंब्रिज एनालिटिक कई देशों के लिए इस तरह की चुनाव संबंधी सेवाएं देने का काम करती है। कंपनी का भारत सहित अमेरिका, ब्रिटेन, केन्या, ब्राजील जैसे देशों में कारोबार है। डाटा चोरी का खुलासा होने के बाद कंपनी ने अपने सीईओ को हटा दिया है। फेसबुक के सीईओ ने भी इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए मामले की जांच कराने का आदेश दिया है। इस घटना से फेसबुक की साख को गहरा धक्का लगा है। दुनिया में भारत दूसरा देश है जहां बीस करोड़ लोग फेसबुक पर हैं। फेसबुक कंपनी कठघरे में इसलिए है कि वह अपने ग्राहकों की निजता की सुरक्षा नहीं कर पाई। डाटा-चोरी ने भारत की राजनीति में भी भूचाल-सा पैदा कर दिया है। इस हकीकत पर से पर्दा उठा है कि कैसे विदेशी कंपनियों के जरिए सोशल मीडिया के डाटा का इस्तेमाल चुनावी हवा बनाने-बिगाडऩे के लिए किया जाता रहा है। कैसे जनता को अंधेरे में रखा जाता है। चुनाव में शोध, सर्वे, रायशुमारी, विज्ञापन, प्रचार जैसे कामों के लिए राजनीतिक दल इस तरह की एजेंसियों को ठेके देते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। केंद्र सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस दोनों इसके लपेटे में आ गए हैं। सरकार का आरोप है कि कांग्रेस के केंब्रिज एनालिटिक से संबंध हैं और अगले आम चुनाव के लिए वह इसकी सेवाएं लेने की तैयारी में है। दूसरी ओर, सरकार के इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कांग्रेस ने दावा किया है कि सन 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (एकी) ने इस कंपनी की सेवाएं ली थीं। आरोपों-प्रत्यारोपों के बरक्स लोगों के मन में जो सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है वह है विश्वसनीयता का। फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म कितना बड़ा खतरा हो सकते हैं निजता के लिए, यह अब सब समझ गए हैं। साथ ही, राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए हमारी निजी और गोपनीय सूचनाओं का कैसे इस्तेमाल कर रही हैं यह भी अब किसी से छिपा नहीं है। हालांकि सरकार ने फेसबुक के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है। सवाल है कि जो सरकार हजारों करोड़ रुपए डकार भाग जाने वालों को वापस ला पाने में लाचार साबित हो रही है, वह डाटा चोरी करने वाले वैश्विक चोरों से कैसे निपटेगी? यह सूचनाओं का युग है, जिसमें डाटा से ज्यादा कीमती कुछ नहीं है। ऐसे में कैसे इसकी सुरक्षा हो और लोगों में भरोसा बना रहे, यह गंभीर चुनौती है। वैश्विक स्तर पर फेसबुक के डेटा में सेंध लगने के बाद भारतीय चुनाव आयोग ने फेसबुक के साथ अपने संबंधों की समीक्षा के संकेत दिए हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि युवा वोटरों को प्रोत्साहित करने के लिए फेसबुक के साथ अपनी पार्टनरशिप पर आयोग जल्द ही विचार करेगा। उल्लेखनीय है कि पिछले साल कम से कम तीन मौकों पर चुनाव आयोग ने फेसबुक के साथ पार्टनरशिप की थी। आयोग की कोशिश नौजवानों को वोटर के रूप में रजिस्टर कराने के लिए प्रोत्साहित करना था। अब दुनिया में डाटा वार आने वाले समय में दुनिया में डाटा वार का है। जिसके पास डाटा होगा वही सिकंदर होगा। इसको देखते हुए विभिन्न राष्ट्र और राजनीतिक पार्टियां डाटा संग्रह के लिए अनैतिक कदम उठाने से चूक नहीं रही है। हालांकि भारत की चेतावनी और फेसबुक सीईओ जुकरबर्ग की माफी के बाद अब हर दिन नई बातें सामने आ रही है। कैंब्रिज एनालिटिक के पूर्व कर्मचारी और अब व्हिसल ब्लोअर क्रिस्टोफर वायली ने एक बार फिर सोशल मीडिया की झूठी खबर की शक्ति को उजागर किया है। गिरते मार्केट शेयर के बीच मामले को संभालने के लिए मार्क जुकरबर्ग के खुलकर सामने आने और गलती मान लेने के बाद ये दो सवाल उठते हैं। पहला यह कि क्या जुकरबर्ग पिछले 3 साल से जानते थे कि फेसबुक यूजर्स का पर्सनल डाटा गलत हाथों में पड़ चुका है? दूसरा यह कि फेसबुक सीईओ ने सिर्फ 4 दिनों में क्यों मान लिया कि गलती फेसबुक ने की है? इन सवालों के जवाब ढूंढऩे की रिसर्च में दो क्लू मिले हैं जो बताते हैं कि जुकरबर्ग को लग रहा था कि ये मामला दबेगा नहीं। संभवत: इसीलिए उन्होंने 4 जनवरी 2018 को साल की अपनी पहली रिजॉल्यूशन पोस्ट में पहली बार आत्म-सुधार और फेसबुक की गलतियां दुरुस्त करने पर जोर दिया। इसके ठीक ढाई महीने बाद 17 मार्च को सामने आए इस डाटा लीक खुलासे का नतीजा है कि फेसबुक ने अब अपनी पूरी व्यवस्था को चाक-चौबंद करने का फैसला किया है। रिपोट्र्स बताती हैं कि उन्हें पता था कि क्या गड़बड़ हुई है और कैसे हुई? फेसबुक ने 2015 में ही अपनी प्राइवेसी पॉलिसी में बदलाव करके थर्ड पार्टी डेवलपर को बैन कर दिया था, लेकिन तब तक मामला हाथ से निकल चुका था। -सत्यनारायण सोमानी
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