02-Jul-2013 08:40 AM
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ज्यादा जरूरी है मन की खुशीहम में से ज्यादातर लोग दूसरों की अपेक्षाओं के मुताबिक अपना जीवन तय करते हैं। मसलन, जब हम स्कूल में होते हैं, तो हमारा फोकस अच्छे अंक पर होता है, इसके बाद अच्छी नौकरी, फिर शादी और बच्चे। इसके बाद बच्चों की पढ़ाई, कैरियर, उनकी शादी व फिर उनके बच्चों की चिंता करने लगते हैं। यह चक्र यूं ही चलता रहता है। यह सोचने का मौका ही नहीं मिलता कि हम क्या चाहते हैं, हमें क्या अच्छा लगता है। बच्चों पर माता-पिता का दबाव होता है कि अच्छे अंक लाओ। कई बार हम ऐसे विषय पर अपनी पूरी ऊर्जा और जीवन लगा देते हैं, जिनमें हमारी जरा-सी भी दिलचस्पी नहीं होती। यही नहीं, हमारी जिंदगी पर हमारे पड़ोसी, रिश्तेदारों व सहकर्मियों का भी भारी दखल होता है। हम दूसरों की अपेक्षाओं के मुताबिक, अपनी वरीयताएं तय करते हैं। मसलन, हमने बेहतरीन पढ़ाई की है, तो हम समझते हैं कि हमें ऊंचे पद और मोटे वेतन वाली नौकरी ही करनी चाहिए। हम डरते हैं कि अगर हमने यह सब हासिल नहीं किया, तो लोग हमें असफल कहेंगे।
खुद तय करें: हम क्यों नहीं अपनी सफलता का पैमाना खुद तय करते हैं? जिस काम में हमें दिलचस्पी नहीं है, वह हम क्यों करें? मैं अपना उदाहरण देती हूं। जब मैं आईआईएम, अहमदाबाद में पढ़ाई कर रही थी, तब मैंने तय किया कि मैं सिर्फ पैसा कमाने के लिए नौकरी नहीं करूंगी। मेरी शिक्षा का मकसद ऐसा काम करना था, जिससे समाज को लाभ हो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरे सहपाठी या दोस्त क्या कहेंगे? मैंने वही किया, जो मुझे अच्छा लगा। जाहिर है, यह आसान नहीं था। दरअसल, हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि हमें स्वतंत्र होकर सोचने और फैसले करने का मौका ही नहीं मिलता। हममें से कितने लोग आत्ममंथन करते हैं कि वे क्या चाहते हैं। कितने लोग इस बात का साहस दिखाते हैं कि वे वही कार्य करेंगे, जो उन्हें अच्छा लगता है। आईआईएम के पुराने साथियों से मेरी अक्सर मुलाकात होती रहती है। उनमें से कई बड़ी कंपनियों में बड़े पदों पर हैं। वे कहते हैं कि वे अपने बच्चों को अच्छी तरह नहीं समझते, क्योंकि वे इतना व्यस्त रहे कि उन्हें बच्चों के संग वक्त बिताने का मौका ही नहीं मिला।
दिल का सकून: आपने पूरा जीवन ऐसे कार्य में बिता दिया, जो आपका मनपसंद काम ही नहीं था। क्या नाम कमाना, पैसा कमाना, संपत्ति बनाना ही आपके जीवन का मकसद था? क्या आप वाकई खुश हैं? अगर यह सब हासिल करने के बाद भी आप खुश नहीं हैं, तो इसके लिए जीवन क्यों बरबाद किया? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे आपके ओहदे और रुतबे को लेकर क्या कहते हैं। आप ऐसा पेशा चुनें, जिसमें आपको आनंद मिले, ताकि हर सुबह उठकर आप कह सकें, चलो, एक और नया दिन आया। ताकि हर सुबह एक नई उमंग के साथ आप दिन शुरू कर सकें।
दिखावा क्यों: महंगे कपड़ों का आपकी काबिलियत से क्या लेना-देना? क्या खुद को महत्वपूर्ण दिखाने के लिए ब्रांडेड कपड़े पहनना जरूरी है? कपड़ों पर लगा किसी कंपनी का टैग आपकी पहचान कैसे हो सकता है? यह कैसा दिखावा है? अगर आपको अपनी हैसियत दिखाने के लिए ऐसी चीजों का सहारा लेना पड़ता है, तो यकीकन आप अंदर से खोखले हैं। सबसे महत्वपूर्ण है आपका जीवन। दिखावे से ज्यादा जरूरी है कि मन की खुशी। आपके अंदर खुद की मर्जी से जीने का साहस होना चाहिए। मैं जानती हूं कि यह आसान नहीं है। मैं सिंगल मदर हूं, मैं अकेले अपने दो बच्चों की जिम्मेदारी संभालती हूं। मैंने मैनेजमेंट की पढ़ाई की, बाद में पीएचडी की। उसके बाद तय किया कि मैं डांस के जरिये समाज में चेतना फैलाऊंगी। यह ऐसा काम है, जिसमें मुझे मजा आता है, सुकून मिलता है। दूसरे क्या कहते हैं, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता।