15-Jun-2013 06:53 AM
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फिर से उत्साह प्राप्त करने के लिए, विनष्ट होती हुई शक्ति को रोकने के लिए तथा इन युवकों और समाज का वास्तविक कल्याण सिद्ध करने के लिए मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए हुए हीनता-निदान पर ध्यान

दिया जाना चाहिए। हीनता ग्रंथि वाले युवकों के संपर्क में रहने वालों का तो यह रोज का अनुभव है। एक पत्र से कुछ पंक्तियां उद्धत करता हूं- मुझे अपने घर पर विश्वास हो, ऐसा लगता नहीं। किसी भी वस्तु पर विश्वास नहीं, किसी भी बात पर विश्वास के साथ बोल नहीं सकता। जो कोई भी लक्ष्य निश्चय करता हूं (उदाहरणार्थ, च्यह मेरा अंतिम वर्ष है, अत: पहल दर्जे में आना है) तो मेरे मन में शंका-आशंकाएं उठ खड़ी होती हैं, मुझसे यह हो सकेगा या नहीं, ऐसे प्रश्नों की झड़ी मेरे दिमाग को बेचैन बना देती है। मुझे हमेश अपने भविष्य के बारे में आशंका रहा करती है, क्या होगा?
मैं अपने भविष्य को शंका की नजर से देखता हूं। किसी के भी साथ आत्मविश्वास से बात नहीं कर सकता। कोई सच्ची बात जानता भी हूं तो उसे कहते हुए मन में भय लगता है। इसलिए वास्तव में मुझे बहुत व्यग्रता रहती है। मुझमें आत्मविश्वास न आ सका, तो मेरा जीवन नष्ट हो जाएगा, यह एक ही बात ऐसी है जिसमें मुझे कोई शंका नहीं। सचमुच आत्म-विश्वास के बिना मनुष्य पंगु हो जाता है। पंख होते हुए भी घोंसले में ही बैठे रहने वाले पक्षी को भला पक्षी कहा जा सकता है? पंखडिय़ों के कोमल सौंदय को पवन में खुला करने के डर से बंद रखने वाली कली कभी फूल बन सकेंगी? बाहर दुनिया के अविश्वास से कोने में बंद रहना पसंद करने वाला कीड़ा क्या पतंग बन सकेगा? कोये को तोडऩे, अपरिचित वातावरण में पनपने, घोंसले को छोडऩे के लिए हिम्मत चाहिए। जीवन में जीवट के साथ कूदने के लिए आत्म-विश्वास चाहिए। कली का खिलना श्रद्धा का चमत्कार है। पक्षी का अपने बच्चे को हवा में छोड़ देना बहादुरी-भरा पराक्रम है। जवान आदमी का जीवन का आह्वान सुनकर दुनिया के मैदान में कूद पडऩा आत्मविश्वास की साधना है। जीवन साधना के प्रारंभ में ही एक बड़ी बाधा उपस्थित होती है। उसे यदि हम लांघ सकें तो काम खूब आगे बढ़ सके। यह बाधा है, विश्वास का अभाव। अपरिचित समुद्र को पार करके किसी किनारे पहुंचूंगा ही, ऐसा अटल विश्वास ही कोलंबस को सफलता की पहली और सबसे बड़ी पूंजी थी। दूसरे भी बहुत-से मनुष्य अतलांतित पार कर अमेरिका पहुंच सकते थे, परंतु उनके अंदर विश्वास न था। उनमें ऐसी श्रद्धा न थी। कोलंबस और उनमें यही भेद था। आत्मविश्वास चाहिए और वह सच्चा आत्मविश्वास होना चाहिए। दूसरों के हाथ में दी जाने वाले चीज खोटी भी हो सकती हैं, दूसरे के कान में डाली जानेवाली बात झूठी भी हो सकती है, परंतु अपनी आत्मा को जताया जानेवाला निर्णय, अपने सामने प्रस्तुत किया जाने वाला अपनी मानसिक तैयारी का विवरण, सच्चा ही होना चाहिए। मनुष्य दूसरों के सामने तो झूठे विश्वास का दिखावा कर सकता है, परंतु अपने सामने नहीं। बनावटी आत्मविश्वास देर तक साथ देता ही नहीं। सच्चा हो, तभी वह दुनिया के बाजार में घुमाया जा सकता है।
अनुभव की बात है कि जो मनुष्य डींग हांकते हैं, विश्व-विजय का ढिंढोरा पीटते हैं, वे अंदर से भीरु होते हैं और अपनी भीरुता छिपाने के लिए बाहर से झूठा दिखावा करते हैं। मुझे पक्का विश्वास है कि मैं पास होऊंगा ऐसा जो विद्यार्थी बार-बार और बलपूर्वक कहता है, उसका अर्थ यह समझना चाहिए कि उसे अनुत्तीर्ण होने का पूरा भय है और इसलिए उल्टा बोला करता है। निश्चय, अवश्य, जरूर इन शब्दों का अर्थ शब्दकोश में एक होता है और जीवन में दूसरा। आत्मविश्वास उत्पन्न करने के लिए, सफलता मिल सके ऐसे काम पहले शुरू करो। भले ही वह कोई साधारण ही काम हो, परंतु सिद्धि का अनुभव होने पर हृदय में आनंद स्फुटित होगा, और यह आनंद तुम्हें अपने-आप आगे की तरफ खींच कर ले जाएगा। सफलता का स्वाद जीभ को लग जाता है और उससे उत्साहपूर्वक जीवन जीने की भूख खुलती है। इसके विपरीत, अपनी शक्ति से बाहर काम शुरू करोगे तो निष्फलता मिलेगी। उससे तुम्हारे अहंभाव को चोट पहुंचेगी, तुम्हारे ही दरबार में तुम्हारा मान-भंग होगा। तुम्हारे दिल पर गहरा आघात पहुंचेगा और उसका घाव जिंदगी भर नहीं भरेंगे। बहुत सी हीनता-ग्रंथियों का कारण यही होता है - निष्फलता के अनुभव से तरुण हृदय पर पड़ा हुआ आघात। आत्मविश्वास प्राप्त करने का रामबाण उपाय इससे उल्टा है- बचपन से ही छोड़े-बड़े काम उत्तरोत्तर सिद्ध करने का आत्मसंतोष। एक तेजस्वी विद्यार्थी कॉलेज में गणित की कक्षा में पहले से ही पिछड़ गया था। पहला परीक्षा में जैसे-तैसे पास हुआ। देर तक चर्चा करने के बाद वास्तविक कारण समझ पड़ा। स्कूल में एक बार दो महीने की बीमारी के बाद तैयारी न होने पर भी उसे गणित की परीक्षा में बिठाया गया था। होशियार है, इसलिए गणित में कोई बाधा न आएगी, यह उसके बुजुर्गो का गलत ख्याल था। परीक्षा खराब होने का उससे प्रथम अनुभव था। इससे उसके दिल में चोट लगी, मन में गांठ बंध गई कि गणित अनुकूल नहीं हो सकेगा। रस चला गया। उसके दूसरे विषय अच्छे थे, परंतु गणित में हमेशा कच्चापन रहता। अच्छा इतना ही हुआ कि रोग एक विषय से दूसरे विषय में फैला नहीं। रोग का निदान हो जाने पर इलाज आसान हो गया। ऐसी परीक्षाओं में मैंने उसे बिठाया, जिनमें वह सफल हो सके। सफलता वस्तुत: रामबाण औषधि है। सफलता मिलने से उसकी सुषुप्त शक्ति जाग उठी, विश्वास जमा, रस आने लगा और गणित ही प्रिय विषय बन गया। सफलता के मृदु स्पर्श से अविश्वास का घाव भरता है।