16-Mar-2018 09:26 AM
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भारत में क्या लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए। इस सवाल को अब फिर से हवा मिली है। दरअसल 28 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस संदर्भ में चर्चा की तो एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में है। वहीं हर मामले में अव्वल रहने के आदी मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो इस मामले में मध्यप्रदेश का योगदान तय करने के लिए जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया है। यह कमेटी छह माह में अपने सुझाव देगी जिसे भारत सरकार और चुनाव आयोग को भेजा जाएगा। वैसे देखा जाए तो वन नेशन वन इलेक्शन देश हित में है।
दरअसल, देश हमेशा इलेक्शन मोड में रहता है। एक चुनाव खत्म होता है तो दूसरा शुरू हो जाता है। ऐसे में अधिकांश लोगों का विचार है कि देश में एक साथ यानी 5 साल में एक बार संसदीय, विधानसभा, सिविक और पंचायत चुनाव होने चाहिए। एक महीने में ही सारे चुनाव निपटा लिए जाएं। इससे पैसा, संसाधन, मैनपावर तो बचेगा ही, साथ ही सिक्युरिटी फोर्स, ब्यूरोक्रेसी और पॉलिटिकल मशीनरी को हर साल चुनाव के लिए 100-200 दिन के लिए इधर से उधर नहीं भेजना पड़ेगा। एक साथ चुनाव करा लिए जाते हैं तो देश एक बड़े बोझ से मुक्त हो जाएगा। अगर हम ऐसा नहीं कर पाते तो ज्यादा से ज्यादा संसाधन और पैसा खर्च होता रहेगा।
प्रधानमंत्री शुरू से ही कहते रहे हैं कि अलग-अलग चुनाव से विकास थम जाता है। साथ ही आचार संहिता लागू होने से विकास पर असर होने की उम्मीद है। अलग-अलग चुनाव से ब्यूरोक्रेसी पर असर पड़ेगा और बार-बार चुनाव से लोकलुभावन नीतियों का दबाव होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक देश, एक चुनाव के विचार पर उसी समय से विपक्ष में दलीलें शुरु हुई हैं। विपक्ष का कहना है कि सभी चुनाव एक साथ कराना व्यावहारिक नहीं होगा। साथ ही एक साथ चुनाव के लिए सरकार के पास पर्याप्त मशीनरी नहीं है। विपक्ष ने यहां तक दलीलें दे दी हैं कि एक साथ चुनाव कराने में संवैधानिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ सकता है। संविधान में बड़े बदलाव करने होंगे। उत्तराखंड, अरुणाचल जैसे हालात होंगे तो क्या करेंगे। हालांकि स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हों। लोकसभा, विधानसभा की 5 साल की तय अवधि हो। बीच में सदन भंग होने से सदस्य विकास कार्य नहीं कर पाते हैं। कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव से खर्च बचेगा और सामान्य जीवन में बाधाएं कम आएंगी। एक साथ चुनाव के लिए संविधान संशोधन करना पड़ेगा। जिसके चलते अनुच्छेद 83, 172, 85 और 174 में बदलाव करने होंगे। दूसरी तरफ एक देश, एक चुनाव पर कांग्रेस और सीपीआई ने प्रस्ताव की व्यावहारिकता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे भारतीय लोकतंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है। टीएमसी ने प्रस्ताव पूरी तरह खारिज कर दिया है।
पिछले दिनों बीजेपी कार्यकारणी बैठक में एक देश, एक चुनाव पर सुझाव पेश किया गया था। पिछली बार भी बजट से पहले सर्वदलीय बैठक में भी प्रधानमंत्री ने इस पर सुझाव दिया था। 1967 तक लोकसभा, विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे। कानून और कार्मिक मंत्रालय की स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिया था। जिस पर दिसंबर 2015 में रिपोर्ट संसद में पेश हुई थी। बीजेपी ने 2014 में अपने घोषणापत्र में एक साथ चुनाव का वादा किया। इससे पहले 2012 में लालकृष्ण आडवाणी ने एक साथ चुनाव का सुझाव दिया था। चुनाव आयोग के अनुमान के मुताबिक लोकसभा, विधानसभा चुनावों पर करीब 4,500 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं।
क्या भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में एक साथ इतने बड़े पैमाने पर इन चुनावों को करवाया जा सकता है? इस राह में कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है? विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं वाले देश में क्या यह योजना परवान चढ़ सकेगी? देश में पहले भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं। चौथे आम चुनाव (1967) के बाद राज्यों में कांग्रेस के विकल्प के रूप में बनी संविद (संयुक्त विधायक दल) सरकारें जल्दी-जल्दी गिरने लगीं और 1971 तक आते-आते राज्यों में मध्यावधि चुनाव होने लगे। 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी ने 1971 में लोकसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी, जबकि आम चुनाव एक वर्ष दूर था। इस प्रकार पहली बार लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने का सिलसिला पूर्णत: भंग हो गया।
विधानसभा चुनाव से पहले खाका पेश करेंगे मंत्री नरोत्तम
देश में चल रहे चुनाव सुधार और एक साथ लोकसभा व विधानसभा चुनाव कराए जाने की अटकलों के बीच मध्यप्रदेश का योगदान तय करने के लिए जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है। समिति जो रिपोर्ट देगी, उसे केंद्र को भेजकर चुनावी खर्च और चुनाव के चलते विकास कार्यों में आने वाली अड़चनों की जानकारी दी जाएगी। जो समिति बनाई गई है, उसमें मंत्री नरोत्तम मिश्रा के अलावा लाल सिंह आर्य, विष्णुदत्त शर्मा, तपन भौमिक, रिटायर्ड आईएएस एमएम उपाध्याय, एसएन रूपला, एसीएस एनवीडीए रजनीश वैश्य, समिति की सदस्य सचिव वीरा राणा होंगी। इसके साथ ही पत्रकार महेश श्रीवास्तव और गिरिजा शंकर को भी कमेटी में रखा गया है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ कराने के साथ-साथ प्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय, पंचायत और सहकारिता समेत अन्य चुनाव भी एक साथ कराए जाने पर समिति सुझाव लेगी।
- अक्स ब्यूरो