16-Mar-2018 09:16 AM
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुरेश भैयाजी जोशी को संगठन का चौथी बार सरकार्यवाह चुना है। वे 2009 से इस पद पर हैं। इसी माह उनका कार्यकाल खत्म हो रहा था। पहले चर्चा थी कि संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले को यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की इस बैठक के लिए पूरे देश से करीब 3000 प्रचारकों को नागपुर बुलाया गया था। अब भैयाजी मार्च 2021 तक इस पद पर रहेंगे।
पिछले कुछ महीनों से इस बात की अटकलें लगाई जा रही थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की टॉप लीडरशिप में बदलाव हो सकता है। संघ में नंबर टू का रुतबा रखने वाले सरकार्यवाह के पद पर सुरेश भैयाजीÓ जोशी की जगह उन्हीं के डिप्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक माने जाने वाले सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की नियुक्ति की चर्चाएं थी। नागपुर में संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ ने इन तमाम अटकलों को विराम देते हुए भैया जी जोशी को ही सरकार्यवाह के पद पर चुन लिया है। भैयाजी जोशी को लगातार चौथी बार इस पद पर चुने जाने के क्या राजनीतिक मायने हैं? यह बीजेपी और पीएम मोदी के लिए संघ की ओर से कितना बड़ा संकेत है? इसको लेकर देश की राजनीति में मंथन शुरू हो गया है।
देश भर में अपनी 60,000 से ज्यादा शाखाओं के जरिए देश के करीब 95 फीसदी भूगोल में मौजूदगी रखने वाले संघ के भीतर सबसे बड़ा पद सर संघचालक का होता जो फिलहाल मोहन भागवत के पास है। संघ में सरसंघचालक की भूमिका एक गाइडिंग फोर्स और प्रेरणा के केंद्र की ही होती है। दुनिया का सबसे बड़ा गैरसरकारी संगठन होने का दावा करने वाले संघ को चलाने और उसकी नीतियों को तय करने से लेकर अमलीजामा पहनाने की रणनीति तय करने में नंबर टू की पोजिशन वाले सरकार्यवाह का पद बेहद अहम होता है। सरकार्यवाह की मदद के लिए चार सह सरकार्यवाह होते हैं। अब इस बार इनकी संख्या बढ़ाकर छह कर दी गई है।
सरकार्यवाह की दौड़ में सबसे आगे सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले थे। लेकिन इस बार भी सरसंघचालक मोहन भागवत ने सुरेश भैया जी जोशी के नाम का प्रस्ताव दिया। प्रस्तावित नाम पर केंद्रीय प्रतिनिधियों ने ओम उच्चारण के साथ हाथ उठाकर नए सरकार्यवाह का चयन सम्पन्न किया।
बताया जाता है कि जब से दत्तात्रेय का नाम उछला था संघ में कुछ बेचैनी देखी गई। होसबोले को लेकर संघ के एक वर्ग में चिंता की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी निकटता भी है। बल्कि उन्हें संघ में प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ा समर्थक तक कहा जाने लगा है और इसका पर्याप्त आधार भी है। मसलन- एक तथ्य तो यही कि होसबोले की संघ में तरक्की का ग्राफ कमोबेश उन्हीं बीते चार साल में बढ़ा जब भाजपा में नरेंद्र मोदी की पकड़ मजबूत हुई। बीते साल उत्तर प्रदेश चुनाव में तो आलम यह रहा कि होसबोले पटना से बोरिया-बिस्तर समेटकर लखनऊ में आ जमे थे। यहां उन्होंने भाजपा के चुनाव प्रबंधन के लगभग हर पहलू में अहम भूमिका निभाई। उम्मीदवारों की पहचान से लेकर मतदान केंद्र प्रबंधन, जमीनी सर्वे और मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचाने की हर रणनीति में उनका दखल रहा। यही वजह है कि संघ के एक बड़े वर्ग का मानना है कि उन्हें सरकार्यवाह बनवाकर प्रधानमंत्री मोदी आरएसएस पर भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। इस वर्ग में यह धारणा भी बन रही है कि होसबोले सरकार्यवाह बनते तो आरएसएस पर प्रधानमंत्री मोदी का समर्थक तबका हावी हो जाता और भाजपा के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में संघ कमजोर पडऩे लगेगा। शायद यही वजह है कि संघ ने दत्तात्रेय को आगे नहीं बढ़ाया।
अब किसानों को साधने मैदान में उतरेगा संघ परिवार
आगामी दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मप्र सहित देशभर में किसानों को साधने के लिए मैदान में उतरेगा। मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक विधानसभा चुनाव सहित भाजपा के मिशन 2019 के मद्देनजर नागपुर में संघ की सबसे अहम माने-जाने वाली प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ परिवार ने यह निर्णय लिया है। इस साल जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं उनमें मप्र, छग और राजस्थान में भाजपा की सरकार है। इसलिए संघ इन राज्यों के किसानों को साधने की कोशिश करने जा रहा है। खासकर मप्र संघ की प्राथमिकता है। इसकी वजह है यहां की 105 विधानसभा सीटों पर किसानों का प्रभाव। पिछले तीन चुनावों से इन सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है, लेकिन पिछले साल जून में आंदोलन के बाद से किसानों का भाजपा से मोहभंग हो गया है। इसको देखते हुए संघ ने किसानों के बीच जाने की नीति बनाई है।
-सत्यनारायण सोमानी