16-Mar-2018 09:37 AM
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मप्र में पोषण आहार सप्लाई को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सरकार तय नहीं कर पा रही है कि वह क्या करें। दरअसल नई पोषण आहार नीति के तहत सरकार स्व-सहायता समूहों के जरिए पोषण आहार वितरण करवाना चाहती है। इसके लिए कैबिनेट ने 1 दिसंबर 2017 को टेंडर करने का निर्णय लिया था। लेकिन इस संदर्भ में बनी उच्च स्तरीय कमेटी ने 5 दिसंबर को इस निर्णय को बदलते हुए आजीविका मिशन के माध्यम से पोषण आहार वितरित करने का निर्णय लिया। छह माह के अंदर यह प्रक्रिया पूरी होनी थी लेकिन मामला अभी तक अधर में लटका हुआ है। उधर एमपी स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कार्पोरेशन से पोषण आहार की सप्लाई को लेकर इंदौर हाईकोर्ट के दो अलग-अलग फैसलों ने सरकार को परेशानी में डाल दिया है। वहीं 14 मार्च को पोषण आहार की सप्लाई को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान यह फैसला लिया गया कि इस पर 27 मार्च को सुनवाई के बाद फैसला किया जाएगा। ऐसी स्थिति में पोषण आहार की सप्लाई भगवान भरोसे हैं।
उल्लेखनीय है कि पोषण आहार सप्लाई को लेकर दायर एक एनजीओ की याचिका पर इंदौर हाईकोर्ट की 2 बेंच ने अलग-अलग फैसले देकर सरकार को अधर में लटका दिया है। 12 मार्च को एक बेंच ने सरकार को निर्देश दिया कि वह एमपी एग्रो से पोषण आहार की सप्लाई न ले। वहीं 13 मार्च को जस्टिस पीके जायसवाल और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की बेंच ने महिला एवं बाल विकास विभाग के 8 मार्च के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें उसने तय किया था कि वह एमपी एग्रो से पोषण आहार की सप्लाई नहीं लेगा। दरअसल पोषण आहार वितरण व्यवस्था को लेकर हाई कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी। कोर्ट ने 13 सितंबर 2017 को याचिका का निराकरण करते हुए सरकार को आदेश दिया था कि 30 दिन के भीतर इस संबंध में नए टेंडर जारी करें। आदेश का पालन करने के बजाय सरकार ने एमपी स्टेट एग्रो से सप्लाई जारी रखी और आदेश के खिलाफ रिव्यू याचिका दायर कर दी। इस याचिका में प्रमुख सचिव खुद 9 मार्च को कोर्ट में उपस्थित हुए और कोर्ट को बताया कि एमपी स्टेट एग्रो का ठेका निरस्त कर दिया गया है। दरअसल सरकार ने कोर्ट की नाराजगी से बचने के लिए ठेका निरस्ती का फैसला सुनवाई के ठीक एक दिन पहले 8 मार्च को लिया था।
डिवीजन बेंच के अंतरिम आदेश के तहत सरकार अब एमपी एग्रो से दोबारा सप्लाई शुरू कर सकती है, लेकिन सिर्फ छह हफ्तों तक। इस अवधि में सरकार को नए सिरे से टेंडर भी बुलाने होंगे। हाईकोर्ट के इन दो फैसलों को लेकर 14 मार्च को जबलपुर हाईकोर्ट मेंं सुनवाई की गई। जहां पूरे मामले को एक जाई करते हुए 27 मार्च को सुनवाई का निर्णय लिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या फैसला आने तक बच्चों को पोषण आहार वितरित नहीं होगा। ज्ञातव्य है कि 13 मार्च को पोषण आहार मामले में सरकार के रवैये को लेकर विधानसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। इसी बीच कैबिनेट ने रेडी टू ईट व्यवस्था को जल्द ही महिला समूहों को सौंपे जाने के लिए गठित कमेटी की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इस व्यवस्था के लागू होने तक पोषण आहार सप्लाई के लिए 10 दिन के भीतर शॉर्ट टर्म टेंडर जारी किए जाएंगे।
पोषण आहार व्यवस्था में अब तक काबिज कंपनियों की एंट्री रोकने की भी व्यवस्था की गई है। इसमें रेडी टू ईट तैयार करने का काम बीपीएल महिलाओं के स्व-सहायता समूहों को दिया जाएगा। गांव में महिलाओं के स्व-सहायता समूह बनाए जाने का काम चालू है। 25 से 30 गांवों के बीच एक क्लस्टर समूह बनेगा। पहले साल ये मनोनीत होंगे, बाद में इनके चुनाव होंगे। देखना यह है कि सरकार की यह नीति कब लागू होती है और लागू होने के बाद कितनी कारगर साबित होती है।
आजीविका मिशन के फेडरेशन को मिलेगा सीधे पोषाहार का काम
मध्यप्रदेश में छोटे बच्चों, गर्भवती महिला, धात्रीमाताओं के साथ किशोरी बालिकाओं को पूरक पोषण आहार की आपूर्ति आजीविका मिशन के फेडरेशन के माध्यम से की जाएगी। वहीं, फेडरेशन को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए विभिन्न उद्यमी और स्टार्टअप योजना से जोड़ा जाएगा। साथ ही स्व-सहायता समूहों को कर्ज देने की सीमा दो करोड़ रुपए से बढ़ाकर पांच करोड़ रुपए की जाएगी। इसके लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग कैबिनेट में प्रस्ताव लाएगा। यह फैसला 13 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में विधानसभा के समिति कक्ष में हुई कैबिनेट में लिया गया। सरकार आजीविका मिशन से जुड़े स्व-सहायता समूहों का फेडरेशन बनवा रही है। रेडी टू ईट टेक होम राशन का काम महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से कराने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य है।
- रजनीकांत पारे