बराबरी का सवाल
16-Mar-2018 09:43 AM 1234929
स्त्री सशक्तीकरण के बारे में सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि उसका प्रारूप सब स्त्रियों के लिए एक ही होगा। स्त्री चाहे किसी भी वर्ग, जाति की हो, शिक्षित हो या अशिक्षित, शहरी हो या ग्रामीण, धनी हो या निर्धन, मालिक स्त्री हो या मजदूर, प्रत्येक स्त्री का शोषण-दमन एक जैसा तंत्र ही करता है, जिसे पितृसत्तात्मक तंत्र कहते हैं। समाज का कोई भी वर्ग हो, स्त्री का शोषण और उसकी पराधीनता का प्रतिशत लगभग समान है। इसलिए स्त्री सशक्तीकरण के सवाल पर समग्रता से उसके सभी पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। स्त्रियों के प्रति संवेदनशीलता और उन्हें आर्थिक, सामाजिक रूप से सशक्त बनाने का स्वप्न बहुत सुंदर है और स्त्री जीवन में सुखद आजादी के द्वार खोलने जैसा है। इस स्वप्न को समावेशी ढंग से समझना बहुत जरूरी है। तभी सजगता से भिन्नता में एकता को समझते हुए उम्मीदों को जिंदा रख पाएंगे और असली आजादी का अर्थ पा सकेंगे। भिन्नता को सकारात्मक मानते हुए स्त्रीत्व और मातृत्व को समाज के विकास और सशक्तीकरण का एक अहम गुण माना गया है। पहले के समय में स्त्रियों द्वारा किए गए घरेलू काम को, बच्चों के पालन-पोषण को, परिवार के बुजुर्गों की सेवा को, पुरुषों के कामों की तुलना में हीन माना जाता था। उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक मानते हुए उनके काम का मूल्यांकन नहीं होता था। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा था। अब आधुनिक समाज में स्त्री के गुणों की कद्र शुरू हुई है और ये स्त्री के जीवन के सकारात्मक गुण माने जाते हैं। समाज में हुए इस बदलाव के आधार पर स्त्रीवादी अर्थशास्त्र विकसित हुआ। स्त्री-श्रम पर आधारित अर्थव्यवस्था में स्त्रियों को समान अधिकार और सम्मान मिलना एक जरूरी कदम माना गया। अब पितृसत्तात्मक तंत्र का तरीका एक समान है, वह सभी तरह की स्त्रियों का शोषण समान रूप से करता है; आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक स्तरों पर दुनिया भर की स्त्रियां और अपने देश की स्त्रियां समान नहीं हैं, उनमें भिन्नता है। एक गरीब, अशिक्षित, ग्रामीण स्त्री को जो उत्पीडऩ सहना पड़ता है वह एक शहरी, संपन्न, शिक्षित स्त्री को नहीं सहना पड़ता। इस भिन्नता के चलते स्त्री सशक्तीकरण का स्वरूप भी भिन्न और बहुस्तरीय होगा। ग्रामीण स्त्रियों को राजनीति में बराबर का हक मिला है, पर आज भी अशिक्षा और उत्पीडऩ के चलते उनके पदों का संचालन उनके पुरुष ही करते हैं। गांव के स्तर पर राजनीतिक बराबरी का सच बेहद दयनीय होता आया है। इसके पीछे शिक्षा एक अहम कारण है। पूरे देश में स्त्री साक्षरता की दर पुरुषों से आज भी पीछे है, तकनीकी और प्रोफेशनल शिक्षा में भी प्रतिशत अभी आधे से कम है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की भरपूर सफलता तभी संभव होगी जब समाज जागरूक और भ्रष्टाचार से मुक्त होगा। आम बजट में स्त्री को प्रमुख किरदार माना जा रहा है, आधी आबादी को लेकर जितने भी सर्वे हुए या जो भी रणनीति बनी, उन सबकी फाइल गुलाबी रखी गई है। गुलाबी रंग खुशी का रंग है, उम्मीदों का रंग है। स्त्री शक्ति को सलाम करने और उसे गुलाबी रंगने का वास्तविक अर्थ तभी सार्थक होगा जब राजनीति में उन्हें उनकी जगह मिले। महिला आरक्षण विधेयक को वरीयता में पास कराया जाना भी स्त्री के असली आजादी और विकास के प्राथमिकताओं में से एक है। पुरुष प्रधान समाज में आज भी स्त्री की स्थिति संतोषजनक नहीं है। स्त्री को सशक्त करने की दिशा में राजनीति में तैंतीस प्रतिशत ही सही, जगह मिलनी चाहिए। स्त्रियों की राजनीति राजनीतिक अर्थशास्त्र की राजनीति है- कि जिस श्रम पर यह सारी व्यवस्था चल रही है उसका मूल्यांकन किया जाए। आधी आबादी के सशक्तीकरण का सवाल स्त्रियों को उनके श्रम का उचित मूल्य मिलने के साथ समाज में उन्हें सम्मान से जीने के हक के साथ जुड़ा है, ग्रामीण स्त्री सदियों से खेतों में कंधे से कंधा मिला कर काम करती है और पशु पालन, परिवार पालन की जिम्मेदारी भी सहर्ष निभाती है और उसके साथ लैंगिक भेदभाव, शोषण झेलती है। जेंडर बजटÓ और जेंडर मेनस्ट्रीमÓ जैसी योजनाओं की कार्य-प्रगति भी देखनी जरूरी है। स्त्री को उसकी अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए मनुष्य माना जाना और समान नागरिक माने जाने में अभी कसर है। उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले दिनों में आधी आबादी का पूरा सच सामने आएगा और उसे एक सम्मानित जीवन जी पाने की राह मिलेगी। स्त्री आज भी हाशिए पर स्त्री के विकास का प्रारूप स्त्री अस्मिता की नींव पर आधारित है। स्त्री सशक्तिकरण का सपना तभी साकार हो सकेगा जब एक सहभागी समाज का स्वप्न साकार होगा। हमारे संविधान की लोकतांत्रिक चेतना अत्यंत मजबूत है, पर समान नागरिक संहिता के इस देश में स्त्री आज भी हाशिए पर है। आधी आबादी के सर्वांगीण विकास का मॉडल उसकी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आजादी से जुड़ा प्रश्न है, परिवार में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए उसे समाज के सभी क्षेत्रों में एक सामान्य नागरिक की तरह काम करने और भयमुक्त रह सकने की आजादी मिलनी ही चाहिए। -ज्योत्सना अनूप यादव
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