16-Mar-2018 10:02 AM
1234962
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, नागालैण्ड, मेघालय में आए चुनावी नतीजों ने देश के सियासी नक्शे को बदल दिया। तीनों राज्यों में भाजपा और उसके समर्थन में बनी सरकार किसी सियासी चमत्कार से कम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने भारतीय राजनीति में वह कर दिखाया है जो अभी तक कोई राजनेता नहीं कर पाया। लेकिन भाजपा के इस सियासी चमत्कार को विपक्षी राजनीतिक पतन भी मान रहे हैं। दरअसल भाजपा ने कई राज्यों में कांग्रेसी नेताओं सहित अन्य दल के नेताओं को तोड़कर सत्ता हासिल की है।
त्रिपुरा में बीते 25 साल से लगातार सरकार चला रहे लेफ्ट के किले को भाजपा ने ढहा दिया। देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब भाजपा ने लेफ्ट की मजबूत पकड़ वाले राज्य में उसे सत्ता से बाहर कर दिया। शुरुआती रुझानों में त्रिपुरा में लेफ्ट और भाजपा गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर नजर आई। लेकिन बाद में भाजपा गठबंधन बहुमत के आंकड़े को पार कर गया। वहीं, नागालैंड-मेघालय में भी सरकार समर्थित सरकार बन गई है। इन दोनों राज्यों में सरकार बनाने के लिए भाजपा ने गठबंधन का ऐसा खेल खेला कि विपक्षी चित्त हो गए।
सेवेन्थ सिस्टर के नाम से मशहूर देश के पूर्वोत्तर हिस्सों के सात राज्यों में बीजेपी के लिए पांव जमा पाना आसान नहीं था। इसलिए नार्थइस्ट में जीत के बाद भाजपा के शीर्ष नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया नो वन से वून, यानी जब हमारा वहां कोई आदमी नहीं था, वहां हम विजयी हुए हैं। दिलचस्प बात यह कि इन राज्यों में भाजपा को कांग्रेस के अंसतुष्ट नेताओं का साथ मिला। बीजेपी को नये बनते समीकरण काम आये और अब त्रिपुरा, मेघालय समेत नागालैंड में भी पार्टी सत्ता में आ गयी है। नागालैंड में नेफ्यू रियो ने 11 कैबिनेट मंत्रियों के साथ शपथ ली। कांग्रेस के ढहते संगठन के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में उभरे नेफ्यू रियो नागालैंड के सबसे बड़े नेता हैं। नागालैंड के तीन बार मुख्यमंत्री और लोकसभा सदस्य रहे नेफ्यू रियो शुरुआती राजनीति में वह कांग्रेस पार्टी का हिस्सा थे।
नागालैंड में नेफ्यू रियो को सबसे बड़ा नेता माना जाता है। विरोधियों में भी उनका सम्मान किया जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक वह नागालैंड के सबसे अमीर नेताओं में भी गिने जाते हैं। 2003 में कांग्रेस से टूटने के बाद उन्होंने नागा पीपल्स फ्रंट से नाता जोड़ा। नेफ्यू रियो ने एक बार फिर नागा पीपल्स फ्रंट से नाता तोड़ा और नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी बना बीजेपी से जुड़े।
दरअसल, नेफ्यू रियो ही नहीं असम और मेघालय में भी कांग्रेस के पूर्व नेता भी भाजपा के लिए सत्ता में पहुंचने का माध्यम बने। असम में भाजपा सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले शख्स हेमंत बिस्वा सरमा पूर्व कांग्रेस नेता हैं और हालिया चुनाव में पूर्वोत्तर विजय के वे बड़े सूत्रधार हैं। असम के भाजपाई मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल पहले असम गण परिषद के नेता हैं। मेघालय में भी भाजपा जिनके जरिये सत्ता में आयी उनका पूर्व में कांग्रेस से नाता रहा है। मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी( एनपीपी) के अध्यक्ष कोनराड संगमा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। संगमा ने 60 सदस्यीय विधानसभा में 34 विधायकों के समर्थन से राज्यपाल गंगा प्रसाद के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया था। इस गठबंधन में एनपीपी के 19, यूनाईटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) के छह, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के चार, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी) और बीजेपी के दो-दो विधायक और एक निदर्लीय विधायक शामिल हैं।
छोटे दलों ने सबको चौंकाया
उत्तर पूर्व यानि नार्थ ईस्ट के तीन राज्यों मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड में हुए चुनावों के नतीजे अगर चौंकाने वाले और उलटफेर करने वाले रहे हैं तो उतना ही चौंकाने वाला रहा है इन तीनों राज्यों में ऐसी छोटी पार्टियों का उभरना, जो पिछले विधानसभा चुनावों में या तो किसी गिनती में नहीं थीं या फिर उनका अस्तित्व ही नहीं था। इन सियासी दलों में ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां ही रही हैं। इनमें कुछ ऐसी भी थीं, जिन्हें बमुश्किल दो - एक साल पहले ही बनाया गया था। उत्तर पूर्व के राज्य मेघालय की आबादी करीब 32 लाख की है। 1972 में अलग राज्य बना। यहां अब तक नौ विधानसभाओं में 14 बार कांग्रेस सरकार बना चुकी है, जबकि आल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस (एपीएचएलसी) ने चार बार सरकार बनाई है। अब ये पार्टी गायब हो चुकी है। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी तीन बार सरकार बना चुकी है। नेशनल पीपुल्स पार्टी ने पहली बार एनडीए के तले सरकार बनाई है। एनपीपी वर्ष 2013 में पीए संगमा ने ये पार्टी बनाई थी। इसे एनडीए से जोड़ा था। ये ऐसी पार्टी भी है, जिसे खर्चा नहीं बताने के कारण चुनाव आयोग ने सबसे पहले निलंबित भी किया। 2013 के विधानसभा चुनावों में एनपीपी के केवल दो विधायक थे। इस बार उसने 52 सीटों पर चुनाव लड़ा, 19 पर जीत हासिल की।
-ऋतेन्द्र माथुर