02-Apr-2018 06:36 AM
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बुंदेलखंड में लगातार हो रहे पलायन के बीच आवारा मवेशियों की तादात में बड़ी बढ़ोत्तरी हुई है। जिनके झुंड लेकर कुछ घुमंतू चरवाहे एक गांव से दूसरे गांव घूमते हैं। जहां ये चरवाहे जानवरों के लिए चारागाह पाते हैं वहीं अपना ठिकाना बना लेते हैं। उसके बाद आगे बढ़ जाते हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के दौरान आवार जानवरों के झुंड रास्ते में आने वाली किसानों की फसलों को बड़ा नुकसाने पहुंचाते हैं।
किसानों के मुताबिक यह प्रथा बुंदेलखंड में काफी पुरानी है। जब कोई जानवर काफी समय तक दूध नहीं देता या बूढ़ा होने लगता है, तो उसे अन्ना प्रथा के तहत कुछ विशेष घुमंतू जाति के चरवाहे लोगों को दे दिया जाता था। ये लोग इन जानवरों को दूसरे स्थानों पर चराने के लिए ले जाते हैं। उनसे जो बच्चे तैयार होते हैं या थोड़ा बहुत दूध पैदा होता है उससे ये चरवाहे अपना और अपने परिवारों की रोटी का जुगाड़ करते आए हैं। अब यही प्रथा इनके लिए समस्या बन रही है।
एक किसान कल्लू का कहना है कि सूखे और चारे की कमी के चलते अन्ना प्रथा के तहत दिए जाने वाले जानवरों की संख्या तेजी से बढ़ी है। किसानों ने अपने जानवर चरवाहों को दे दिए है। बड़ी संख्या में पलायन कर गए लोग भी अपने मवेशी इनके हवाले कर गए हैं। अब इन चरवाहों के पास हजारों की संख्या में मवेशी हैं। जिन्हें लेकर ये चरवाहे चारे और पानी की तलाश में घूमते रहते हैं। ज्यादा जानवर होने पर ये चरवाहे अपने जानवरों को नियंत्रित नहीं कर पाते और रास्ते चलते ये जानवर किसानों की फसलें उजाड़ देते हैं।
बुंदेलखंड को मिला 7700 करोड़ वाला विशेष पैकेज भी अन्ना प्रथा से निजात नहीं दिला पाया। पैकेज में एक अरब रुपये पशुओं की बदहाली दूर करने के लिए दिए गए थे। सब खर्च हो गए पर यहां के पशुओं की बदहाली दूर नहीं हुई। वर्ष 2009-10 में केंद्र सरकार के बुंदेलखंड विशेष पैकेज में अन्ना प्रथा के खात्मे और नस्ल सुधार आदि के लिए 100 करोड़ रुपये दिए गए थे। इसमें अन्ना प्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान भी शामिल था। इस अभियान के लिए पैकेज में एक करोड़ 92 लाख रुपये दिए गए थे। लेकिन बीती अवधि में अन्ना प्रथा और बढ़ गई। मौजूदा में सिर्फ चित्रकूटधाम मंडल में ही 2,58,447 अन्ना मवेशी हैं। यह आंकड़े खुद पशु पालन विभाग के हैं। पूरे मंडल में कुल 19,48,809 मवेशी हैं। इनमें 12,90,381 गायें दर्ज हैं।
बुंदेलखंड पैकेज में बकरी पालन के लिए 11 करोड़ 25 लाख रुपये दिए गए थे। लाभार्थियों को 10 बकरी और एक बकरा दिया गया। इनमें इक्का-दुक्का को छोडक़र अधिकांश बकरियां मर गईं। चारा ब्लाक बनाने के लिए यूनिट की स्थापना को 3 करोड़ 58 लाख रुपये दिए गए थे। कहीं भी चारे की यूनिटें कारगर नहीं हुईं। मांस प्रसंस्करण इकाई स्थापना को 4 करोड़ रुपये दिए थे। पैकेज में लगभग वह सभी मदें शामिल थीं जिनसे बुंदेलखंड में पशु पालन को बढ़ावा मिल सके।
आवारा जानवरों के खेत में घुसकर फसल चर जाने के कारण हर रोज बुंदेलखंड के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक घटनाएं सामने आ रही हैं। झांसी जनपद के मऊरानीपुर थाना क्षेत्र के कुआगांव की पुक्खन ने पुलिस को शिकायती पत्र देकर बताया कि आवारा जानवरों को खेत में घुसने से रोकने पर दूसरे पक्ष के लोगों ने उसके साथ मारपीट की। पुक्खन ने बताया कि आवारा जानवरों के कारण खेतों में खड़ी फसल खतरे में हैं। बुंदेलखंड के सभी जनपदों में हर रोज इस तरह की शिकायतें पुलिस और प्रशासन के सामने आ रही हैं जो इस समय कानून-व्यवस्था के लिए भी चुनौती बनी हुई हैं। सरकार ने एक साल में किसानों के लिए कई दावे किए और योजनाएं बनाईं लेकिन जमीनी हकीकत नहीं बदली। किसानों की आय दोगुनी करने की योजनाएं सरकार के दावों तक सीमित हैं। किसानों का कहना है कि उन्हें फसल का लागत मूल्य तक नहीं मिल रहा। रिकॉर्ड उत्पादन होने पर किसानों को आलू सडक़ों पर फेंकना पड़ा। गन्ना किसानों और मिल मालिकों में झगड़े हो रहे हैं। छुट्टा पशुओं से प्रदेशभर के किसान परेशान हैं और बुंदेलखंड में आत्महत्याओं का सिलसिला थम नहीं रहा।
अन्ना प्रथा की आड़ में आवारा
पशुओं की बाढ़
बुंदेलखंड में तो अन्ना प्रथा की आड़ में पशुओं को खुले में छोड़ देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसके तहत चैत में गेहूं की कटाई के बाद किसान चारे का खर्च बचाने के लिए पशुओं को खाली खेतों में चरने के लिए छोड़ देते हैं। आवारा पशुओं के बढऩे के कई कारण हैं, इनमें से एक है दुधारू पशुओं में बांझपन का बढऩा। बांझपन के कारण गाय और भैंस अनुपयोगी हो जाती हैं। आम किसान के लिए बांझ गाय और भैंस रख पाना मुमकिन नहीं है। बदले हालात में बांझ भैंस तो बिक जाती हैं, लेकिन गाय का कोई खरीदार नहीं मिलता। पहले किसान सिर्फ नीलगाय से परेशान रहते थे, लेकिन अब छुट्टा गाय, बैल, सांड़ और बछड़े फसलों और खेतों के लिए समस्या बन रहे हैं। समस्या इतनी बढ़ चुकी है कि गांवों के बीच इसे लेकर गुरिल्ला युद्ध सरीखे हालात हैं। उत्तर प्रदेश में नव गठित किसान समृद्धि आयोग के सदस्य प्रेम सिंह कहते हैं कि सरकार की नीतिगत खामी का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। वे कहते हैं कि बुंदेलखंड में हर ब्लॉक क्षेत्र में 10 से 15 हजार आवारा जानवर हैं जो किसानों की मुसीबत बन रहे हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चाहें तो वे इस समस्या के समाधान के लिए निर्णय ले सकते हैं। चौदहवें वित्त आयोग की धनराशि से ग्राम पंचायतें किसी भी तरह का काम करने को स्वतंत्र हैं और उनके पास इसके तहत पैसा भी उपलब्ध है। ग्राम पंचायत स्तर पर इस धनराशि से गौशालाओं का निर्माण कराया जाना चाहिए।
-सिद्धार्थ पाण्डे