15-Jun-2013 07:02 AM
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छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और दिग्विजय सिंह की जुबानी जंग ने अंदरूनी राजनीति का पर्दाफाश कर डाला। छत्तीसगढ़ के गठन के समय विद्याचरण शुक्ल के फार्म हाउस पर दिग्विजय सिंह के साथ शुक्ल समर्थक कांग्रेसियों ने बदतमीजी की थी उस वक्त शुक्ल के मुकाबले अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनवाने वाले दिग्विजय सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन हाल ही में जब अजीत जोगी ने नक्सली हमले में मारे गए कांग्रेसी नेताओं की श्रृंद्धांजलि सभा को राजनीतिक युद्ध का मैदान बनाते हुए दिग्विजय सिंह पर शब्दों के तीर चलाए तो दिग्विजय सिंह को कहीं न कहीं आज से एक दशक पूर्व की गई उस गलती का अहसास जरूर हुआ होगा जिसके चलते उन्होंने जोगी को मुख्यमंत्री बनाया और उसके साथ ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का पतन शुरू हो गया।
जोगी आक्रामक राजनीतिज्ञ हैं और अपने विरोधियों को ध्वस्त करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि राज्य में जब भारतीय जनता पार्टी की पहली सरकार बनने जा रही थी उस वक्त जोगी गाडिय़ों में नोटों की गड्डियां लेकर घूम रहे थे सरकार गिराने के लिए। आज वे पार्टी में ही अपने विरोधियों को ठिकाने लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रतापगढ़, नजफगढ़ या किसी और गढ़ से आने वाले नेता छत्तीसगढ़ का भला नहीं कर सकते। जो लोग सीने में गोली खाने का दम रखते हैं। वे ही छत्तीसगढ़ का भला कर सकते हैं। सीने में गोली भले ही न खाई हो लेकिन जोगी के लिए सीमा से परे जाकर बेइज्जती और बदतमीजी बर्दाश्त की थी दिग्विजय सिंह ने आज वे ही जोगी दिग्विजय को तेवर दिखा रहे हैं। इसका कारण शायद यह है कि दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में ही डॉ. चरणदास महंत को छत्तीसगढ़ का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। उस सभा में जोगी भी मौजूद थे और अपनी उपेक्षा से खासे नाराज थे, लेकिन दिग्विजय ने अपेक्षाकृत ज्यादा कूटनीति से काम लिया और सिर्फ इतना ही कहा कि कौन क्या काम करेगा यह पार्टी तय करेगी यह आप लोग तय नहीं कर सकते कि नेतृत्व किसे करना है। दिग्विजय ने यह भी कहा कि नक्सली हमले में मारे गए पूर्व विधायक उदय मुदलियार तमिलनाडु से आए थे।
दिग्विजय सिंह छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहे थे और अजीत जोगी को अच्छी तरह मालूम है कि जब दिग्विजय दौरा करते हैं तो राजनीति के समुद्र में मंथन अपने आप ही हो जाता है। दोनों के रिश्तों में खटास अब कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है और इस खटास का कारण है चरणदास महंत। जिस तरह की लॉबिंग दिग्विजय सिंह करते हैं उसमें यह तो तय है कि यदि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में सत्ता में आती है तो महंत को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए दिग्विजय एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे, लेकिन अजीत जोगी भी मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उन्होंने परोक्ष रूप से आला कमान को संदेश दे दिया है कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो पार्टी में विद्रोह हो सकता है। लेकिन यह नौबत तो तभी आएगी जब चुनाव जीता जाएगा। जिस सहानुभूति की लहर पर कांग्रेस सवार होना चाहती है उसका असर नवंबर माह तक रहेगा इस बात में संदेह ही हैं। जनता की याददाश्त बहुत कमजोर रहती है। कोई भी घटना भूलने में उसे देर नहीं लगती। रहा सवाल नक्सली हमले का तो यह एक राष्ट्रीय समस्या है। इसका असर छत्तीसगढ़ में चुनाव के दौरान कितना पड़ेगा इसे समझना आसान नहीं है।
लेकिन जोगी की राजनीति समझ से परे है। जब-जब हालात सामान्य होते हैं, वे कोई न कोई ऐसा शिगूफा छोड़ ही देते हैं जिससे कांग्रेस में चल रही खींचतान सतह पर आ जाती है। परिवर्तन यात्रा के दौरान भी कई बार अजीत जोगी ने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जिससे यह जाहिर हुआ कि राज्य में कांग्रेस एकजुट नहीं है। बड़े नेताओं की उपस्थिति में उनके समर्थकों द्वारा नारे लगना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। माना जा रहा है कि महंत की नियुक्ति दिग्विजय सिंह और बघेल की नियुक्ति पार्टी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के प्रयासों से हुई है। छत्तीसगढ़ में विपक्ष के नेता रविंद्र चौबे भी अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके हैं। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद भी वे दिग्विजय से जुड़े रहे। पार्टी में तीनो अहम पदों पर इस समय अजीत जोगी विरोधियों का कब्जा हो गया है, जोगी गुट इसे अपने को किनारे करने की रणनीति के रूप में देख रहा है।
नक्सल हमले में मारे गए नेताओं कार्यकर्ताओं को श्रद्वांजलि देने के लिए दिग्विजय ने राज्य का चार दिवसीय दौरा किया। उन्होंने इस दौरे में श्रद्वांजलि के साथ ही जिस तरह से जोगी विरोधियों से चुन-चुन कर मुलाकात की उसकी प्रतिक्रिया जोगी के दिग्विजय के सार्वजनिक विरोध से हुई। जोगी की इस टिप्पणी का गूंज दिल्ली तक सुनाई पड़ी। कार्यवाहक अध्यक्ष महंत ने दिल्ली में इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। महंत ने मुलाकात के बाद जोगी के कथन पर यह कह कर पानी डालने की कोशिश की कि उनकी टिप्पणी दिग्विजय सिंह की बजाय रमन सिंह पर थी जिनका उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ से जुड़ाव है। जोगी फिलहाल खुलकर नहीं बोल रहे है पर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वह चुप नहीं बैठने वाले हैं। उन्होंने इस बारे में अपनी रणनीति पर काम भी शुरू कर दिया है। जोगी की राजनीति का मुख्य आधार सामाजिक समीकरणों का रहा है और इसी के सहारे अपनी रणनीति को आगे बढाने की उनकी योजना है। दरअसल राज्य में कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग रहा है। पिछले 10 वर्षो में यह वोट बैंक उससे दूर होता गया है।
राज्य में 2003 में पहले विधानसभा चुनाव में दलितों के लिए आरक्षित केवल एक सीट को छोड़कर शेष सभी पर कांग्रेस ने कब्जा किया था, वहीं 2008 में केवल एक आरक्षित सीट पर उसका उम्मीदवार जीत सका। दलितों का जहां इस दौरान उससे मोहभंग हुआ वहां आदिवासी बाहुल बस्तर की 12 में 10 सीटों पर उसे 2003 में और 2008 में 11 सीटों पर शिकस्त का सामना करना पडा़। आदिवासियों के लिए आरक्षित अधिकांश सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया।
द्यरायपुर से संजय शुक्ला के साथ टीपी सिंह
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