02-Apr-2018 06:39 AM
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नया शिक्षा सत्र नजदीक आते ही मप्र सहित देशभर में शिक्षा का कारोबार उफान पर है। मप्र की बात करें तो यहां राजधानी भोपाल से लेकर छोटे शहरों तक एडमीशन से लेकर कॉपी, किताब और ड्रेस का गोरखधंधा शुरू हो गया है। बाजार में किताबों के साथ महंगे दामों में कॉपियां बेची जा रही हैं। किताबों के साथ जबरन लगाई जा रहीं कॉपियों के रेट डेढ़ से दोगुने हैं। लेकिन शासन-प्रशासन मौन है और अभिभावक लुटे जा रहे हैं।
प्रदेश में इस समय शिक्षा का कारोबार किस हद तक परवान चढ़ रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक तरफ जहां एनसीआरटी की किताबें कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक के लिए 400 से लेकर 800 सौ तक मिल रही हैं वहीं निजी पब्लिशर्स की किताबे 1600 से लेकर 5000 रुपए तक में मिल रही हैं। यही नहीं अभिभावकों को तीन सौ से लेकर साढ़े चार सौ रुपए तक की कॉपियां बेची जा रही हैं।
निजी शिक्षण संस्थानों में किताब-ड्रेस और स्टेशनरी का खुला कारोबार चल रहा है, जिस पर प्रशासन और संबंधित विभाग तमाशबीन बने हुए हैं। निजी शिक्षण संस्थानों को लूट की खुली छूट मिल गई है। अभिभावकों की माने तो वे कई बार शिक्षा विभाग से शिकायत कर चुके हैं लेकिन बार-बार शिकायत करने से उन्हें भी इस बात का डर सताने लगा है कि निजी स्कूलों की मनमानी के आगे हमारे बच्चों के भविष्य से कोई खिलवाड़ न हो।
पुस्तकों के इस कारोबार में प्रकाशक, पुस्तक विक्रेता और स्कूल तीनों की मिलीभगत होती है। इसके लिए स्कूल को कमीशन मिलता है। यह कमीशन 10 प्रतिशत से लेकर 30 प्रतिशत तक होता है। प्रकाशक अपनी पुस्तकों को पुस्तक विक्रेता के जरिए स्कूलों में बेचता है। स्कूल उन प्रकाशकों की पुस्तके अपने बच्चों के लिए प्रिस्क्राइब करते हैं। यह समस्या कक्षा एक से आठवीं तक ज्यादा है, जिसमें बोर्ड या काउंसिल की ओर से आधिकारिक तौर पर पुस्तकों के नाम नहीं होते है। ऐसे में स्कूल अपने स्तर पर प्रकाशकों की पुस्तकों को रखता है। यह खेल पिछले कई सालों से चला आ रहा है। किस कक्षा में कितनी किताबें रहेंगी, कितनी कॉपियां रहेंगी, यह बुक सेलर्स और स्कूल संचालक मिलकर सेटिंग कर तय करते हैं। स्कूल संचालक को बुक सेलर्स द्वारा कमीशन दिया जाता है। इसी आधार पर स्कूल संचालक बुक सेलर्स का चयन करते हैं।
ज्ञातव्य है कि सीबीएसई के डिपुटी सेक्रेटरी (एफिलिएशन) के.श्रीनिवासन ने गत वर्ष 19 अप्रैल को सारे स्कूलों को सर्कुलर जारी कर कहा था कि इस बारे में शिकायत मिल रही है कि स्कूल पुस्तकें, नोट बुक, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म, स्कूल बैग आदि बिक्री करने की कमर्शियल एक्टिविटी में शामिल है। यही नहीं इस संबंध में बीते दिनों मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाया है। इसके मुताबिक प्राइमरी कक्षा में तीन किताबें होना अनिवार्य किया गया है जबकि, शहर में एलकेजी से पहली कक्षा तक के लिए छह से सात किताबें रखी जा रही हैं। शहर में एलकेजी, यूकेजी की किताबों की कीमत 750-1000 तक है। जबकि, इनके साथ लगाई जाने वाली कॉपी की कीमत तीन सौ या इससे अधिक है। एक कॉपी की कीमत 60 से लेकर 80 रुपए तक लगाई जा रही है। 60 रुपए वाली कॉपी बिना सेट के लेने पर बाजार में 35-40 रुपए की बताई जा रही है। इस तरह दोगुने दामों में कॉपी और किताबें बेचकर अभिभावकों का ठगा जा रहा है। फिर भी शासन-प्रशासन चुप है।
न किताबे न शिक्षक कैसे होगी पढ़ाई
सीबीएसई स्कूलों की तर्ज पर इस बार स्कूल शिक्षा विभाग ने 1 अप्रैल से नए शिक्षण सत्र के शुरू करने की घोषणा कर दी है। लेकिन किताबे उपलब्ध ही नहीं हैं। यही नहीं 26 अप्रैल तक बोर्ड की कॉपियां जांची जानी हैं जिसके कारण शिक्षक भी स्कूलों में पढ़ाने के लिए उपस्थित नहीं रहेंगे। ऐसे में स्कूलों में पढ़ाई कैसे होगी? दरअसल स्कूल शिक्षा विभाग के निर्देश कुछ और होते हैं और उसका शैक्षणिक कैलेंडर कुछ और होता है। जानकारों का कहना है कि अफसर बिना हकीकत जाने हुए आदेश निर्देश जारी करते रहते हैं जो कारगर सिद्ध नहीं होते। दरअसल विभाग प्रदेश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के नाम पर हर साल नए-नए प्रयोग करता रहता है। वास्तविकता यह है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले छात्रों को बेसिक ज्ञान भी नहीं रहता है। असल में शिक्षा विभाग की नीतियों ने सरकारी स्कूलों को गरीबखाना बनाकर रख दिया है।
-श्याम सिंह सिकरवार