अटकी घडिय़ालों की वंशवृद्धि
02-Apr-2018 06:30 AM 1234817
मप्र में अवैध खनन के कारण नदियां ही नहीं बल्कि उसमें रहने वाले जीव भी संकट में हैं। ऐसे ही संकट से इन दिनों सीधी स्थित सोन अभयारण्य के घडि़य़ाल गुजर रहे हैं। दरअसल सोन अभयारण्य में गत वर्ष से घडिय़ालों की वंशवृृद्धि रुकी हुई है। वैसे तो फरवरी से घडिय़ाल अंडे देने लगते हैं, लेकिन मार्च-अप्रैल का समय इनके लिए सबसे उपयुक्त होता है। लेकिन इस वर्ष अब तक एक भी मादा घडियाल ने अंडे नहीं दिए। गत वर्ष भी यही स्थिति थी। इसके पीछे बड़ी वजह अभयारण्य में नर घडिय़ाल की कमी बताई जा रही है। हालांकि, विभागीय अफसरों का दावा है कि अंडे देने का समय अभी चल रहा है। कुछ घडिय़ाल इसके लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में भटकते हुए भी देखे जा रहे हैं। नर घडिय़ाल न होने की बात को इस तर्क के साथ खारिज करते हैं कि घडिय़ालों के कुछ बच्चे थे, जो अब वयस्क हो गए हैं। इन्हीं की मदद से मादा घडिय़ाल अंडे देने की फिराक में हैं। सोन नदी घडिय़ाल अभयारण्य के लिए आरक्षित है। बताया गया कि यह विश्व की विलुप्त प्राय घडिय़ालों के संरक्षण व संवर्धन के लिए चर्चित है। शासन से हर वर्ष अरबों रुपए का बजट भी उपलब्ध कराया जाता रहा है, बावजूद इसके यहां अवैध रेत निकासी व स्थानीय अफसरों की अनदेखी के चलते दो साल से घडिय़ालों की वंशवृद्धि अटकी हुई है। पूर्व से मौजूद घडिय़ाल भी यहां असुरक्षित महसूस करते हैं। यही वजह है कि वे अभयारण्य से निकलकर रिहाइशी इलाकों तक पहुंच जाते हैं। विभागीय अधिकारियों ने राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य मुरैना से दो नर घडिय़ाल उपलब्ध कराने की मांग की थी। इसके लिए प्रस्ताव भी भेजा गया, लेकिन अब तक नर घडिय़ाल नहीं मिले। सूत्रों की मानें तो नर घडिय़ाल भेजने से पहले अनुकूलित वातावरण देखा जाता है। लेकिन इसके लिए यहां अध्ययन ही नहीं कराया गया। जिसके चलते प्रस्ताव लंबित है। गत कुछ वर्ष से घडिय़ालों की लगातार हो रही मौत से अभयारण्य में एक भी नर घडिय़ाल नहीं बचा है। पांच वर्ष में करीब आधा दर्जन नर घडिय़ालों की मौत हो चुकी है। लिहाजा गत वर्ष से अभयारण्य क्षेत्र नर घडिय़ाल विहीन हो गया है। नर घडिय़ाल न होने से यहां वंशवृद्धि संभव नहीं हो पा रही। सोन घडिय़ाल अभयारण्य सीधी के रेंजर गुठई प्रसाद साकेत कहते हैं कि बात सही है, अभयारण्य क्षेत्र में गत वर्ष ही नर घडिय़ाल नहीं थे। चंबल राष्ट्रीय उद्यान से दो नर घडिय़ाल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव विभाग ने भेजा था, लेकिन तकनीकी खामियों के चलते अब भी लंबित है। अभयारण्य क्षेत्र में कुछ नर बच्चे थे, जो वयस्क हो चुके हैं। लिहाजा, इस वर्ष वंशवृद्धि की संभावना है। मादा घडिय़ाल अंडे देने के लिए सुरक्षित स्थान भी तलाश करते देखे जा रहे हैं। उम्मीद है कि आगामी समय में वह अंडे देंगी। लेकिन नदी की स्थिति देखकर ऐसा लग रहा है कि घडिय़ालों के लिए आगे अभी और संकट आने वाला है। गऊघाट पुल के पास स्थित पुल पर खड़े होकर सोन नदी की मरती हुई देह को निहारें तो पता चलता है कि यह नदी अब खदानों में तब्दील हो गई है। हदें निगाह तक खड़े हुए सैकड़ों ट्रैक्टर व मिनी ट्रक नदी की काया पर चलते हुए हजारों मजदूर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को विचलित कर देने के लिए काफी है। नदी में खदान चलाने वालों के भी अपने तर्क है। उनका कहना है कि वे नदी को और गहरा कर रहे है। उल्लेखनीय है कि सोन नदी में घडिय़ालों का बसेरा है जिसके चलते सोन नदी का क्षेत रेत निकासी के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। बावजूद इसके रेत माफिया पहले चोरी छिपे सोन नदी के घाटों से रेत निकासी करते थे लेकिन प्रशासनिक शिथिलता एवं अभयारण्य के अधिकारियों का साथ मिलने की वजह से अब रेत माफिया खुलेआम सोन नदी से रेत चोरी कर रहे है। -विकास दुबे
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