बिखरी कांग्रेस से हारती भाजपा!
03-Mar-2018 08:13 AM 1235044
बिखरी कांग्रेस से हारती भाजपा!बेहिसाब धन खर्च करके इवेंट मैनेजरों के सहारे सभाओं में भीड़ तो जुटाई  जा सकती है लेकिन मतदाताओं को वोट में नहीं बदला जा  सकता है। पहले अटेर, फिर चित्रकूट और अब मुंगावली व कोलारस उपचुनाव के परिणामों ने भाजपाइयों को यह सीख दे दी है। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व से लेकर प्रदेश के हर छोटे-बड़े नेता यह कहते नहीं थक रहे हैं कि कांग्रेस पूरी तरह बिखरी हुई है, लेकिन पिछले लगातार 4 उपचुनाव में भाजपा हारती जा रही है। बिखरी कांग्रेस से हारती भाजपा की यह स्थिति आगामी विधानसभा चुनाव के लिए चिंता का विषय है।  भाजपाई यह कह सकते हैं कि ये सीटें पहले भी कांग्रेस के कब्जे में थीं, लेकिन हार तो हार है। एक हार बड़े से बड़े योद्धा, बड़ी से बड़ी सेना और बड़ी से बड़ी पार्टी का मनोबल तोड़ देती है। प्रदेश में भाजपा के साथ शायद ऐसा ही कुछ हो रहा है। साथ ही कांग्रेस की ये जीत इस बात की ओर भी इशारा कर रही है कि भले ही भाजपा की नजर में कांग्रेस बिखरी हुई है, लेकिन अंदर ही अंदर पार्टी में एकता की डोर मजबूत हो रही है। कांगे्रस के नेता लगातार इसके संकेत दे रहे हैं। कांग्रेस कोलारस और मुंगावली सीटें बचाने में कामयाब रही। मुंगावली से कांग्रेस उम्मीदवार बृजेन्द्र सिंह यादव ने भाजपा की प्रत्याशी बाई साहब यादव को 2124 मतों के अंतर से पराजित किया। कांग्रेस उम्मीदवार बृजेन्द्र सिंह यादव को कुल 70,808 वोट मिले, जबकि भाजपा की उम्मीदवार बाई साहब यादव को 68,684 मत मिले। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट 20,765 मतों के अंतर से जीती थी। दूसरी ओर, कोलारस से कांग्रेस उम्मीदवार महेन्द्र सिंह यादव ने भाजपा के उम्मीदवार देवेन्द्र जैन को 8086 मतों के अंतर से हराया। कांग्रेस उम्मीदवार महेन्द्र सिंह यादव को कुल 82,523 मत मिले, जबकि भाजपा के देवेन्द्र जैन को कुल 74,437 मत मिले। वर्ष 2013 के विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट 24,953 मतों के बड़े अंतर से सीट जीती थी। इस चुनाव को दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया की ये सीधी लड़ाई के रूप में देखा जा रहा था। अब कांग्रेस का कहना है कि 8 महीने बाद मध्यप्रदेश से बीजेपी की रवानगी तय है। सेमीफाइनल क्यों है? मुंगावली और कोलारस उपचुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल इसलिए माना जा रहा था कि इन सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने अपना पूरा दमखम लगा दिया था। वहीं इन दोनों सीटों को बचाने की जिम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर थी। दोनों सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हैं। सिंधिया ने कांग्रेस प्रत्याशियों के पर्चा दाखिले से लेकर मतदान तक दोनों विधानसभा क्षेत्रों में ताबड़तोड़ 75 सभाएं और रैलियां कीं। बीजेपी ने सिंधिया के मुकाबले उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को प्रचार में उतारा था। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने खुद 45 सभाएं कीं। यानी ये चुनाव शिवराज बनाम सिंधिया था। जो जीतता उसका कद और बढ़ता। इस लड़ाई में फिलहाल सिंधिया ने बाजी मार ली है। इससे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पूरे देश में 350 लोकसभा सीट जीतने के मिशन को मध्य प्रदेश में करारा झटका लगा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी और पार्टी की पूरी ताकत झोंकने के बाद भी सिंधिया के गढ़ में कमल नहीं खिल पाया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को गुना लोकसभा सीट पर हराने की प्लानिंग में जुटी भाजपा उनके लोकसभा सीट पर दोनों विधानसभा सीट पर पिछड़ गई है। पिछले साल अगस्त में तीन दिवसीय मध्य प्रदेश दौरे पर भोपाल आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने साफतौर पर कहा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य से सभी 29 सीटें जीतनी हैं। पार्टी के पदाधिकारियों से बैठक में अमित शाह ने कहा था कि कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं देना है। शाह ने कहा कि कांग्रेस के ये दो नेता हमारे विधायकों से तालमेल कर जीत जाते हैं। शाह ने पार्टी का रोडमैप नेताओं के सामने रखते हुए कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की सीटों पर पार्टी की तैयारियों की मॉनिटरिंग वे खुद करेंगे। वर्तमान में प्रदेश में कुल 29 लोकसभा सीटों में से 26 पर बीजेपी का कब्जा है, बाकी तीन लोकसभा सीटें छिंदवाड़ा, गुना और झाबुआ पर कांग्रेस की बादशाहत है। मोदी लहर में भी कमलनाथ छिंदवाड़ा से 9वीं बार लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने। सस्पेंस, ड्रामा, डिनर डिप्लोमेसी कोलारस एवं मुंगावली विधानसभा उपचुनाव में सस्पेंस, ड्रामा और डिनर डिप्लोमेसी का नजारा देखने को मिला। चुनाव के दृश्य किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी। कहीं भाजपा की सभा में मतदाता कांग्रेस के पक्ष में नारेबाजी करते नजर आते हैं तो कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लंच, डिनर और ब्रेकफास्ट की डिप्लोमेसी से सिंधिया को घेरने की कोशिश करते रहे। बुआ और भतीजे की जंग ने चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। पहली बार ऐसा नजर देखने को मिला जब बुआ के खिलाफ भतीजे की पार्टी ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया। पूरे चुनाव के दौरान ताबड़तोड़ रैलियां, बेबाक बयानबाजी, हर तरह की लुभाने वाली कोशिश भी वोटर्स को भाजपा की ओर खींच नहीं पाई। कांग्रेस की इस जीत के पीछे कई सारे कारण नजर आते हैं, जिनमें भाजपा के कमजोर प्रत्याशी, कांग्रेस के इमोशनल कार्ड और सिंधिया के राजनीतिक रसूख को सबसे ज्यादा प्रमुखता दी जा सकती है। बहरहाल कारण जो भी हो, एक बात तो तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव के सन्दर्भ में बीजेपी के लिए ये कोई अच्छी खबर नहीं है। न जाति काम आई न जज्बात प्रदेश में पिछले 14 साल के अंदर जो भी चुनाव हुए हैं उसमें विकास सबसे बड़ा मुद्दा होता था। लेकिन मुंगावली और कोलारस उपचुनाव जातिगत समीकरणों के आधार पर लड़े गए। सरकार को अपने विकास कार्यों व सुशासन पर भरोसा न होने की वजह से भाजपा ने यहां जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर चुनावी रणनीति पर अमल करना शुरू किया तो कांग्रेस ने भी यही दांव चला। प्रदेश के मंत्रियों ने अपनी-अपनी जाति के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में वोट डलवाने की जिम्मेदारी ली थी। यही नहीं यहां के दलितों और पिछड़ों को लुभाने के लिए मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल विस्तार कर लोधी, कुशवाहा और पाटीदार समुदाय के विधायकों को मंत्री भी बनाया। मुंगावली विधानसभा क्षेत्र में यादव 50000, ब्राह्मण 10000, अनुसूचित जाति 35000, लोधी 20000, दांगी 18000, कटारिया 15000, कुशवाहा 10000, गुर्जर 10000, जैन, मुस्लिम 7-7 हजार और अन्य 9000 मतदाता है। इनको देखते हुए भाजपा ने अपने मंत्रियों और विधायकों को तैनात किया था। इसी तरह कोलारस विधानसभा क्षेत्र में सहरिया आदिवासी 32000, गुर्जर 5000, अनुसूचित जाति 35000, कुशवाहा 17000, यादव 24000, लोधी 13000, वैश्य 7 हजार, किरार 22000, मुस्लिम 5000 और अन्य 8000 मतदाता हैं। यहां भी जाति के आधार पर मंत्रियों और विधायकों की जमावट की गई थी। यही नहीं इस सीट पर सहारिया आदिवासियों के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक होने के कारण चुनाव घोषणा से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके लिए घोषणाओं का पिटारा खोल दिया था। लेकिन इसका कोई अधिक असर नहीं पड़ा। दरअसल प्रदेश सरकार और उसके नेताओं ने क्षेत्र में 14 साल के अपने शासनकाल में पहली बार इतनी सक्रियता दिखाई थी। इससे यहां के मतदाताओं को कांग्रेस ने यह अहसास करा दिया कि सरकार की नजर में आपकी अहमियत सिर्फ वोट की है। वन मैन शो बना चुनाव इन उपचुनावों में चित्रकूट उपचुनाव की रणनीति पर काम करते हुए कांग्रेस ने चुनाव का पूरा दारोमदार सिंधिया पर छोड़ दिया था। ज्ञातव्य है कि चित्रकूट में यही भूमिका अजय सिंह ने निभाई थी। अब दोनों उपचुनाव जीतने के बाद सिंधिया का कद कांग्रेस में और बढ़ गया है। सिंधिया सूबे में कांग्रेस का चेहरा हो सकते हैं, लेकिन साल भर से ज्यादा समय होने को आया उनका नाम चर्चा से आगे नहीं बढ़ पाया। यह कहने में कोई कंजूसी नहीं होना चाहिए कि सिंधिया ने इन चुनावों में वाकई जी तोड़ मेहनत की। एक तरह से वन मैन शो वाली स्थिति थी। मेहनत शिवराज सिंह चौहान ने भी कम नहीं की। वे अकेले नहीं, बल्कि डेढ़ दर्जन मंत्रियों की फौज, संगठन में सेनापति से लेकर सैनिकों तक की चतुरंगिणी सेना भी पिछले दो माह से दोनों चुनाव क्षेत्रों के गांव-गांव भटककर गली-गली नाप रही थी। पर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में गए। इसके क्या मायने हैं? क्या सरकार की सैकड़ों लोक लुभावनी योजनाएं वोट दिलाने का माद्दा नहीं रखतीं? क्या व्यक्तित्व के लिहाज से शिवराज के मुकाबले सिंधिया भारी रहे। इन नतीजों ने बसपा समेत छोटे दलों की भूमिका को भी बहस के केन्द्र में ला दिया। पिछले चुनावों में कांग्रेस के साथ बसपा भी मैदान में थी। बसपा ने एक जगह 23 हजार और दूसरी जगह 12 हजार से ज्यादा वोट प्राप्त किए थे। इन चुनावों में बसपा गायब रही। उसका वोट किसे मिला? यदि बसपा मैदान में होती तो परिणाम क्या रहते? इन सवालों के जवाब सियासी दलों को खोजने होंगे। खासकर भाजपा के लिए यह चिंता का विषय है। क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस और बसपा के गठबंधन की बुनियाद रखी जा रही है। नसीहत भी, संकेत भी कोलारस और मुंगावली दोनों सीटें पहले भी कांग्रेस के पास थीं, लौटकर आज फिर कांग्रेस के पास आ गईं। हां, कांग्रेस के वोट में जरूर बड़ा घाटा हुआ है। चुनाव की दलहीज पर खड़े प्रदेश की सियासत में भाजपा और कांग्रेस के लिए ये परिणाम नसीहत भी है और संकेत भी। मुंगावली और कोलारस न तो कांग्रेस की परंपरागत सीट है और न भाजपा की। दोनों सीटों से मिले-जुले नतीजे आते रहे हैं। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव क्षेत्र का हिस्सा होने के बावजूद अतीत में ऐसे मौके भी आए हैं जब दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा। इस बार दोनों ही दलों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर चुनाव को रोमांच के शिखर पर पहुंचा दिया। सिंधिया अपनी सभाओं में यह कहते सुने गए कि ये चुनाव उनके और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच हैं। एक लिहाज से शिवराज सिंह चौहान के तीसरे कार्यकाल के ये अंतिम चुनाव थे। इसके बाद आमना-सामना नवंबर में होगा। तब मैदान में योद्धा के तौर पर एक तरफ शिवराज सिंह चौहान रहेंगे यह तो तय है, लेकिन सामने कौन होगा इसका खुलासा होना शेष है। आज के नतीजों को देखें तो दूसरे योद्धा ज्योतिरादित्य सिंधिया हो सकते हैं। इन चुनावों में कांग्रेस सधे कदमों से अपनी जमीन मजबूत करने में लगे रहे वहीं भाजपाई कांग्रेस के बारे में टीवी चैनल से लेकर सभाओं तक में गला फाड़ कर चिल्लाते रहे। यानी भाजपाई प्रदर्शन करने में जुटे रहे। पिछले कुछ उपचुनावों पर नजर डालें तो भाजपाई अपने आप को राजा भोज और कांग्रेस को गंगू तेली मानते रहे। लेकिन अटेर से लेकर चित्रकूट और कोलारस से लेकर मुंगावली तक कांग्रेस ने भाजपा की चूलें हिला दी हैैं। अब इस पराजय के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए? संगठन शास्त्र में भाजपा के नेता सर्वज्ञ हैैं। इसलिए उनके निर्णय पर कोई सवाल नहीं कर सकता। तभी तो प्रत्याशी चयन से लेकर संगठन और सरकार में जिसको एक बार कमान सौैंप दी फिर उसकी तरफ पार्टी पलटकर नहीं देखती है चाहे वह नैया पार लगा दे या डुबा दे। सरकार में बैठे मंत्री अगर अपने सीट के साथ 3-3 विधानसभा  चुनाव जिताने का जिम्मा ले लें तो भाजपा कभी सरकार से बाहर होगी नहीं। लेकिन सफेद हाथी बने नेताओं के खुद के जीतने के भी लाले पड़े हुए हैैं। हालत यह है कि संगठन की तुलना में कांग्रेस को देखा जाए तो बकौल भाजपाई उनके यहां कार्यकर्ता ही नहीं हैैं। नेतागण बंटे हुए हैैं और कैडर का तो पता ही नहीं है। दूसरी तरफ भाजपा में संघ से तथाकथित संस्कारित प्रचारक और पूर्णकालिक कमान संभाले हुए हैैं। स्वयं सेवक मंत्री से मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान हैं। कैडर के मामले में तो उसके जैसी कोई दूसरी है ही नहीं। इतना सब किसी को भी दंभी, घमंडी, अहंकारी और जो शब्द और सोचे जा सकते हैैं वह बना सकता है। उस पर चौदह वर्ष की सरकार का नशा भाजपा को करैला और नीम चढ़ा बना रहा है। इसीलिए उपचुनावों के परिणाम उनके विपरीत जा रहे हैं। यह भाजपा के लिए चिंतन का विषय है। लगातार उपचुनाव हार रही है भाजपा दीगर यह है कि हाल में हुए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी लगातार चुनाव हार रही है। राजस्थान की अजमेर सीट कांग्रेस बीजेपी से छीन चुकी है। विधानसभा में भी कांग्रेस को एकतरफा फायदा मिला। मध्य प्रदेश में भी सीएम शिवराज सिंह चौहान के दावों के बावजूद पार्टी लगातार हार रही है। वहां की कोलारस और मुंगावली में कांग्रेस ने बीजेपी प्रत्याशी को पटखनी दे दी है। ओडीसा राज्य के बीजेपुर में आयोजित उपचुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। होली से पहले मध्यप्रदेश की कोलारस और मुंगावली में कांग्रेस ने बीजेपी प्रत्याशी को पटखनी दे दी है। इस नतीजे के बाद सबकी नजरें 11 मार्च को उत्तर प्रदेश की फूलपुर और गोरखपुर के साथ बिहार की अररिया लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव पर टिक गईं हैं। राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि इन सीटों पर अगर भारतीय जनता पार्टी हारी तो नरेंद्र मोदी के लिए 2019 की राह मुश्किलों से भर जाएगी। इन सीटों के लिए 14 मार्च को वोटों की गिनती होगी। बीजेपी के नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ रिजल्ट के बाद ही असली होली खेलेंगे। त्रिपुरा विधानसभा में बीजेपी को फायदा मिलने का अनुमान है। अभी तक जारी चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत के करीब बताया जा रहा है। वहां रिजल्ट 3 मार्च को घोषित होंगे। मगर नॉर्थ ईस्ट में बढ़ती साख का पार्टी को लोकसभा चुनाव में ज्यादा फायदा नहीं होगा, क्योंकि इस क्षेत्र की कुल 25 सीटों पर जीत के बाद भी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार से कम होने वाली एक-एक सीट भारी होगी। अगर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी हारी तो इसका असर पहले कर्नाटक, फिर राजस्थान व मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी पडऩा तय है। नेताओं के बोल पड़े भारी प्रदेश में पिछले 14 साल से अधिक समय से सत्ता में काबिज प्रदेश भाजपा के नेताओं में शायद यह गुमान भर गया है कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और विकास के नाम पर हर चुनाव जीत जाएंगे। इसलिए चुनावों के दौरान यह देखने को मिला कि नेता मतदाताओं को लुभाने की बजाए धमकाते रहे। कभी मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया तो कभी मंत्री माया सिंह तो कभी प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान तो कभी प्रभात झा के बोल मतदाताओं को पसंद नहीं आए। जीत पार्टी और उसकी नीतियों की मुंगावली से जीते कांग्रेस प्रत्याशी बृजेन्द्र सिंह यादव और कोलारस से जीते महेंद्र सिंह यादव ने अपनी जीत को पार्टी और उसकी नीतियों की जीत बताया। इन दोनों नेताओं का कहना है कि क्षेत्र में सरकार ने ऐसा कोई कार्य कराया ही नहीं था कि जनता उसे स्वीकार्य करती। दोनों क्षेत्रों में जो विकास नजर आ रहा है वह सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की बदौलत है। आरोप-प्रत्यारोप से इतर अगर देखें तो कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनाव के नतीजे राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है। क्योंकि उस समय न तो भाजपा और न ही कांग्रेस किसी एक सीट पर इतना जोर लगाएगी। वैसे देखा जाए तो इन दोनों क्षेत्रों में कांग्रेस की नहीं बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की जीत हुई है। पूरा चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के इर्द-गिर्द घूमता रहा। शिवराज ने जिन दो गांवों में गुजारी रात, वहीं पर मिली हार मुंगावली विधानसभा सीट के सेहराई और पिपरई गांवों में भी कांग्रेस ने बीजेपी हारा दिया।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद दोनों गांवों में रातभर रुके थे। तीन-चार बार इन गांवों का उन्होंने दौरा किया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सेहराई में रोड शो भी किया था। इसके अलावा उन्होंने किसान सम्मेलन में पहुंचकर सेहराई में डिग्री कॉलेज खोलने की घोषणा भी की थी। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा था कि आपके यहां सांसद कांग्रेस का और विधायक कांग्रेस का। ऐसे में हमें अपना पैर रखने तक की जगह तक नहीं मिली। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने भी सेहराई मंडल में जनसंपर्क किया था। मतों से नहीं, प्रबंधन मोर्चे पर हारी भाजपा इस बार के उपचुनावों ने कई प्रश्न हमारे सामने प्रस्तुत किए हैं। उन प्रश्नों पर मैं नहीं जाऊंगा और न ही उन प्रश्नों का जवाब ही ढूंढऩे की कोशिश करूंगा, लेकिन इस चुनाव में भाजपा की हार की समीक्षा जरूरी है। यह इसलिए भी कि विकास के तमाम दावों के बीच भाजपा के खिलाफ लोगों का गुस्सा बहुत था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो अपना पूरा दमखम लगा दिया था, लेकिन भाजपा का प्रबंधन हर जगह गड़बड़ नजर आया। भाजपा नेताओं में तालमेल की कमी देखी गई। मुख्यमंत्री को छोड़कर अन्य किसी की सभा में भीड़ भी कम दिखी। दोनों विधानसभा क्षेत्र में संगठन के नाम पर कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं था। वहीं भाजपा का संगठन हर जगह देखा गया। लेकिन भाजपा के जो बाहर से नेता कोलारस और मुंगावली  में गए थे उनका स्थानीय भाजपाइयों के साथ कोई तालमेल नहीं दिख रहा था। नेता बड़े-बड़े होटलों में मानों चुनावी पर्यटन पर गए हों और कार्यकर्ता नेताओं द्वारा दी गई व्यवस्था में मस्त। यह कुछ चित्रकूट उपचुनाव के दौरान भी भाजपा के खेमे में दिखा था। भोपाली नेताओं और मंत्रियों की सक्रियता के कारण न ही मुंगावली और न ही कोलारस में स्थानीय नेताओं को भाव मिला। यही नहीं भाजपा प्रत्याशी चयन में भी मात खा गई। वहीं कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में काम करती रही। सिंधिया ने पूरे चुनाव की कमान अपने हाथ में ले रखी थी। इस चुनाव में सारे स्थानीय कांग्रेसी नेता अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय थे। कहावत है युद्ध भूमि में घोड़े नहीं बदले जाते हैं। कांग्रेस ने यही किया। तमाम विरोधाभास के बाद भी यहां कांग्रेस ने कोई प्रयोग नहीं किया। चुनाव की पूरी कमान सिंधिया के कंधे पर थी और प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रबंधन तक सिंधिया ने ही किया। यह कांग्रेस के लिए बेहद प्रभावी रणनीति साबित हुई। कांग्रेस ने दोनों जगह जमीनी, क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर उम्मीदवार खड़े किए। यह चुनाव पूरी तरह जातीय समीकरण पर आधारित है। अपने संसदीय क्षेत्र की स्थिति से वाकिफ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक में पूरी सतर्कता दिखाई। अब की बार 200 पार का क्या होगा? उपचुनाव में लगातार हार से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उस जुमले का क्या होगा जो वे अगस्त 2017 में भोपाल प्रवास के दौरान दे गए थे। अबकी बार 200 पार।  अभी तक तो जीतने के लाले पड़े हुए हैैं।  सर्वे रिपोर्ट बता रही है कि बमुश्किल से सरकार बन पाएगी। मगर चुनाव आते-आते हालात न सुधरे तो सरकार से बाहर भी होने के जुमले आम हो जाएंगे। कुल मिलाकर जिस कांग्रेस को बिखरा, कमजोर और आराम परस्त माना जा रहा है भाजपा उसके लिए चुनाव की जीत की थाली परोसकर दे रही है ऐसा कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कांग्रेस को सक्रिय, संगठित और सकारात्मक होने की जरूरत है। भाजपा के नेता कह रहे हैं हार पर मंथन करेंगे। यह वे नेता कह रहे हैैं जिन्हें हर हाल में जीत चाहिए थी। संगठन और सरकार न तो सही प्रत्याशी उतार पाए और सत्ता होने के बावजूद बागियों को संतुष्ट भी नहीं कर पाए। ऐसे में आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा कैसे सही प्रत्याशी का चयन करेगी और किस तरह बगावत को रोकेगी। लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद भाजपा के लीडर इतने ताकतवर तो हो ही गए हैैं कि उन्हें टिकट न मिला तो वे कुछ करें न करें पार्टी को हराने का माद्दा तो रखते हैैं। इसमें सबसे ज्यादा फजीहत उनकी होने वाली है जो सत्ता में आने के बाद सत्ता सुख की प्रतीक्षा में बूढ़े हो रहे हैैं। क्या हार में, क्या जीत में, किचिंत नहीं भयभीत मैं सत्ता का सेमीफाइनल कहे जा रहे कोलारस और मुंगावली उपचुनाव में कांग्रेस की जीत पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शिव मंगल सिंह सुमन की काव्य पंक्तियों के जरिए अपनी बात कही... क्या हार में क्या जीत में, किचिंत नहीं भयभीत मैं। कर्तव्य पथ पर जो मिला, यह भी सही, वह भी सही। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि साल 2013 के चुनावों में कोलारस और मुंगावली में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार पार्टी ने बेहतर प्रयास किए। अभी जितनी जानकारी मिली है उसमें भाजपा उम्मीदवार पीछे चल रहे हैं लेकिन अभी परिणाम नहीं आए हैं। हालांकि वे इतना जरूर कह गए कि चुनाव आते-जाते रहते हैं और उनमें हार-जीत भी लगी रहती है। लेकिन हमने बीजेपी के वोट प्रतिशत में सुधार किया है। वहीं मंत्री यशोधरा राजे सिंंधिया ने चुनाव परिणामों के लिए शिवपुरी के नेताओं को जिम्मेदार बताया है। गौरतलब है कि मुंगावली और कोलारस के उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा के चुनाव थे। इन चुनावों को शिवराज सिंह चौहान बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया माना जा रहा था क्योंंकि इन दोनों नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टी के लिए पूरा जोर लगाया था।
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