महंत और जोगी आमने-सामने
03-Jul-2013 06:59 AM 1234785

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। आलाकमान के तमाम प्रयासों के बावजूद छत्तीसगढ़ में दिग्गज नेता आपस में ही भिड़े हुए हैं और इसी कारण नक्सली हमले के बाद जो फायदा मिलना था वह फिलहाल कांग्रेस को मिल नहीं पा रहा। चरणदास महंत ने केशकाल नगर पंचायत चुनाव में जोगी समर्थक प्रत्याशी का नाम बदल दिया। दरअसल पहले शाहिदा मेमन को प्रत्याशी बनाया गया था लेकिन ऐन वक्त पर उनका नाम काटकर ममता चंद्राकर का नाम जारी कर दिया। इसके बाद जोगी समर्थक अमीन मेमन ने अपनी भाभी शाहिदा मेमन को चुनावी मैदान में उतार दिया। महंत ने तत्काल कार्रवाई करते हुए अजीत मेमन को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है। इससे राजनीति गरमा गई है और दो नगर पंचायत तथा तीन जिला पंचायत सदस्य समेत जिन 570 स्थानीय निकायों के पदों के लिए उप चुनाव होने वाले हैं उनमें अब कांग्रेस की जीत संदिग्ध नजर आ रही है। महंत द्वारा अजीत मेमन को निकाले जाने से मामला दिलचस्प हो गया। अजीत जोगी खुलकर अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े दिखाई दे रही है उनके सुपुत्र अमित जोगी ने कांग्रेस प्रत्याशी ममता चंद्राकर को मानहानि का नोटिस भेज दिया है। क्योंकि चंद्राकर ने आरोप लगाया था कि अमित जोगी केशकाल में रहकर विरोधी प्रत्याशी का प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस ने बागी प्रत्याशी का प्रचार करने वाले पांच जोगी समर्थकों को भी पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। यह गुटबाजी तो परिवर्तन यात्रा के समय से ही चल रही है, लेकिन सुकमा में हुए नरसंहार के बाद यह उम्मीद जताई जा रही थी कि कांग्रेसी खेमा पुरानी कड़वी यादों को भुलाकर एकजुट हो जाएगा पर वैसा हुआ नहीं। आनन-फानन में दिग्विजय सिंह के इशारे पर चरणदास महंत को छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। जिससे अजीत जोगी बौखला गए हैं और उनके समर्थक कथित रूप से कांग्रेस पार्टी के खिलाफ काम कर रहे हैं। जोगी ने ऐसी किसी भी घटना से इनकार किया है जिसमें उनकी पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता ने पार्टी के खिलाफ काम किया हो। यही कारण है कि अमित जोगी ने मानहानि का नाटक किया, लेकिन इसमें फायदा अंतत: भारतीय जनता पार्टी को मिलना तय है क्योंकि भाजपा के अधिकांश प्रत्याशी इसी अंदेशे में हैं कि आगामी चुनाव में राज्य की कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा हो सकती है और जोगी इस मुद्दे को भुनाने में सफल भी हो सकते हैं पर अब यह सफलता और असफलता राजनीतिक दांव पेंच में उलझकर रह गई है। सुकमा के जंगलों में दरभा घाटी में जान गंवाने वाले शहीदों के परिजनों को पांच लाख रुपए के चेक दिए गए तो मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इसे शहीदों का अपमान बताया। उधर जोगी ने पार्टी से मशविरा किए बगैर दो टूक शब्दों में कह दिया कि शहीदों के परिजनों को चपरासी की नौकरी का प्रस्ताव देने वाली भाजपा सरकार अब कांग्रेस को सम्मान का पाठ पढ़ा रही है। दरअसल यह बात उस समय हुई थी जब केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री वी नारायण सामी प्रदेश में हुए नर संहार के पीडि़तों और मृतकों को सहायता राशि वितरित कर रहे थे।

नए दावेदार बने अमितेश
विद्याचरण शुक्ल की असामयिक मृत्यु के बाद अब उनके भतीजे अमितेश शुक्ल अपने चाचा की राजनीतिक विरासत के दावेदार के रूप में सामने आएंगे।  शुक्ल की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए अभी तक किसी का नाम सामने नहीं आया है। हालांकि वीसी समर्थक उनकी बड़ी बेटी प्रतिभा को आगे लाने की बात कह रहे हैं। इस बीच उनके भतीजे अमितेश वीसी समर्थकों को अपने साथ करने की कोशिशों में जुटे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्यामाचरण शुक्ल के बाद उनके समर्थक अमितेश से जुड़े। वे उनका गुट संभाल रहे हैं। अब वे वीसी समर्थकों को भी साथ लेना चाह रहे हैं। चर्चा है कि अमितेश वीसी समर्थकों से संपर्क भी कर रहे हैं, लेकिन वीसी समर्थकों ने उनके कोई आश्वासन नहीं दिया। वे वीसी की पत्नी सरला शुक्ल के निर्देश पर चलेंगे। अमितेश के साथ वीसी समर्थकों के जुडऩे को लेकर संशय दिख रहा है। समर्थकों की मानें तो चाचा-भतीजा के बीच दूरी अधिक थी। वे एक-दूसरे के साथ कभी राजनीतिक  रुप से नजर नहीं आते थे। वीसी समर्थक प्रतिभा को राजनीति में लाने की कोशिश में हैं। प्रतिभा ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा। वे वाइल्ड लाइफ की चर्चित फोटोग्राफर हैं। उन्हें प्रदेश कांग्रेस में प्रतिनिधि बनाया गया है। अब समर्थक उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए दबाव बना रहे हैं।
जोगी हैं दमदार : कांग्रेस की दिक्कत यह है कि वह अजीत जोगी को अलग करके छत्तीसगढ़ में राजनीति के बारे में सोच भी नहीं सकती। जोगी की स्थानीय राजनीति में गहरी पकड़ है। उनके कार्यकर्ता दूर-दूर इलाकों में फैले हुए हैं। चरणदास महंत में वह पकड़ नहीं है। मोतीलाल वोरा तो पिछले चुनाव के समय अपने पुत्र को ही नहीं जिता पाए थे कभी कार्यकारी अध्यक्ष रहे सत्यनारायण शर्मा एवं धनेंद्र साहू जैसे नेता भी चुनाव हारकर बैठे हैं। ऐसे हालात में जोगी को कोई न कोई भूमिका देनी ही होगी अन्यथा वे सत्ता से दूर रहकर कांग्रेस को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकते हैं। महंत अभी इस स्थिति का आंकलन नहीं कर पाए हैं। उनकी चिंता यह भी है कि वह पार्टी को कैसे एकजुट रखे। पिछले वर्ष जब महंत ने केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री रहते हुए कहा था कि छत्तीसगढ़ में सेकेंड लाइन लीडरशिप को मौका दिया जाना चाहिए तो जोगी बौखला गए थे और उन्होंने कहा था कि वे वैसे भी सेकेंड लाइन में ही हैं क्योंकि फस्र्ट लाइन में तो विद्याचरण शुक्ल जैसे नेता हैं। जोगी के इस कथन से राज्य में गुटबाजी का पर्दाफाश हुआ था जो अभी भी चल रही है। जोगी का उस समय यह कहना कि मैं वरिष्ठ नहीं हूं, अभी भी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।

रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला

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