16-Mar-2018 09:11 AM
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उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के जिलों में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 19 नवंबर, 2009 को हुई कैबिनेट बैठक में 7,266 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए। 3,606 करोड़ उत्तर प्रदेश के लिए और 3,760 करोड़ रुपए मध्य प्रदेश के लिए जारी किए गए। पैकेज के लिए तीन साल की समयसीमा भी रखी गई। 2009-10 से 2012-13 के बीच तीन सालों में मात्र 40 प्रतिशत पैसा ही खर्च हो सका।
राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) योजना आयोग के तहत बनाई गई नोडल एजेंसी है जो बुंदेलखंड पैकेज के तहत धन जारी करने के लिए है, साथ ही यह इस पैकेज का समय-समय पर मूल्यांकन भी करती रही है। एनआरएए के मूल्यांकन के अनुसार, 30 नवंबर, 2011 तक प्राधिकरण ने उत्तर प्रदेश को कुल आवंटन राशि में से 860.973 करोड़ रुपए जारी किए, लेकिन खर्च हुए केवल 280.99 करोड़ रुपए जबकि मध्य प्रदेश को कुल आवंटन का 1,129.92 करोड़ रुपए जारी किए गए और खर्च हुए मात्र 424.4 करोड़ रुपए। बुंदेलखंड पैकेज की समीक्षा से पता चला है कि उत्तर प्रदेश में अब तक कुल आवंटन का 16.57 प्रतिशत और पिछले दो वर्षों में मध्य प्रदेश में 21.70 प्रतिशत खर्च किया गया।
बुंदेलखंड के भारी भरकम पैकेज के क्रियान्वयन नहीं होने की गूंज संसद में भी बीते साल गूंजी। संसद के मानसून सत्र (2016) के दौरान 28 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में योजना राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने यह माना कि यूपीए सरकार ने बुंदेलखंड क्षेत्र में सूखे से निपटने के लिए स्वीकृत धनराशि में भारी अनियमितताएं बरती। यह जानकारी दोनों राज्य सरकारों ने दी। राव ने सदन को बताया कि अनियमितता बरतने वाले 50 अधिकारियों पर प्रशासनिक कार्रवाई की गई है। जिन अफसरों पर कार्रवाई गई है उनमें से 17 उत्तर प्रदेश के और 33 अधिकारी मध्य प्रदेश से हैं। राव ने जानकारी दी कि पैकेज को 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (बीआरजीएफ) के तहत बढ़ाया गया था। पिछले तीन वर्षों (2013-14 से 2015-16) के दौरान 898.12 करोड़ उत्तर प्रदेश के लिए और 694.09 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश को जारी किए गए।
बुंदेलखंड पैकेज के क्रियान्वयन के लिए योजना आयोग द्वारा बनाई गई नोडल एजेंसी एनआरएए ने भी 2016 में अपनी समीक्षा में इस बात की नाराजगी व्यक्त की कि स्वीकृत पैसे का कुछ प्रतिशत ही खर्च हो पाया है। प्राधिकरण के अनुसार, 2013-14 के लिए पैकेज के अंतर्गत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लिए 1,400 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए। इनमें से उत्तर प्रदेश को 690.25 करोड़ रुपये जबकि मध्य प्रदेश को 527.57 करोड़ रुपये दिए गए। लेकिन इनका भरपूर उपयोग नहीं हो पाया।
बुंदेलखंड को दिए गए इतने बड़े राहत पैकेज को सही तरीके से खर्च नहीं होने के कारण लाखों की संख्या में स्थानीय लोग रोजगार की तलाश में पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं। रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार, 2015-16 में बुंदेलखंड के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से लगभग 18 लाख लोग अनारक्षित डिब्बों का टिकट कटाकर राजधानी दिल्ली पहुंचे। पलायन करने वाली आबादी बुंदेलखंड की कुल जनसंख्या का 10 फीसदी है। स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, इस क्षेत्र में लगभग 60 से 70 प्रतिशत लोग कृषि पर जीवित रहते हैं, बहुत से लोगों के पास खेती खराब होने के बाद कुछ नहीं बचता है। ऐसे में क्षेत्र से पलायन अब एक दुष्चक्र बन गया है। बुंदेलखंड पैकेज को जमीन पर उतारने वाले पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन आदित्य कहते हैं कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज के क्रियान्वयन में भरपूर मदद की, लेकिन राज्य सरकार ने काफी अनदेखी। योजना को केंद्र भेजता है, लेकिन उसके सही क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य की है, जिसमें उसने लापरवाही की। बाद के समय भी किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
पहली बारिश में ही नहर टूटी
मध्य प्रदेश के जिले टीकमगढ़ में बुंदेलखंड पैकेज के तहत जामनी नदी पर गांव हरपुरा से लेकर मडिया तक नहर का निर्माण किया गया है। 45.8 किलोमीटर लंबी इस नहर के लिए 37.95 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया गया। वर्ष 2011-12 से शुरू हुआ निर्माण का कार्य 15 जून 2016 को पूरा करना था, लेकिन यह 2017 तक पूरा नहीं हुआ। वहीं, घटिया निर्माण सामग्री के चलते 2016 में पहली ही बारिश में बोरी, शिवराजपुर, पडवार के पास नहर टूटकर बह गई है। इसकी जांच आज तक नहीं कराई गई। बांदा के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष कुमार बताते हैं कि नहर टूटने की खबर कई अखबारों में प्रकाशित हुई, लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। हमीरपुर के कुरारा ब्लॉक के खंडोर गांव में हैंडपंप के चारों ओर सोकपिट का निर्माण गया, लेकिन, निर्माण के बाद ही ये ध्वस्त हो गए। गांव वाले बताते हैं कि सोकपिट के निर्माण में घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग किया गया था।
-सिद्धार्थ पाण्डे