16-Mar-2018 09:33 AM
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प्रदेश में वन क्षेत्र के विस्तार और हरियाली बढ़ाने के लिए सरकार हर साल करोड़ों पौधे रोपित करवाती है। इसके बावजूद प्रदेश का वन क्षेत्र लगातार कम हो रहा है। जानकारी के अनुसार मप्र में हरियाली के नाम पर 5 साल में करीब 350 करोड़ रुपए खर्च किए गए परंतु प्रदेश में हरियाली बढऩे के बजाए 60 स्क्वायर किमी घट गई। यह खुलासा भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की सर्वे रिपोर्ट में हुआ है। कांग्रेस इसे एक बड़ा घोटाला मान रही है। वहीं संत समाज नर्मदा किनारे रोपे गए 6 करोड़ पौधों में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहा है। इसके लिए दिल्ली में रथ तैयार हो रहा है।
रिपोर्ट से पता चला है कि पांच सालों में प्रदेश में 40 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए गए हैं, लेकिन 20 करोड़ भी जिंदा नहीं बचे हैं। वन विभाग के पास जीवित बचे पौधों का ठीक-ठीक आंकड़ा तक नहीं है। भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में पिछले दो साल में तेजी से हरियाली कम हुई है। सबसे ज्यादा सागर जिला प्रभावित हुआ है। यहां 72 फीसदी हरियाली घटी है। इसके बाद रायसेन में 58 और विदिशा में 54 फीसदी हरियाली कम हुई है। उधर विशेषज्ञों का कहना है कि एफएसआई की रिपोर्ट भरोसे लायक नहीं है। प्रदेश में इससे ज्यादा जंगल कम हुआ है। संस्थान देशभर में हरियाली की स्थिति पर हर दो साल में रिपोर्ट जारी करता है। वर्ष 2015 के बाद 2017 में सेटेलाइट की मदद से सर्वे कराया गया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 51 में से 26 जिलों में हरियाली कम हुई है। इनमें सागर पहले नंबर पर है। वर्ष 2015 की तुलना में जिले में सघन वन एक वर्ग किमी कम हो गया है। पिछली रिपोर्ट में दो वर्ग किमी था। मध्यम घना वन भी कम हुआ है, पिछली बार इसमें 1174 वर्ग किमी हरियाली थी। इस बार यह 1144 वर्ग किमी रह गया है।
वहीं खुले वन क्षेत्र में 1714 वर्ग किमी की बजाय 1669 वर्ग किमी हरियाली बची है। जबकि रायसेन में सघन वन क्षेत्र में हरियाली बढऩा बताया जा रहा है। यहां 2015 में 22 वर्ग किमी हरियाली थी और ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 23 वर्ग किमी है। वहीं मध्यम घने वन और खुले वन क्षेत्र में हरियाली कम हो गई है। यह क्रमश:1331 वर्ग किमी से 1308 वर्ग किमी और 1377 वर्ग किमी से 1346 वर्ग किमी रह गया है।
हरियाली कम होने के मामले में बालाघाट और बड़वानी चौथे नंबर पर हैं। यहां 45 फीसदी हरियाली कम हुई है। बताया जा रहा है कि पिछले सालों में इन जिलों में सबसे ज्यादा जंगल कटते रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के चार प्रमुख जिलों से भोपाल में 9 फीसदी हरियाली कम हुई है। इस संदर्भ में 14 मार्च को भोपाल उत्तर से कांग्रेस विधायक आरिफ अकील ने विधानसभा में ध्यानाकर्षण के तहत सरकार से पूछा था कि बड़े तालाब के किनारे लगाने के लिए नगर निगम ने कुछ साल पहले जो 20 लाख पेड़ खरीदे थे वे कहां गए। दरअसल कागजों पर ही पौधारोपण कर दिया गया है। इसी तरह इंदौर में 37 फीसदी हरियाली घटी है। जबकि जबलपुर और ग्वालियर में हरियाली बढ़ी है। यहां क्रमश: 25 और 12 प्रतिशत हरियाली बढ़ी पाई गई है। सेवानिवृत्त आईएफएस अफसर रामगोपाल सोनी एफएसआई की रिपोर्ट पर कहते हैं कि संस्थान की सर्वे की पद्धति ठीक नहीं है। इससे सटीक आंकड़े नहीं मिलते हैं। प्रदेश की वर्तमान स्थिति से पता चलता है कि जितना रिपोर्ट में बताया जा रहा है, उससे कहीं अधिक जंगल साफ हो रहा है। जब तक जलाऊ लकड़ी पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जाएगी, जंगलों को बचाया नहीं जा सकता है। वैसे भी सरकार को बारीकी से आंकलन कराना चाहिए कि हर साल रोपे जा रहे छह से सात करोड़ पौधे आखिर जा कहां रहे हैं।
प्रदेश में लकड़ी चोरी के बढ़े मामले
प्रदेश में लकड़ी चोरी के लिए ख्यात रहे आदिवासी बाहुल्य बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल जिले में लगी रोक के बाद अब लकड़ी माफिया सागर, रायसेन, विदिशा जिलों में बड़े पैमानों पर सक्रिय हो गए हैं। बीत दो सालों में इन जिलों में सर्वाधिक लकड़ी लाकर उसकी तस्करी की गई है। इसकी पुष्टि भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की वर्ष 2017 की सर्वे रिपोर्ट से हो रही है। खास बात यह है कि लकड़ी माफियाओं ने तस्करी के लिए अपने ट्रेंड में भी बदलाव किया है। वे अब लकड़ी की तस्करी के लिए बड़े वाहनों की बजाय छोटी गाडिय़ों का इस्तेमाल कर रहे है। संस्थान की वर्ष 2015 की रिपोर्ट में छिंदवाड़ा और बैतूल में सर्वाधिक हरियाली कम हुई थी। तब हरियाली कम होने के मामले में बुंदेलखंड का दमोह जिला दूसरे नंबर पर था लेकिन पिछले दो साल से माफिया रायसेन के सिलवानी, गौहरगंज, औबेदुल्लागंज, गढ़ी, गैरतगंज आदि क्षेत्र में सक्रिय हैं। वन विभाग के सूत्र बताते हैं कि सागर से सिलवानी को जोडऩे वाले रास्ते के कारण जंगल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है। रास्ते अच्छे हो गए और इलेक्ट्रॉनिक आरी आ गई। तो लकड़ी चोरी करने में आसानी हो गई है। चोर छोटी गाडिय़ों से आते हैं। पेड़ों को छोटे छोटे पीस में काटते हैं और ले जाते हैं। इस क्षेत्र में सागौन का अच्छा जंगल है। ऐसे ही तीनों जिलों सागर, रायसेन और विदिशा की सीमा पर स्थित जंगल में सर्वाधिक कटाई हो रही है।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया