16-Mar-2018 10:07 AM
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देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो साल पहले स्मार्ट सिटी का सपना दिखाया था। इसके लिए 100 शहरों का चयन किया गया है, लेकिन स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट जमीनÓ में ही अटका हुआ है। मप्र में तो भोपाल-इंदौर समेत प्रस्तावित 7 स्मार्ट सिटी का काम रामभरोसे चल रहा है। किसी स्मार्ट सिटी का काम 2021 तक तो किसी का 2023 तक पूरा होना है, लेकिन फंड और जमीन के कारण काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। राजधानी में भोपाल स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड को नॉर्थ और साउथ टीटी नगर की 342 एकड़ सरकारी भूमि आवंटित की गई है। लेकिन अन्य शहरों में अभी जमीन या तो चिन्हित की गई है या की जा रही है। इससे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है।
स्मार्ट सिटी के लिए चयनित प्रदेश के 7 जिलों ने अपने यहां पर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए जमीनों का आवंटन मांगा था। साथ ही इस जमीन पर क्या-क्या बनाने की योजना है इसकी भी पूरी फाइल तैयार कर उसे नगरीय प्रशासन के पास भेजा है। लेकिन अभी तक स्मार्ट सिटी को जमीन आवंटित नहीं हो सकी है, जिसके कारण स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट समय से पिछड़ सकता है। यह मामला इस बार बजट सत्र में भी उठ चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने सवाल किया था कि प्रदेश के जिन शहरों में स्मार्ट सिटी बनाई जानी है, वहां इसके लिए कितनी शासकीय और निजी भूमि आवंटित की गई है। इसके जवाब में नगरीय विकास मंत्री माया सिंह ने बताया कि राजधानी में भोपाल स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड को नॉर्थ और साउथ टीटी नगर की 342 एकड़ सरकारी भूमि आवंटित की गई है।
वहीं इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, सतना में जमीन का मामला अधर में है। इंदौर में स्मार्ट सिटी के लिए एमओजी लाइन के क्षेत्र आधारित विकास के आधार पर 24 हेक्टेयर जमीन का आंकलन किया गया है। भूमि स्मार्ट सिटी कंपनी को आवंटित नहीं हुई। 2021 तक काम पूरा होना है। वहीं जबलपुर में 334 एकड़ सरकारी जमीन का आंकलन किया गया है। कंपनी को भूमि आवंटित नहीं हुई है। 2021 तक काम पूरा होना है। ग्वालियर में 23 हेक्टेयर जमीन चिन्हित हुई है जो आवंटित नहीं की गई। 2022 तक काम पूरा होना है। ग्वालियर में स्मार्ट सिटी का कार्य 2022 तक पूर्ण होना है लेकिन अभी तक ग्वालियर स्मार्ट सिटी द्वारा नगरीय प्रशासन को भेजे गए 23 हेक्टेयर जमीन के प्रस्ताव ठण्डे बस्ते में पड़े हैं, जिसके कारण अभी तक ग्वालियर में स्मार्ट सिटी के कार्य प्रांरभ नहीं हो पा रहे हैं। स्मार्ट सिटी ने 23 हेक्टेयर जमीन का जो प्रस्ताव बनाकर भेजा था उसमें ग्वालियर पॉटरीज, पार्क होटल, थाटीपुर स्थित दर्पण कॉलोनी में बने पीडब्ल्यूडी के ओल्ड बैरिक क्वार्टस, बसंत टॉकीज आदि जमीनें मांगी थीं। इनमें स्मार्ट सिटी के तहत होटल, शॉपिंग काम्पलेक्स, आवासीय मकान, ट्रेड सेंटर आदि बनाए जाने हैं।
उज्जैन में 63 हेक्टेयर सरकारी जमीन चिन्हित कर ली है। आवंटन नहीं हुआ। 2022 तक काम पूरा करने का लक्ष्य है। वहीं सागर में स्मार्ट सिटी कहां बनेगी, जमीन ही चिन्हित नहीं हुई। 2023 तक काम पूरा होना है। सतना में 325 एकड़ सरकारी और 336 निजी भूमि का आंकलन किया है। प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट की नियुक्ति होना बाकी है। 2023 तक काम पूरा होना है। आलम यह है कि सबसे आखिर में स्मार्ट सिटी की लिस्ट में शामिल हुए सागर-सतना को न ही अब तक बजट में हिस्सेदारी मिली है और न ही यहां स्मार्ट सिटी कंपनी का गठन हो पाया है।
प्रदेश के सातों शहरों में स्मार्ट सिटी के लिए काम अभी तक रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। भोपाल में पॉलिटेक्निक चौराहा से भारत माता चौराहे तक बनने वाली स्मार्ट रोड का काम अड़चनों की वजह से बार-बार अटकता है। इंदौर में स्मार्ट सिटी के लिए अभी अवैध निर्माण तोड़े जाने हैं और साइट क्लियर करने की प्रक्रिया चल रही है। कोई शहर ऐसा नहीं है, जो बजट में मिली राशि को पूरा खर्च कर पाया हो। उधर स्मार्ट सिटी के लिए सरकार राज्य सरकार स्मार्ट सिटी के लिए एशियन विकास बैंक से कर्ज लेने की तैयारी कर रही है। स्मार्ट सिटी मिशन नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग ने 2500 करोड़ के कर्ज का एक प्रस्ताव बनाया है।
राज्य सरकार ने नहीं दी अपने हिस्से की अंशपूंजी
भोपाल-इंदौर समेत प्रदेश में प्रस्तावित 7 स्मार्ट सिटी की राह में अब राज्य की खराब माली हालत रोड़ा बन रही है। स्मार्ट सिटी निर्माण के लिए राज्य सरकार के पास अपने हिस्से की अंशपूंजी देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। केंद्र सरकार ने फंडिंग के लिए ऐसी शर्त जोड़ दी है, जो राज्य सरकार के लिए गले की फांस बन गई है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कह दिया है कि जब तक राज्य सरकार स्मार्ट सिटी निर्माण के लिए अपने हिस्से की राशि नहीं देगा, तब तक केंद्र भी अपने हिस्से का कैपिटल शेयर जारी नहीं करेगा। गौरतलब है कि केंद्र और राज्य दोनों की बराबर अंशपूंजी वाली इस योजना के तहत हर स्मार्ट सिटी के निर्माण पर कुल एक हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं, जिसमें से 500 करोड़ रुपए केंद्र सरकार की और 500 करोड़ राज्य सरकार की हिस्सेदारी है। दोनों को यह राशि 5 साल तक 100-100 करोड़ रुपए की किस्त के रूप में देना हैं।
- विशाल गर्ग