क्या मिला शराबबंदी से?
02-Apr-2018 06:34 AM 1234828
बिहार में शराब प्रतिबंधित है ऐसे में आए दिन छापे के दौरान भारी मात्रा में शराब का पकड़ा जाना इस बात की तरफ इशारा करता है कि अभी भी कहीं न कहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की योजना में भारी चूक है जिसका उन्हें अवलोकन करना चाहिए। कोई भी काम हो। वो सौ फीसदी अच्छा ही हो, या सौ फीसदी बुरा, ऐसा नहीं हो सकता। हर काम में लाभ है, तो हानि भी है। ऐसा गीता में भी कहा गया है। वहां जो उदाहरण लिया गया है वो आग के साथ धुंए के होने का है। बिहार के लिए अभी समस्या अलग है। उसके राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा हाल तक शराब की बिक्री के कारण आता था। अप्रैल 2016 से ये अचानक बंद हो गया। चाहे कोई माने या ना माने, अपने सामाजिक सरोकारों कि वजह से ही नहीं, अपने आर्थिक प्रभाव कि वजह से भी बिहार में हर दूसरे-चौथे दिन शराबबंदी और उसके असर पर चर्चा हो जाती है। अब ये मुद्दा सिर्फ मुख्यमंत्री के लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा, आबकारी और पुलिस महकमे भी इस बंदी का असर दबी जबान में ही सही, स्वीकारते हैं। जो आंकड़े पेश हुए हैं उनके मुताबिक 1 अप्रैल 2016 से 6 मार्च 2018 के बीच करीब साढ़े छह लाख छापे सिर्फ शराब पकडऩे के लिए डाले गए हैं। इनमें 2 मिलियन लीटर से ऊपर शराब जब्त की गई है और 1.21 लाख लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं। अगर औसत निकालें तो इन आंकड़ों का मतलब है कि एक दिन में 172 लोग शराबबंदी के लिए गिरफ्तार होते हैं। बिहार में हर दस मिनट में एक व्यक्ति शराब पीने-रखने के लिए जेल भेजा जा रहा है। इसकी शुरुआत देशी शराब पर छह महीने की पाबन्दी से हुई थी और 1 अप्रैल 2016 को कोई नहीं समझ पा रहा था कि बिहार में शराबबंदी कैसी होगी। पाबन्दी के फैसले पर जनता की प्रतिक्रिया से उत्साहित सरकार ने सभी किस्म की शराब को राज्य में बंद कर दिया। उस दौर में जद (यू) की सरकार में भागीदार रहे राजद के नेता जहां इस काम का श्रेय खुद भी ले रहे थे, बाद में सरकार से अलग होने पर इसके दुष्प्रभावों को उन्होंने ही नीतीश कुमार के सर मढना भी शुरू कर दिया है। भूतपूर्व मुख्यमंत्री दम्पति, और चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू यादव के सुपुत्र ने हाल में ही, मुजफ्फरपुर में हुए हादसे का ठीकरा भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सिर फोड़ा। ध्यान रहे इस हादसे में 9 बच्चों की मौत हुई थी। इससे पहले वो कथित तौर पर जहरीली शराब से हुई मौतों का जिम्मेदार शराबबंदी को मान रहे थे। कई छोटे नेता तो बिहार में उनकी सरकार आने पर शराबबंदी कानून पूरी तरह हटाने और सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा करने जैसी बातें भी कर चुके हैं। आखिर एक लाख बीस हजार गिरफ्तार लोगों की गिनती कोई कम नहीं होती। जितनी सजा इस मामले में है, उसके लिहाज से ये कानून शराब रखने या पीने को बिलकुल हत्या जैसे जघन्य अपराधों की बराबरी में ला खड़ा करता है। क्या इतनी लम्बी सजा इस अपराध के लिए माकूल है? ये भी सवाल उठता रहा है। बहरहाल अभी जब ये लिखा जा रहा है तो बिहार के सबसे बड़े शराब माफियाओं में से एक अरुण सिंह को छपरा में गिरफ्तार कर लिया गया है। उसकी निशानदेही पर छपरा, पटना और हाजीपुर में कई जगहों पर छापे मारे जा रहे हैं। जिस हिसाब से इस अपराध में हर दस मिनट में एक गिरफ्तारी हो रही है, उससे इतना तो तय हो ही जाता है कि शराबबंदी ने बिहार में एक नए किस्म के अपराध को जन्म दे दिया है। एक लाख से अधिक मुकदमें दर्ज शराबबंदी के करीब एक लाख मुकदमे हैं, जिनमें आने वाला खर्च पूरे परिवार को झेलना पड़ता होगा, इसलिए मुकदमों को हटाना भी एक बड़ा प्रलोभन है। नवम्बर 2016 में ही नीतीश कुमार सरकार ने एक ईमेल आईडी जारी करके लोगों से शराबबंदी के कानून और उसमें सुधारों पर राय मांगी थी। प्रमुखत: जो सुधार सोचे-सुझाए गए थे उनमें से तीन प्रमुख थे। पहला तो ये नियम था कि जिस जगह से शराब पकड़ी जायेगी उस संपत्ति को जब्त करने का नियम था। परिवार के बच्चों और अन्य सदस्यों की क्या गलती जो उन्हें बेघर किया जाए ये सवाल जनता ने पूछा था। शुरू में ये कानून जिस घर में शराब पायी गई, या जो शराब पीता-रखता पकड़ा गया, उसके घर के सभी वयस्क सदस्यों को दोषी मान लेता था। - विनोद बक्सरी
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^